Unique City Of UP
Unique City Of UP: होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के समान है। हमारे देश में रंगों की होली से पहले होलिका दहन की परंपरा भी प्रचलित है। लेकिन होलिका दहन की शुरुआत कब, कहां और कैसे शुरू हुई यह जानना आपके लिए बहुत ही मजेदार हो सकता है। कहा जाता हैं की होलिका दहन की शुरुआत उत्तर प्रदेश के हरदोई से हुई है।
Unique City Of UP इस शहर में वह कुंड आज भी स्थापित है जहां होलिका का दहन हुआ था। हरदोई के बारे में एक और बात काफी चलन में है। यूं भी कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश के इस शहर में आज भी लोग ‘र’ बोलने से बड़ा ही परहेज करते हैं। आखिर ऐसा क्यों चलिए जानते हैं?
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Unique City Of UP सबसे खास बात तो यह है कि हरदोई कभी हिरण्यकश्यप की नगरी हुआ करता था, जिसका नाम हरि द्रोही था। हिरण्यकश्य भगवान विष्णु को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता था इसलिए ही उसने अपनी नगरी का नाम भी हरि द्रोही रखा था। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इस जगह पर भगवान विष्णु ने दो बार अवतार लिया था। इस वजह से भी उसे हरिद्वई भी कहा गया था लेकिन बाद में इस शहर को हरदोई का नाम दिया गया।
रुपी के इस शहर की सबसे खास बात यह है कि यहां के रहने वाले लोग अपनी आम बोलचाल की भाषा में र अक्षर का इस्तेमाल आज के समय में भी नहीं करते हैं क्योंकि हिरण्यकश्यप के काल में इस शहर के लोगों को अपने मुंह से राम शब्द बोलने की सख़्त मनाही थी। इसलिए आज भी कई जगहों पर हरदी की बजाय हददी, उरद की जगह उदद ही बोला जाता है।
Unique City Of UP पौराणिक मान्यता के मुताबिक, हिरण्यकश्यप ने अपने आप को भगवान हरि के नाम से भी ऊपर मानता था। उसे हरि के नाम से बेहद ही नफरत थी लेकिन उनका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का सबसे बड़ा भक्त था। इस बात से हिरण्यकश्यप बहुत ही चिढ़ता था। अपनी नफरत की आग में वह इतना आगे निकल चुका था कि उसने कई बार अपने बेटे को मरवाने का प्रयास भी किया लेकिन हर बार प्रह्लाद बच गया।
अपने हर प्रकार के हथकंडों को नाकाम होता देखकर थककर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बुलाया, जिसे आग कभी नहीं जला सकती थी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद का वध करने का आदेश दिया।
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प्राचीन काल में जिस कुंड में होलिका प्रह्लाद को लेकर बैठी थी वो अग्निकुंड आज भी हरदोई में मौजूद है। इसी कुंड में होलिका का दहन हुआ था और लोगो ने अपनी खुशी का इजहार करने के लिए अबीर-गुलाल उड़ाया था। उस बाद से ही होलिका दहन के बाद रंग खेलने की परंपरा शुरू हुई थी।