Mahatma Gandhi: यह बात शायद बहुत कम लोग जानते होंगे, और यह सुनकर आपको अजीब भी लगेगा की आजादी की लड़ाई में सबसे आगे रहने वाले हमारे बापू ,महात्मा गांधी स्वतंत्रता दिवस की खुशी में मनाए गए किसी भी समारोह में शामिल नहीं हुए। या यूं कहें उन्होंने ऐसे किसी भी समारोह में जाने से इंकार कर दिया था।
Mahatma Gandhi जी का कहना था की मैं 15 अगस्त पर खुश नहीं हो सकता ।मैं अपने आप को धोखा नहीं देना चाहता, मगर मैं यह भी नहीं कहूंगा कि आप भी खुशियां ना मनाएं। उन्होंने आगे कहा कि, हमें जिस तरह से आजादी मिली है, आजादी के बाद भी भारत और पाकिस्तान के बंटवारे में, भविष्य के संघर्ष के बीज बोए गए है। इसीलिए हम इस बंटवारे की दुख के बुनियाद के ऊपर दिया कैसे जला सकते है। इस आजादी की खुशी से ज्यादा दुख हिंदू मुस्लिम के बीच हुए बंटवारे का है। मेरे लिए हिंदू और मुस्लिम के बीच शांति ज्यादा महत्वपूर्ण है।
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इतिहास से जुड़े कुछ दस्तावेजों में इस बात का दावा किया गया है कि, 15 अगस्त की रात महात्मा गांधी कोलकाता में, बंगाल में शांति लाने की योजना पर कार्य कर रहे थे। उस समय पश्चिम बंगाल में हिंदू और मुसलमानों में बहुत ज्यादा संघर्ष चल रहा था ।गांधी उस समय नौखली (जो कि अब बांग्लादेश में है) जाने की योजना के साथ 9 अगस्त 1947 को कोलकाता पहुंचे थे।
जहां वो मुस्लिम बाहुल्य बस्ती में स्थित हैदरी मंजिल में रुके और बंगाल में शांति लाने के लिए भूख हड़ताल शुरू की। उन्होंने 13 अगस्त से लोगों के बीच शांति लाने के प्रयास शुरू किए।
दस्तावेजों के अनुसार महात्मा गांधी को ये बताया गया कि अगर वो कलकत्ता और पूरे बंगाल में शांति ला सके तो बंगाल में सामान्यता और सदभाव लौट आएगा. आजादी मिलने से कुछ हफ्ते पहले उनका बिहार और फिर उसके बाद बंगाल जाने का भी प्रोग्राम था।
हमारे देश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता यूं ही नहीं कहा जाता। राष्ट्रपिता कहने के पीछे मुख्य कारण यह है कि, आजादी लाने में महात्मा गांधी का बहुत योगदान रहा ।आजादी के बाद उन्होंने भारत में एक नया राष्ट्र स्थापित किया।गांधी जी नए राष्ट्र के जन्मदाता माने जाते हैं,इसीलिए उन्हें राष्ट्रपिता कहा गया। दूसरे शब्दों में हम कहें तो महात्मा गांधी आजादी के वह दीपक हैं, जिनके बिना गुलामी का अंधकार हटाना मुश्किल था।
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गांधीजी आजादी के वह योद्धा थे जिन्होंने बिना हथियार उठाए ,अहिंसा के मार्ग पर चलकर अंग्रेजों को हराया। देश की आजादी के लिए वह कई बार जेल भी गए। अंग्रेजों ने उन्हें डराया भी लेकिन वह डरे नहीं, और आजादी की लड़ाई के मार्ग पर डटे रहे।
यह बात भी बहुत कम लोग जानते होंगे कि, जिस लाल किले पर झंडा फहराया जाता है ,आजादी का पहला झंडा यानी 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर तिरंगा नहीं फहराया गया था। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 16 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया था।