Rehana Sheikh: कई सारे ऐसे पुलिसकर्मी होते हैं। जो अपनी ड्यूटी की सीमा से बाहर जाकर भी लोगों की मदद करते हैं। मुंबई पुलिस ने एक ऐसी ही सब इंस्पेक्टर हैं जिन्होंने मानवता की अद्भुत मिसाल भी कायम की है। 40 वर्ष की रेहाना सीखने 50 गरीब बच्चों की शिक्षा का भार उठाने के साथ ही 54 लोगों को प्लाज्मा, ब्लड, ऑक्सीजन और हॉस्पिटल की सहायता मुहैया कराई।
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मानवता तथा कर्तव्यनिष्ठ एकता की मिसाल कायम करने वाली रेहाना से को मुंबई पुलिस ने कमिश्नर हेमंत नगराले ने सम्मानित किया। पुलिस की ड्यूटी के साथ ही साथ सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने के लिए कमिश्नर ने रेहाना को अपने ऑफिस बुलाकर सर्टिफिकेट दिया।
बता दें कि Rehana Sheikh ने रायगढ़ के बच्चों की दसवीं क्लास तक की पढ़ाई का खर्च उठाने का वादा किया। उन्होंने कहा कि मुझे रायगढ़ के स्कूल के बारे में पता चला। प्रिंसिपल से बात कर वहां पर पहुंचने पर देखा की मैक्सिमम बच्चे गरीब परिवार से हैं। जिनके पास पढ़ने के लिए चप्पल भी नहीं थी। मैंने अपनी बेटी के जन्मदिन तथा ईद में खरीदारी के लिए कुछ सेविंग की थी। जिसको बच्चों के लिए खर्च कर दिया।
वर्ष 2000 में कॉन्स्टेबल के तौर पर पुलिस फोर्स से जुड़ने वाली Rehana Sheikh ने यह बताया कि एक कॉन्स्टेबल की मां के लिए इंजेक्शन के लिए मशक्कत की। इसके बाद से मुझे हौसला मिला तथा ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद की। पुलिस विभाग से ही कई लोगों ने ब्लड, अस्पताल में बेड और प्लाज्मा की गुजारिश की। हालांकि हमने व्हाट्सएप से लेकर अन्य समूहों की मदद से प्रयास किया।
गौरतलब है कि रिहाना के पिता अब्दुल नबी बागवन मुंबई से सब इंस्पेक्टर के पद से रिटायर हुए। पति भी पुलिस में है तथा रेहाना को प्यार से “मदर टेरेसा” कहकर बुलाते हैं। रेहाना शेख एथलीट तथा वॉलीबॉल प्लेयर भी रही हैं। 2017 में श्रीलंका में अपनी फोर्स का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने दो गोल्ड तथा एक सिल्वर मेडल अपने नाम किया था।
रेहाना इस फैसले को लेकर यह बताती है कि मेरी एक दोस्त ने एक दिन मुझे एक स्कूल की तस्वीर दिखाई जिसमें वहां पढ़ने वाले बच्चों की हालत बहुत ही खराब थी। इस फोटो ने रेहाना के मन पर ऐसा असर किया कि उन्होंने तुरंत मदद करने का फैसला किया तथा बच्चों के घर पहुंच गई।
बच्चों को गोद लेने के पीछे की कहानी सुनाते हुए रेहाना ने यह कहा कि मैं जब अपनी बेटी के जन्मदिन मनाने जा रही थी। उन्हें रायगढ़ की वाजे तालुका में ज्ञानी विद्यालय के बारे में पता चला। इसके बाद से उन्होंने इस स्कूल के प्रिंसिपल से बात करने का फैसला किया। जिसके बाद से उन्हें स्कूल आने के लिए भी आमंत्रित किया गया। यहीं से उन्होंने 50 बच्चों को गोद लेने का सोचा।
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एक वक्त था जब मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में कोरोना काल कहर बरप रहा था। आए दिन बड़ी संख्या में लोग मर रहे थे। कई लोग ऑक्सीजन, वैक्सीन आज की कमी से भी जूझ रहे थे। ऐसे में रेहाना लोगों के लिए देवदूत बनीं। उन्होंने ऑक्सीजन, मास के तथा अन्य जरूरी चीजों को जरूरतमंदों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया।