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subhash chandra bose: सुभाष चंद्र बोस एक ओजस्वी वक्ता थे। इनको लोग बहुत पसंद करते थे और आज भी लोग इन्हें बहुत पसंद करते हैं। लोग इन्हें नेताजी भी कहते थे। 1857 में जो विद्रोह हुआ था इस विद्रोह के बाद नियोजित ससस्त्र विद्रोह हुआ। यह विद्रोह आजाद हिंद फौज के द्वारा किया गया था । सुभाष चंद्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी 1897 मे एक मध्यवर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था । बोस जी के पिता वकील थे और इनके पिता इन्हें आईसीएस बनाना चाहते थे। इन्होंने बहुत ही लगन और परिश्रम से आईसीएस को सफल किया और आईसीएस बन गए लेकिन सुभाष चंद्र बोस जी ने राष्ट्रीयता की भावना और राष्ट्रप्रेम के कारण 1921 में इंडियन सिविल सर्विस से इस्तीफा दे दिया था और फिर इंग्लैंड से लौटने के बाद यह महात्मा गांधी से मिले। Subhash Chandra Bose गांधी जी का आदर करते थे ।
एक क्रांतिकारी नेता थे जिनका नाम चितरंजन दास था। नेताजी उनसे प्रभावित हुए जिसके बाद कोलकाता में प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के खिलाफ उपनिवेशवाद विरोधी प्रदर्शन में भाग लिया। महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस लिया था। तब सुभाष जी ने हिंदू और मुसलमान भाइयों में एकता को बनाए रखने के लिए स्वराज पार्टी में मुस्लिम भाइयों और बहनों के लिए नौकरी में आरक्षण देने का समर्थन किया था। सुभाष जी पर क्रांतिकारी गतिविधियों मे संलग्न होने का 1924 में आरोप लगाया गया था और उन्हें बर्मा की मांडले जेल में 4 साल तक बंद रखा गया और वहीं पर उन्होंने कैदियों के साथ बदसलूकी और गलत व्यवहार के खिलाफ 1926 में लंबे समय के लिए भूख हड़ताल कर दी और कैदियों के साथ अपनी मांगों को बताया और अपनी मांगे मनबाई और फिर कांग्रेस पार्टी में इनका झुकाव हो गया ।
जवाहरलाल नेहरु भी इनके साथ थे। सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच कई मतभेद उठते रहते थे। Subhash Chandra Bose गांधी जी इरविन समझौते की आलोचना भी करते थे । सुभाष चंद्र बोस क्रांति से काम लेना सही समझते थे वही महात्मा गांधी शांति तथा बातों से काम बनाना नहीं समझते थे। दोनों नेताओं में साध्य और साधन का भी अंतर था । सुभाष जी साध्य पर बल देते थे और महात्मा गांधी साथ और साधन दोनों को मानते थे। महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के पक्षधर थे। वही सुभाष चंद्र बोस राजनीतिक गलियारों में हिंसा की जरूरत पड़ जाए तो गलत नहीं समझते थे। गांधीजी किसानों तथा आम लोगों के साथ समाजवाद के विरोध में पक्षधर थे । वही सुभाष चंद्र बोस विदेश से सहयोग के पक्षधर थे ।
सन 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में जब Subhash Chandra Bose अध्यक्ष बने तब उन्होंने पार्टी के अंदर स्वतंत्र भारत में नियोजित आर्थिक विकास पर चर्चा करने का काम किया। इसके बाद 1939 में त्रिपुरी में अधिवेशन होना था। कांग्रेस की वामपंथी झुकाव ने Subhash Chandra Bose को अपना उम्मीदवार चुना और महात्मा गांधी की पराजय हुई और उन्होंने इसे निजी हार के रूप में स्वीकार किया लेकिन फिर कांग्रेस का त्रिपुरी निजी संकट अभी शुरू हुआ था। इसी त्रिपुरी में जीबीपंथ ने एक प्रस्ताव पेश किया। जिसमें गांधी द्वारा कार्यसमिति की बात कही गई थी। Subhash Chandra Bose ने प्रस्ताव स्वीकार किया लेकिन गांधी ने अस्वीकार कर दिया और सुभाष जी को अपनी कार्यसमिति स्वयं बनाने के लिए कहा गया। सुभाष जी द्वंद में फंस गए। नेहरू द्वारा बीच-बचाव किया गया लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया।
एक प्रोजेक्ट के दौरान बंगाल में इन को गिरफ्तार कर लिया गया। कहा जाता है कि 1941 में सुभाष चंद्र बोस कहीं गायब हो गए । वह कोलकाता से पेशावर होते हुए रुस पहुंच गए और वहां से मार्च महीने में बर्लिन पहुंच गए और रूस ब्रिटेन विरोधी ताकत का साथ लेने में राजी थे और अंग्रेजो के खिलाफ जर्मनी में सुभाष चंद्र बोस ने फ्रीइंडियालेजन की स्थापना की। सन 1943 में सुभाष जी पनडुब्बी में बैठकर जापान गए। जापान में उन्हें समर्थन प्राप्त हुआ वहां से सिंगापुर गए।
जिसे जर्मनी और जापान ने तत्कालीन सहमति दी। उन्होंने दक्षिणी पूर्वी एशिया में घूम-घूम कर चंदा जोड़ा। सेना भर्तियां की। बहुत कम समय में अंग्रेजी शक्ति के खिलाफ लोहा खड़ा किया ।उन्होंने जगह-जगह नारे दिए, प्रदर्शन किए “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” दिल्ली चलो का नारा दिया और महात्मा गांधी का आशीर्वाद लिया । आजादी की इस लड़ाई में उनका नेतृत्व विशेष महत्त्व देता है।
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अंग्रेजो द्वारा भारत में बनाने गए ढांचे जैसे पुलिस सेना ICS के ढांचे का बहुत प्रभाव भारत पर पड़ा। सुभाष के राष्ट्रवाद के ढांचे से प्रभावित हुए। भारत 1947 में आजाद हो गया तो इटली ने कहा था कि – अंतिम दिनों में सुभाष के कारनामे तथा नेतृत्व ने बिट्रिश साम्राज्य को विशेष रूप से चिंता में डाला था । जापान की सेना ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह की सेना को सुभाष सरकार की सेना को सौंप दिया। अंडमान का नाम शहीद द्वीप और निकोबार का नाम स्वराजदीप रखा गया था । आजाद हिंद फौज ने मणिपुर की तरफ से बिट्रिश भारत पर हमला बोला और बहादुरी से लड़ते हुए इंडियन सेना का तिरंगा लहराया। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के बाद आजाद हिंद फौज के कुछ सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
सुभाष चंद्र बोस जापान के लिए निकले थे कि एक विमान दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण 18 अगस्त 1945 को इनका निधन हो गया था। लेकिन एक महान वक्ता, जुझारू नेता, सुधरे व्यक्ति होने के कारण लोग भारतवासी इन को भारत माता का सपूत मानते हैं। लोगों का मत है कि इस महान नेता की मौत इस प्रकार नहीं हो सकती है।