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एक माह से बस्तर में आंदोलित आदिवासियों की नहीं सुन रहा कोई ?

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आंदोलन में  शामिल युवतियां

बस्तर के सुकमा जिले के सिलगेर गांव में ग्रामीण आंदोलन कर रहे हैं ग्रामीणों को बिना जानकारी दिए इस राज्य सरकार द्वारा सुरक्षा बलों के कैंप लगा  लिए गए हैं। ग्रामीणों को वहां से हटाने के लिए कथित तौर पर गोली चलने की बात  सामने आई है। इसमें तीन ग्रामीणों की मौत हुई है।

ग्रामीणों को आंदोलन करते करते एक महीना हो गया है लेकिन उनकी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। भारत पाकिस्तान के बॉर्डर की तरह ग्रामीणों और सुरक्षा बलों  के बीच में तार लगा दिए गए हैं। तिलक गीत गांव में आदिवासी निवास करते हैं और आदिवासियों का यह आंदोलन 1 महीने से चल रहा है इस गांव  की कुल आबादी 1200 है लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी यहां बिजली और और सड़क का कोई काम नहीं हुआ है।

आंदोलित ग्रामीण

हमारे देश के संविधान में देश की जनता को  शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन करने का अधिकार है। सरकार की जो नीति अच्छी नहीं होती है तो उसका विरोध करने का जनता को  अधिकार है। लेकिन आंदोलन करना आज के समय में इतना भी आसान नहीं है । ग्रामीण एक  महीने से आंदोलन पर बैठे हुए है । लेकिन ना सरकार ने ना ही प्रशासन ने उनकी कोई भी बात नहीं सुनी है। ग्रामीणों का कहना है कि विरोध करने पर सुरक्षाबलों ने ग्रामीणों पर गोली चलाई कथित तौर पर तीन लोगों की मौत हो गई

वही सुरक्षा बलों का कहना है कि ग्रामीणों ने उनके हथियार छीनने की कोशिश की थी। जिससे 19 जवान घायल हो गए हैं। अभी आदिवासियों का आंदोलन चल रहा है आंदोलित आदिवासियों को सरकार और सुरक्षा बलों की मार तो पढ़ ही रही है साथ ही साथ मौसम की मार भी पड़ रही है आदिवासी लोग बरसात से बचने के लिए तिरपालो और बोरियों का सहारा लिए घरों से बाहर आंदोलन कर रहे हैं आंदोलन में सबसे बड़ी समस्या कोविड-19 की है कोरोना के नियमों का पालन करते हुए आंदोलन करने में बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

बरसात से खुद को पत्तों के सहारे बचाते हैं महिलाएं

देश में बहुत आंदोलन हो रहे हैं लेकिन मुख्यधारा की मीडिया में इसकी चर्चा तक नहीं है। छत्तीसगढ़ के लेमरू हाथी रिजर्व के लिए भी आदिवासी लोग कई महीनों से आंदोलन कर रहे हैं लेकिन उसका कोई भी प्रभाव सरकार पर नहीं पड़ रहा है कोई भी मीडिया उन्हें नहीं दिखा रहा है। प्रधानमंत्री जी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में मीडिया के वर्गों का जिक्र किया अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही जाने की इन गरीब और लाचार और दबे कुचले लोगों की आवाज उठाने वाले मीडिया को वर्ग (1) में रखेंगे या वर्ग(2) में ।लेकिन सच्चाई यही है कि पिछड़े आदिवासियों की सुनने वाला कोई नहीं है। सरकार और बड़े लोग आदिवासियों के घर जंगल को हथियाना चाहते हैं।

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