Categories: knowledge

Supreme Court Article 142: असीम शक्ति के इस्तेमाल से जज ने बचाया दलित छात्र का भविष्य , जानिए क्या है संविधान का आर्टिकल 142

Published by

इस मामले में जज ने अपनी असीम शक्ति का इस्तेमाल किया और एक मेघावी छात्र के भविष्य को अंधकारमय होने की कगार से उभार लिया।बात कुछ इस प्रकार है कि एक आईआईटी मुम्बई में एक दलित स्टूडेंट को दाखिला देने का सुप्रीम आदेश हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने ही इस अति संवेदनशील मामले में अपनी असीम शक्ति का उपयोग करते हुए एक छात्र के भविष्य को उजड़ने से बचा लिया है। कोर्ट ने एक छात्र की मजबूरी, उसके हालत को समझा और धारा 142 का इस्तेमाल किया। शायद आपको भी मालूम होगा कि संविधान की इस धारा का प्रयोग बहुत ही रेअर परिस्थियों में किया जाता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक नजीर पेश कर दी और एक छात्र को राहत प्रदान की है। सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई कोलेज को आदेश देते हुए कहा कि आप इस बच्चे का भविष्य अधर में नहीं छोड़ सकते। इसका कुछ निष्कर्ष निकालना ही होगा। तो चलिए यहां हम जानते हैं आखिर क्या है आर्टिकल 142 । इसका इस्तेमाल कब और कहां किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने किया इस अधिकार का उपयोग

आईआईटी मुंबई के एक छात्र को कुछ तकनीकी समस्याएं हुई थी। इसी वजह से छात्र समय पर फीस भुगतान नहीं कर पाया था। आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला नहीं मिलने से उस छात्र का भविष्य अंधकारमय होने की कगार पर खड़ा था। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट इस छात्र के लिए अंधेरे में रोशनी की किरण बन गई और कोर्ट ने अपने असीम अधिकार का इस्तेमाल किया । कोर्ट ने अपना फरमान जारी करते हुए आदेश दिया कि इस मामले में मानवीय अप्रोच अपनाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई छात्र निर्धारित समय पर फीस भुगतान नहीं कर सकता तो यह तो जाहिर सी बात है कि वित्तीय संकट से जूझ रहा होगा। इस मामले में जस्टिस डीआई चंद्रचूड़ ने अपने आसिम शक्ति का इस्तेमाल कर उक्त स्टूडेंट को सीट देने और दाखिला देने का ऑर्डर किया है। साथ ही कोर्ट ने इस आदेश का 48 घण्टे के भीतर ही पालन करने का निर्देश दिया है।

कई बड़े फैसलों के दौरान आर्टिकल 142 का इस्तेमाल किया गया

सुप्रीम कोर्ट अगर कोई भी आदेश पारित करता है तो वो संविधान में मौजूद धाराओं के दायरे के आधीन रहता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसा कोई भी फैसला नहीं दिया जाता जो संविधान से ऊपर हो। संविधान में मौजूद आर्टिकल 142 का इस्तेमाल कई बड़े फैसलों के दौरान किया गया है। आर्टिकल 142 का इस्तेमाल करते हुए कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े को मंदिर निर्माण ट्रस्ट में शामिल करने का आदेश दिया था। 2017 सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस केस को लखनऊ ट्रांसफर करने के लिए अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया था। अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मणिपुर के एक मंत्री को राज्य मंत्रिमंडल से हटाया था। इस अनुच्छेद के मुताबिक कोर्ट का आदेश तब तक लागू रहता है, जब तक कि कोई और कानून बन न जाए।

क्या कहता है आर्टिकल 142?

आसान भाषा में कहें तो अनुच्छेद 142 को आप सुप्रीम कोर्ट का वीटो पावर ही है। बहुत ही रेअर संजोगो में सुप्रीम कोर्ट इसका प्रयोग करती है। इस आर्टिकल को लागू किए जाने के बाद जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि रहता है। अपने न्यायिक निर्णय देते वक्त न्यायालय ऐसे भी निर्णय दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिये आवश्यक हों और इसके द्वारा दिये गए आदेश संपूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं किया जाता है।

किसी भी जरूरी मामले को पूरा करने के लिए इस आर्टिकल का इस्तेमाल

आर्टिकल 142 के अनुसार अदालत फैसले में ऐसे निर्देश शामिल कर सकती है, जो किसी मामले को पूरा करने के लिये जरूरी हों। साथ ही कोर्ट किसी व्यक्ति की मौजूदगी या फिर किसी भी दस्तावेज की जांच के लिए भी आदेश दे सकता है। कोर्ट अवमानना और सजा को तय करने के लिए जरूरी कदम उठाने का आदेश भी दे सकता है। इस छात्र के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। न्यायालय ने अपने पावर का इस्तेमाल करते हुए आदेश दिया कि छात्र को तुरंत ही एडमिशन दिया जाए।

छात्र ने एससी कोटे में 864 वां रैंक हासिल की थी

मुख्य न्यायालय ( सुप्रीम कोर्ट) ने कहा कि स्टूडेंट मई 2021 में जेईई मेन्स एग्जाम में बैठा और उतिॅण हुआ। फिर आईआईटी जेईई एडवांस 2021 में वह 3 अक्टूबर को बैठा और एससी कोटे में 864 वां रैंक हासिल किया। छात्र ने 29 अक्टूबर को जेओएसएए पोर्टल में दस्तावेज और फीस के लिए लॉग इन किया। उसने दस्तावेज तो अपलोड कर दिए लेकिन उसकी फीस का अस्वीकार किया गया क्योंकि वह तय रकम से कुछ कम था। अगले दिन छात्र अपनी बहन से रकम उधार लेकर फिर से फीस देने के लिए 10 से 12 बार 30 अक्टूबर को अटेंप्ट किया लेकिन फिर फीस का स्वीकार्य नहीं हुआ।

हाई कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद छात्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

छात्र ने 31 अक्टूबर को साइबर कैफे से फीस देने के लिए ट्राई किया लेकिन वहां भी वह सफल नहीं हुआ। इसके बाद वह खड़गपुर आईआईटी भी गया लेकिन वहां अधिकारियों ने फीस स्वीकार करने में असमर्थता जाहिर कर दी थी। यह सारा मामला बॉम्बे हाई कोर्ट गया लेकिन हाई कोर्ट से भी राहत नहीं मिली। आखिरकार छात्र ने बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दलित स्टूडेंट तकनीकी गड़बड़ी के कारण दाखिला प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाया है और अगर उसे मौजूदा एकेडमिक सेशन में शामिल नहीं किया गया तो वह अगली बार प्रवेश परीक्षा में नहीं बैठ पाएगा क्योंकि वह दो लगातार प्रयास पूरे कर चुका है।

सुप्रीम कोर्ट ने फौरन एडमिशन देने का किया आदेश

अथॉरिटी ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि सीटें भर चुकी है और यानी अब इस स्टूडेंट को दाखिला किसी अन्य स्टूडेंट के बदले में देना पड़ सकता है। इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विकल्प खोजे जाने का सवाल नहीं है। आपको हम मौका दे रहे हैं नहीं तो हम 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करेंगे। आप इस स्टूडेंट को ऐसे बीच अधर में बिल्कुल ही नहीं रहने दे सकते हैं। जब अथॉरिटी से निर्देश लेकर उनके वकील ने कहा कि सभी सीटें भर चुकी है तब सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल किया और उस स्टूडेंट को दाखिला देने का आदेश दिया।

Share
Published by

Recent Posts