आज हम इस आर्टिकल में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की बात करेंगे। दुनिया में शायद ही हमें कोई ऐसी जगह मिले जहां महिलाओं पर ज़ुल्म न होते हो। कई बार ऐसा होता है कि बचपन से लेकर जवानी की दहलीज तक जुल्म सहते सहते आखिरकार महिलाएं या तो समाज , परिवार से बगावत करती है या फिर अपने जैसी अन्य महिलाओं के लिए ढाल बन कर उन सभी की रक्षा के लिए खड़ी होती है। आज हम एक ऐसी ही बहादुर नारी की बात करने वाले हैं, जो दुर्भाग्यवश अपने बचपन से ही यौन शोषण का शिकार हो रही थी। आखिरकार जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही इस बहादुर नारी ने दुर्गा का रूप धारण कर लिया। इस विरांगना ने अपने जैसी कई महिलाओं को यौन शोषण से प्रताड़ित होने से बचाया, उनके लिए आवाज बुलंद की और वह आज लाखों महिलाओं के लिए रोल मॉडल बन चुकी है।
आज हम बात कर रहे हैं उषा विश्वकर्मा की। यह बहादुर नारी जानी-मानी वुमन एक्टिविस्ट और रेड ब्रिगेड संस्था की फाउंडर हैं। इस संस्था के माध्यम वे महिलाओं को सेल्फ डिफेंस की तालीम देकर उन्हें मन और शरीर दोनों से दृढ़ बनाती हैं। उषा विश्वकर्मा अब तक करीब 2 लाख से भी अधिक महिलाओं को ट्रेंड कर चुकी हैं।
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उषा ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि यह उस वक्त कि बात है जब वे 13 साल की थी। होली का दिन था। उन्के पापा के दोस्त घर आए थे। उषा किचन में चाय बना रही थी। तभी अचानक पापा के वह दोस्त पीछे से आए और उषा के गाल पर रंग लगाने लगे और रंग लगाने के बहाने उन्होंने उषा की कमीज में हाथ डाल दिया। उषा ने कहा कि वह बुरी तरह से डर गई थी। फिर उस व्यक्ति ने उषा की मां को रंग लगाया और स्तनों को दबा दिया। होली खत्म होने के दिन बाद मां ने पापा को सारी बात बताई, लेकिन उषा के पापा बहुत ही सीधे इंसान थे और यही वजह थी की हर कोई उनके भोलेपन का फायदा उठाता रहता था। उषा ने आगे कहा कि पापा के जिन दोस्तों की नजर मां पर रहती थी, वे सभी अब उषा पर भी नजरे गाड़े हुए थे।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उषा ने कहा कि दुनिया में कोई ऐसी औरत नहीं है जिसने बचपन में यौन शोषण झेला नहीं हो। अगर कोई औरत यह कहती है कि नहीं हुआ है तो वह बिल्कुल ही झूठ बोलती है। उषा ने आगे कहा कि मेरा तो इतना यौन शोषण हुआ है कि अगर मैं अपनी कहानी लिखनी शुरू कर दूं तो कागज कम पड़ और स्याही खत्म हो जाएंगी।
उषा का जन्म 1988 में उत्तर प्रदेश में बस्ती के मुंडेरवा के एक गांव गूदी में हुआ था। उनके परिवार में पापा चार भाई और तीन बहनें थीं। सभी के बच्चे भी थे। उषा के पापा घर में सबसे छोटे थे इस वजह से उनकी मां घर की सबसे छोटी बहू थीं। घर में ताऊ की पत्नियां और दादी उषा की मां को खूब परेशान करते थे। वो बेचारी दिन भर कोल्हू के बैल की तरह घर और खेतों का काम करतीं। यहा तक की 16 गायों की देखभाल भी उन्ही के जिम्मे थी। अचानक एक दिन उषा के पापा और दादी के बीच पैसे को लेकर झगड़ा हो गया और पापा घर छोड़कर चले गए। उषा आगे कहती की यह वो जमाना था जब उस न तो फोन था, न कोई और साधन कि वें पापा को ढूंढ पाते। उषा की मां ने कुछ महीने अपने पति का इंतजार किया, फिर वह उषा को लेकर अपने मायके चली गईं। उषा कहती है की यहीं से उनके शोषण की कहानी शुरू हुई थी।
वहां ननिहाल के घर में दो मामा,एक मौसी, नानी, नानी की सास, छोटे नाना और उनकी पत्नी रहती थे। उषा कहती हा है की, “यहां हमारा हाल अपने गांव से भी बदतर था। मुझे खाने में बचा हुआ सादा चावल ही दिया जाता था। मैं खुद चटनी पीस कर चावल के साथ खाती थी।” ननिहाल में उषा के छोटे नाना की शादी देर से हुई थी तो उनका बच्चा छोटा था। अगर उसे चोट आती तो नाना उषा को ही चांटा मारते लेकीन मां कुछ भी नहीं कह पाती थी। घर में भी दोनो से कोई बात नहीं करता था। हर कोई मां के बारे में यह सोचता था कि इसका मर्द इसे छोड़कर चला गया है, तो यह अब दूसरों के मर्दों को अपने वश में कर लेगी।
उषा ने अपनी मां के बारे में गांव की औरतों को यह कहते सुना था कि इसका किसी के साथ अफेयर था और इस लिये ही इसका मर्द छोड़ कर भाग गया। उषा कहती है एक दिन उनके एक मामा ने मां से कहा कि, ” अरे लो लड्डू खाओ..।”इस पर पीछे से आ रही उनकी पत्नी ने उन्हें खूब लताड़ा और मां को भी खूब गालियां दीं थी।
उषा कहती है की हर रोज सुबह उठने के बाद सुबह से रात तक काम करते करते हमारे दिन गुजरते रहते थे।
उषा जाब पांच साल की हुई तो एक स्कूल के मास्टर को मुंशी भी पूछते कि तेरा बाप कहां गया? स्कूल के दूसरे मास्टर भी मुझे मां-बाप को लेकर तंज मारते थे और फिरस्कूल के बच्चों ने उषा को चिढ़ाना शुरू कर दिया। आखिरकार उषा नेऔर स्कूल जाना बंद कर दिया।
उषा कहती है कि एक दिन उनकेउन्हें एक फूफा हमें ढूंढते-हुए नानी के घर आए। उन्होंने बताया कि पापा का पता उन्हें मिल गया है और वे मुंबई में हैं। दोनो फूफा के साथ लखनऊ आ गए। वहां से पापा को तार भेजा गया। कुछ दिन बाद पापा लखनऊ आएऔर आते ही मां से मारपीट लगे भीट्रेन से कटकर मरने की धमकी दी थी और वही सड़क पर तमाशा होने लगा। आखिर कहा सुनी के बाद मामला ठंडा हुआ। पापा ने कहा कि वह हमें अपने साथ मुंबई ले जाएंगे। इस पर फूफा ने कहा कि” नहीं, हमें तुम पर भरोसा नहीं है। तुम अपनी पत्नी को वहां बेच दोगे। इसलिए लखनऊ में ही रहो। हम तुम्हारी मदद कर देंगे।”
पापा मान गए और जिंदगी ऐसे ही चलती रही। कुछ महीने तक फूफा ने हमारी मदद की। फिर पापा को एक लकड़ी के कारखाने में नौकरी मिल गई। धीरे-धीरे उषा का परिवार बड़ा हुआ और वह तीन बहनें और एक भाई हो चुके थे, लेकिन उनकी आर्थिक हालत बेहद खराब थी। पापा बहुत सीधे थे और मां बहुत सुंदर थी। ऐसे में उषा के पापा की शराफत और गरीबी का फायदा उठाकर उनके दोस्तो का घर पर आना जाना शुरू हो गया ।
उषा कहती है की वे लोग उम्र में पापा से भी बड़े थे। उषा जब उन्हें चाय देने जाती तो वे हाथ पकड़ लेते। सीने में कोहनी खुबो देते। किचन में होती तो पीछे से आकर पकड़ लेते। बेटा-बेटा बोलकर जांघों पर हाथ फेरते, पीठ सहलाने लगते। प्राइवेट पार्ट को गुजिया बताते, गंदी बातें करने की कोशिश करते। उषा कहती है की होली वाले दिन मां खूब रोई और पापा से कहा कि “तुम तो शराब पीकर टल्ले हुए थे और वे लोग तुम्हारी बेटी के साथ क्या-क्या कर रहे थे। तुम तो खुद ही बेटी की इज्जत लुटवा दोगे।” उस दिन के बाद उषा के पापा ने कभी शराब नहीं पी। अपने दोस्तों से भी कहा कि वे हमारे घर न आएं। उषा भी तब मजबूत हो चुकी थी। वह पापा के दोस्तों को साफ-साफ घर से चले जाने को कहे देती थी।
उषा कहेती है की लखनऊ में जहां वह रहते थे, वहीं उनकी बुआ भी रहती थीं। बुआ के बेटे का अपने घर के सामने वाली एक शादीशुदा लड़की से अफेयर चल रहा था, जिसका अभी गौना होना था। यह बात उस लडकीके भाई को पता लग गई। एक दिन मौका मिलने पर लडकी का भाई भी उषा के साथ छेडछाड करने लगा । उषा कहेती है की उन्हें भैया बोलती थी और वह 13 साल की थी और लडका 30 साल का शादीशुदा आदमी था। उषा रोते- रोते अपने घर आ गई, लेकिन डर के मारे किसी को नहीं बताया। उस आदमीने अपनी बहन का बदला उषा के भाई से न लेकर उषा से लिया था।
उषा की दसवीं खत्म होने के बाद वह लोग मड़ियाऊं शिफ्ट हो गए। उषा उस इलाके की एक संस्था के साथ जुड़ गई, जो पढ़ाने का काम करती थी, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति और भी बदतर हो गई थी। जिस दिन उषा की ट्रेनिंग का पहला दिन था। घर में चाय बनाने के लिए न चीनी थी, न पत्ती और दूध। मां ने पानी में अजवाइन को नमक के साथ उबाल कर दिया कि इसे चाय समझ कर पी ले। उषा ने उसे पिया और ट्रेनिंग के लिए निकल गई।
उषा को वहां दोपहर के खाने में मुझे दो सब्जी, दाल, रोटी और चावल मिला। उषा कहती है की “मैं खाना देखकर रोने लगी। मुझे लगा कि घर में भाई-बहन भूखे हैं और मैं यहां ऐसा खाना खा रही हूं।”
घर गई तो मां से पूछने पर मां ने बताया कि सब्जी वाला पूछ रहा था कि सब्जी वाले ने रात की बची हुई सब्जी साग दे दिया और घर में 5 रुपए मिल गए थे। उससे आधा किलो चावल खरीद कर साग के साथ खा लिया।
उषा कहेती है की एक बार पापा को कहीं से 50 रुपए का काम मिलने पर सभी खुश हो गए कीआज रोटी बनाएंगे। लेकीन जाब चूल्हा जलाया, लेकिन पापा खाली हाथ आए क्योंकी 50 रुपए रास्ते में ही कहीं गिर गए। उषा कहेती है की उस रात हमने जला चूल्हा पानी से बुझा दिया और पानी पीकर सो गए।
उषा जहां पढ़ाती थी वहीं एक लड़का भी पढ़ाता था और वह उसका अच्छा दोस्त था। एक दिन उस लडके ने भी उषा हो अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी मगर जैसे तैसे करके उषा वहां से भाग उठी। उषा कहती है की इस घटना के बाद से वह काम पर नहीं गई। खाना-पीना, बात करना लगभग छोड़ दिया था। धीरे-धीरे व्ह डिप्रेशन में आ गई और हालत पागलों जैसी हो गई, पैनिक अटैक आने लगे। सब लोग उसे पागल समझने लगे थे।
किसी ने कहा कि इसे पागलखाने में भर्ती करवा दो। किसी ने कहा कि ओझा के पास ले जाओ। उषा का खूब झाड़-फूंक भी हुआ। एक दिन मेरे मां-बाप उसे पागलखाने ले गए। वहां डॉक्टर को उषा ने सारी बात बताई। काफी दिनों तक उषा की काउंसलिंग हुई। डेढ़ साल के बाद धीरे-धीरे वह ठीक होने लगी।
उषा ने साल 2008 में बाल मंच नाम से अपनी एक संस्था बनाई । वे खुद किसी के यहां काम करने की बजाय अपने मंच के जरिए बच्चों को पढ़ाने लगी। इसके साथ-साथ उसने यह भी तय किया कि उसके साथ जो बचपन से होता आ रहा है, वह किसी और के साथ न हो। यौन शोषण और रेप के खिलाफ आवाज उठाने के लिये उषा ने अपनी संस्था में रेप सर्वाइवर और बचपन में यौन शोषण की शिकार लड़कियों को भर्ती किया। इस तरह वे 15 लड़कियां हो गईं। सभी ने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ली और उन्होने दुसरो को यह ट्रेनिंग देनी भी शुरू कर दी। इसके साथ-साथ नुक्कड़ नाटक भी शुरू किए। नाटकों में सफलता मिली और बहुत भीड़ आने लगी और पैसे मिलने लगे। उनके शराबी पति, दुनिया में औरत यानी रेप, छेड़छाड़, भ्रूण हत्या, मारपीट जैसे नाटक काफी चर्चा में रहे। फिर सभी सदस्य रैलियों में जाने लगे।
उषा कहती है कि हम नाटक से हमे मीडिया में भी काफी तवज्जो मिलने लगी, लेकिन हमारा कोई ड्रेस कोड नहीं है। नाटक में जो लोग पैसा देते थे, उषा ने उनसे कहा कि वह पैसे न दें, कपड़े खरीद कर दे दें। फिर उन्होने लाल रंग का कुर्ता और काली सलवारें सिलवाईं। लेकीन जब सभी नाटक, रैली या कुछ भी करने निकलते तो एक जैसी ड्रेस में देखकर मनचले लड़के छेडखानी करते लेकिन एक दिन एक लड़के ने उन्हें पावरफुल रेड ब्रिगेड कहा।
उषा कहेती है की बस तभी मैंने सोच लिया कि हम पावरफुल रेड ब्रिगेड कहलाएंगीं। मीडिया ने भी इसे खूब कवर किया। निर्भया रेप के वक्त भी यह पावरफुल रेड ब्रिगेड कड़ाके की सर्दी में भी जीपीओ पर बैठे रहे। इस वजह से उन्हें अच्छी-खासी पहचान मिली। अभी रेड ब्रिगेड में 40 एक्टिव मेंबर हैं। सभी या तो रेप सर्वाइवर हैं या बचपन में यौन हिंसा की शिकार। जिनके अंदर गुस्सा भरा है। उषा अभी तक 2 लाख लड़कियों को वॉयलेंस के खिलाफ ट्रेनिंग दे चुकी है। उषा कहेती है की मैं हमेशा एक ही सवाल जरूर पूछती हूं कि जिसका कभी यौन शोषण न हुआ हो, वह अपना हाथ ऊपर उठाए, एक भी हाथ ऊपर नहीं उठता है। इसके अलावा वे औरतों को डिजिटल ट्रेनिंग भी देती है कि ऑनलाइन FIR कैसे दर्ज करा सकें।
अपनी बात को आगे बढाते हुए उषा कहेती है की,”मुझे यह पढ़ेगी बेटी, तभी तो बढ़ेगी बेटी जैसे नारे बेमानी लगते हैं”। लड़कियों की सुरक्षा ही सबसे बड़ा मुद्दा है। उषा कहेती है की अब जब दूसरों के केस आते हैं तो अपना गम कम लगता है। साल 2011 एक रेप सर्वाइवर की 17 साल की लड़की से 30-30 साल के चार मर्दों ने रेप किया था। उसके होंठ लटक कर बाहर आ गए थे, चेहरा बिगड़ गया था। सिर के बाल नुच गए थे, उसकी शक्ल डरावनी हो गई थी।
आखिर अपनी बात को खतम करते हुए उषा कहेती है की “45 देशों के पत्रकार मेरा इंटरव्यू कर चुके हैं। मैं केबीसी में भी हिस्सा ले चुकी हूं। मेरी संस्था के लिए किसी ने जमीन दी तो किसी ने पैसे, लेकिन मेरा मकसद अभी भी अधुरा ही है, वो तो अभी ही शुरू हुआ है।