अफगानिस्तान पर तालिबान तालिबान के कब्जा करने के बादलाखों की संख्या में अफगान के लोग अपने परिवारों के साथ देश छोड़कर भागने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा वे लोग हैं। जिन्होंने किसी न किसी तरह अमेरिका के नेतृत्व वाले या फिर अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार नाटो फोर्सज की सहायता की है। इन लोगों को यह डर है कि तालिबान आतंकी इन्हें मार डालेंगे। हालांकि कई देशों ने ऐलान किया की अफगान शरण देंगे। जबकि कुछ ऐसे भी देश है जिन्होंने अफगानी शरणार्थियों की एंट्री पर बैन लगा दिया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल सामने यह निकलकर आ रहा है कि आखिर शरणार्थियों का भविष्य क्या है? अब तो आने वाला समय ही बताएगा।
यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी के मुताबिक शरणार्थी को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया है जिसे उत्पीड़न,हिंसा युद्ध के कारण अपने देश से भागने के लिए मजबूर किया गया हो। एक शरणार्थी को धर्म, राष्ट्रीयता, नस्ल, राजनीतिक राय या फिर किसी विशेष सामाजिक समूह के सदस्यता के कारणों के लिए उत्पीड़न का एक एक अच्छी तरह से स्थापित डर है। सबसे बड़ी संभावना है। वो घर नहीं लौट सकते या ऐसा करने से डरते हैं। युद्ध, जातिय, आदिवासी और धार्मिक हिंसा शरणार्थियों के अपने देशों से भागने के प्रमुख कारण हैं।
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भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ईरान जैसे बड़े देशों ने हताशा से परेशान अफगानी ओं के लिए अपने दरवाजे खोले हुए हैं। हिंदुस्तान हमेशा से ही अफगानिस्तान में शांति का समर्थक रहा है। भारत अफगानिस्तानियों के साथ भूत, भविष्य तथा वर्तमान हर वक्त खड़ा रहा है। इस मुश्किल समय में लगभग प्रत्येक दिन अफगानिस्तानी यों से अफगान नागरिकों को एअरलिफ्ट करके भारत लाया जा रहा है। गौरतलब है कि भारत में शरणार्थियों पर 1951 के शरणार्थियों या कन्वेंशन की स्थिति से संबंधित 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किया है।फिर भी मानवीय आधार पर नई दिल्ली से फैसले लिए जा रहे हैं। जिसमें अफगानिस्तान की बड़ी नेता भी शामिल है। हिंदुस्तान की मदद अफगानिस्तानी यों के लिए मरहम का काम कर रहे हैं। अफगान की मशहूर पॉप सिंगर अरयाना सईद का कहना है कि “मैं पूरे अफगान की ओर से भारत के प्रति आभार व्यक्त करती हूं तथा शुक्रिया अदा करना चाहती हूं। इस मुसीबत की घड़ी में हमें ये पता चल गया कि पड़ोसी देशों में सिर्फ भारत हमारा अच्छा दोस्त है। भारत हमेशा से ही हमारे साथ अच्छा रहा।
अफगानिस्तान से 20 साल बाद अपनी सेना वापस बुला रहा अमेरिका भी इस मुश्किल वक्त में अफगानी ओं के साथ देखना चाहता है। व्हाइट हाउस के एक अधिकारी के अनुसार 14 अगस्त से अब तक 30 हजार से अधिक लोगों को काम से बाहर निकाला जा चुका है। लेकिन इसमें से कितनी अफगानी नागरिक हैं। इसका आधिकारिक खुलासा अभी तक यूएस ने नहीं किया। ऑस्ट्रेलिया का भी मालवीय वीजा कर्यक्रम के तहत अफगानियों के लिए 3 हजार जगह सुनिश्चित करने का प्लान है।ईरान ने भी अफगानिस्तान की सीमा से लगे अपनी तीन प्रांतों में शरणार्थियों के लिए आपातकालीन तंबू की व्यवस्था की है। लगभग 1500 अफगानियो ने अफगानिस्तान-उज़्बेकिस्तान सीमा को पार कर शिविरा स्थापित करने की खबर है। चूंकि अफगानिस्तान से रोजाना डराने वाली तस्वीरें सामने आ रही है। रणनीति बनाने के लिए दुनिया भर के नेता मीटिंग कर रहे हैं। इस समस्या के समाधान की कोशिश कूटनीति के जरिए हो रही है। लेकिन अभी भी आम अफगानी डरा हुआ है।