नीतीश कुमार
इस बार मुख्य जनगणना डिजिटल रूप में हो रहे हैं। हालांकि कोरोना की वजह से मुख्य जनगणना में पहले से ही डेढ़ साल से देरी हो चुकी है। जाति जनगणना को लेकर भाजपा व सरकार ने भले ही सकारात्मक रूप दिखाया हो। लेकिन इसका मुख्य जनगणना के साथ होना मुश्किल लग रहा है। जाति की जनगणना मुख्य जनगणना के बाद अलग से हो सकती हैं। भारत में जनगणना कराने वाले रजिस्टार जनरल ऑफ इंडिया की एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्रत्येक 10 वर्ष पर होने वाली जनगणना सन 2021 में कराने की पूरी तरह से तैयार कर ली गई है। चूंकि जनगणना के पहले चरण में अप्रैल से सतंबर 2020 के बीच पूरी टीम घरों और पशुओं की गिनती की जानी थी। दूसरे चरण में फरवरी में जनसंख्या के आंकड़े जुटाने की योजना बनाई गई थी। इसके लिए तो लाखों जनगणना कर्मियों ने ट्रेनिंग का काम भी पूरा कर लिया था। लेकिन मार्च में कोरोना वायरस शुरू होने की वजह से जनगणना का काम पूरा नहीं किया जा सका।
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पीएम मोदी के साथ बैठक के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कहा की प्रधानमंत्री ने राज्य में जाति जनगणना पर प्रतिनिधिमंडल के सारे सदस्यों की बातें सुनी। उनका कहना है कि हमने पीएम से इस पर उचित निर्णय लेने का आग्रह किया है। नीतीश कुमार का कहना है कि इस मुद्दे पर बिहार और पूरे देश के लोगों की राय एक जैसी है।हमने उन्हें यह भी बताया कि किस तरह बिहार विधानसभा में जाति जनगणना को लेकर दो बार फरवरी 2018 और शीघ्र ही फरवरी 2020 में प्रस्तावित पारित किया है। हमारी बातें सुनने के लिए हम पीएम के बहुत ही शुक्रगुजार हैं। अब उन्हें ही इस पर निर्णय लेना है।
बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बताया कि हमारे प्रतिनिधि मंडल ने आज न केवल राज्य में बल्कि पूरे देश में जाति जनगणना के लिए पीएम मोदी से मुलाकात की है। उनका कहना है कि जब जानवरों का पेड़ पौधों की गिनती होती है तो इंसानों की क्यों नहीं होनी चाहिए?यदि सरकार के पास जातिगत समाज का आंकड़ा नहीं होगा तो सरकार कल्याणकारी योजनाएं कैसे बनाएगी? हम सभी दलों के लोग राष्ट्रहित में एक साथ हैं। अब हम सिर्फ पीएम मोदी के निर्णय का इंतजार कर रहे हैं।
जाति पर आधारित जनगणना की मांग प्रत्येक जनगणना से पहले होती रही है। आमतौर पर ऐसी मांग ओबीसी तथा अन्य वंचित वर्गों के नेता करते हैं। चूंकि उच्च जातियों के नेता इस विचार का विरोध करते रहे हैं।यह पहली दफा नहीं है। जब देश में जाति आधारित जनगणना की मांग उठने लगी है। पिछली ऊसन 2011 की जनगणना के दौरान मुलायम सिंह यादव, शरद यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं ने तब भी ऐसी ही जनगणना की मांग की थी।
इसकी वजह यह है कि केंद्र से ओबीसी विकास के लिए जाने वाला पैसा राज्य की कुल आबादी के अनुपात में भेजा जाता है। ये सबसे अजीब सी स्थिति है कि समस्या को जाने बगैर, उसे देखे बगैर समस्या से लड़ने की कोशिश की जा रहे हैं। ओबीसी इस देश की जनसंख्या का सबसे बड़ा ग्रुप है। मंडल कमीशन के मुताबिक इसकी आबादी 52 फ़ीसदी है। इतनी बड़ी संख्या में आबादी के बारे में जानकारी जुटाए बगैर उनके लिए योजनाएं बनाना असंभव ही है। फिलहाल केंद्र और राज्य सरकारें कई दशक से ये असंभव काम कर रही हैं। जाति के आंकड़े आने से जातिवाद बढ़ जाएगा। जैसे इस तर्क का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि दुनिया के बहुत सारे विकसित देश अपनी आबादी के बारे में तमाम तरह के आंकड़े जुटा आते हैं।