जलवायु परिवर्तन एक बहुमुखी समस्या

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प्राचीन काल से ही पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन होता रहा है लेकिन प्राचीन काल में यह परिवर्तन प्राकृतिक कारणों से होता था। अतः वर्तमान में मानव के क्रियाकलापों से जलवायु में हुए अवांछनीय बदलाव को ही जलवायु परिवर्तन कहते हैं।

जलवायु परिवर्तन से कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा, समुद्र जल स्तर का उठना और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और बहुत सी समस्याएं जलवायु परिवर्तन से सामने आ रही हैं।19वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 1.62 डिग्री फॉरेनहाइट (अर्थात लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है।पिछली सदी से अब तक समुद्र के जलस्तर में अभी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

जलवायु परिवर्तन मुख्य दो कारणों से होते हैं 

१. प्राकृतिक कारण ,

२. मानव निर्मित कारण,

प्राकृतिक कारणों में महाद्वीपों का गतिशील होना ज्वालामुखी , समुद्र की धाराओं की स्थिति बदलना आदि है।

लेकिन जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव मानव के क्रियाओं से पड़ रहा है क्योंकि मानव ने अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया है। जिसका दुष्परिणाम पृथ्वी के सभी जीवधारी वनस्पति आदि भुगत रहे हैं।

औद्योगिक क्रांति के पश्चात वैश्विक स्तर पर जो देश को विकसित करने की , शक्ति संपन्न और आर्थिक संपन्न बनाने की जो स्पर्धा शुरू हुई है उसमें कहीं ना कहीं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण पीछे छूट गया है। मानव के क्रियाकलापों से प्रकृति में अवांछनीय परिवर्तन हुए हैं ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि हुई है। ग्रीन हाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड में थे नाइट्रस ऑक्साइड क्लोरोफ्लोरोकार्बन आदि जैसे प्रमुखता से शामिल की जाती हैं। इन गैसों की मात्रा एक सीमा में ही वायुमंडल में होनी चाहिए लेकिन इन गैसों की मात्रा में आए बदलाव के कारण जलवायु परिवर्तन जैसी विनाशकारी दीर्घकालीन आपदा का सामना करना पड़ रहा है।

औद्योगिक क्रांति के पश्चात वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 30% की बढ़ोतरी देखने को मिली है। जैव पदार्थों का अपघटन मेथेन का एक बड़ा स्रोत है । मेथेन गैस कार्बन डाइऑक्साइड से कम मात्रा में है लेकिन मिथेन गैस कार्बन डाइऑक्साइड से अधिक प्रभावी होती है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन का प्रयोग मुख्यत: रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर में होता है।

ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते सांद्रण के कारण धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है और यह चिंता का विषय है।

कार्बन उत्सर्जन में देश की स्थिति:-

चीन – 30 %

यूएसए – 15 % (प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन में प्रथम स्थान)

भारत – 7 %

यूरोपियन – 9 %

ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि के कारण ओजोन परत का क्षरण होता जा रहा है। ओजोन परत में एक छिद्र हो गया है जो कि अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर है जिससे अंटार्कटिका महाद्वीप पर जमी बर्फ पर सूर्य की सीधी किरणें पड़ती हैं और अधिक तापमान के कारण बर्फ की चादरें बहुत तेजी से पिघलती जा रही हैं। जिससे समुद्र का जल स्तर ऊपर होता जा रहा है जिसके कारण महाद्वीपों के तटीय भाग जलमग्न हो जाएंगे और कई द्वीपीय देश समुद्र में समा जाएंगे।

अंटार्कटिका महाद्वीप पर पिघलती बर्फ

ग्रीन हाउस गैसों के पढ़ने और इससे ओजोन परत में क्षेत्र होने के कारण पृथ्वी पर सूर्य की तीक्ष्ण किरण बिना रुकावट पृथ्वी के धरातल पर पढ़ते हैं और पृथ्वी का तापमान बढ़ाती है। जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।

जलवायु परिवर्तन की पृथ्वी पर रहने वाले या पृथ्वी पर स्थित सभी प्रकार जीव धारियों ,जैविक अजैविक जलाशयों वनस्पतियों पर कुप्रभाव पड़ता है।

बर्फ का पिघलना जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है अंटार्कटिका महाद्वीप पर बस इतनी तेजी से पिघल रहे हैं जिससे समुद्र का जलस्तर ऊंचा बढ़ता जा रहा है जोकि चिंता का विषय है।

जलवायु परिवर्तन के कारण कई जीवधारी विलुप्ती की कगार पर आ गए हैं। धर्मों पर बर्फ पिघलने के कारण ध्रुवीय भालू का आकार पहले से छोटा हो गया है और बालों की संख्या पहले से काफी कम हो गई है ऐसा माना जा रहा है कि ध्रुवों की बर्फ इसी प्रकार पिघलती रहे तो धूर्वीय सफेद भालू विलुप्त हो जाएंगे।

जलवायु परिवर्तन के कारण मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। हिट बेब्स से 150000 लोगों की मृत्यु हो गई थी। जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व में कई बीमारियां जन्म लेंगी और जो अभी बीमारियां है वह और अधिक खतरनाक हो जाएंगी।

जलवायु परिवर्तन के कारण तो पृथ्वी पर कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा है। गर्मियां लंबी और सर्दियों के महीने बहुत कम रह गए हैं। अधिकतर गर्मियों के दिनों में जंगलों में आग लगना तो जैसे आम घटना हो गई है। लेकिन यह घटना प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पूरे विश्व को प्रभावित करती हैं। ब्राजील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च के मुताबिक जनवरी 2019 से अब तक ब्राजील के अमेजन वन कुल 74,155 बार बनाने का सामना कर चुके हैं। अमेजन वन में आग लगने की घटना बीते वर्ष 2018 से 85 परसेंट तक बढ़ गई है।

खाद्यान्न उत्पादन में भी जलवायु परिवर्तन का अत्यधिक प्रभाव पड़ रहा है। खाद्य पदार्थों की उत्पादन मात्रा कम होती जा रही है। और अनाज में पौष्टिकता भी कम होती जा रही है।

जंगलों का अविवेक पूर्ण दोहन

वर्तमान में मानव अपने स्वार्थ के लिए जंगलों को काट रहा है । जंगल हमारे लिए बहुत ज्यादा जरूरी है। लेकिन सरकार हो या आम आदमी डेवलपमेंट के लिए आर्थिक क्रियाओं के लिए जंगलों को काट कर सड़क पुल ,कोयले की खान , हवाई अड्डे आवास आदि का निर्माण कर रहा है। हमारे देश की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है और जनसंख्या जो कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ती है तो है कार्बन डाइऑक्साइड पेड़ सोख लेते हैं लेकिन यदि पेड़ों की कटाई इसी प्रकार चलती रहेगी तो हमारी कार्बन डाइऑक्साइड सोखने के लिए और ऑक्सीजन देने के लिए कोई विकल्प ना हो तो गैसों की मात्रा बढ़ती जाएगी और जलवायु परिवर्तन और भयंकर होता जाएगा।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक प्रयास भी किए जा चुके हैं।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल

*जलवायु परिवर्तन पर सरकारी पैनल आईपीसी जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक आकलन करने हेतु संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है जिसमें 195 सदस्य देश हैं।

*इसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूएनडीपी और विश्व मौसम विज्ञान संगठन डब्ल्यूएचओ द्वारा 1988 में स्थापित किया गया था।

*इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन को तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु नीति निर्माताओं को रणनीति बनाने के लिए नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करना ह

*आईपीसीसी आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को वैज्ञानिक सूचनाएं प्रदान करता है जिसका इस्तेमाल जलवायु के प्रति उदार नीति विकसित करने के लिए किया जाता हैै।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (unfccc)

*एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रण करना है। यह समझौता जून 1992 की पृथ्वी सम्मेलन के दौरान किया गया था विभिन्न देशों द्वारा समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 21 मार्च 1994 को लागू कर दिया गया।

*unfccc की वार्षिक बैठक को कांफ्रेंस ऑफ द पार्टी कॉप के नाम से जाना जाता है।

“पेरिस समझौता”

यदि कम शब्दों में कहा जाए तो पहले समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है।वर्ष 2015 में 30 नवंबर से लेकर 11 दिसंबर तक 195 देशों की सरकारों के प्रतिनिधियों ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए संभावित नहीं वैश्विक समझौते पर चर्चा की।

“जलवायु परिवर्तन और भारत के प्रयास”

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (napcc)

*जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना का शुभारंभ वर्ष 2018 में किया गया।इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों सरकार की विभिन्न एजेंसियों वैज्ञानिकों उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है इस कार्य योजना में मुख्यता 8 मिशन शामिल है:-

*राष्ट्रीय सौर मिशन

*विकसित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन

*सुस्थित निवास पर राष्ट्रीय मिशन

*राष्ट्रीय जल मिशन

*सुस्थित हिमालय परिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन

*हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन

*सु स्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन

राजनीति में जलवायु परिवर्तन या पर्यावरण के किसी भी मुद्दे पर कम ही ध्यान दिया जाता है क्योंकि पर्यावरण प्रदूषण के सुधार में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं होता जिससे राजनीतिक पार्टियों मूर्त रूप में दिखाने के लिए ही अपने हर क्रियाकलाप को करने में अग्रसर होते हैं।।

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