Karnataka Hijab Row: कर्नाटका में उठे ही हिजाब विवाद से तो आप सभी परिचित ही होंगे,इस पर लंबे समय से कर्नाटका हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही थी, लेकिन अब यह सुनवाई पूरी हो चुकी है और कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है इस फैसले के बाद पूरे देश में चर्चा का एक नया विषय खड़ा हो गया है यह जानना बहुत जरूरी है कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा है आइए जानते हैं कि कोर्ट ने हिसाब विवाद पर फैसला सुनाते हुए क्या दिशा निर्देश जारी किए हैं।
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सूत्रों से मिल रही खबर के मुताबिक कर्नाटक हाईकोर्ट में लंबे समय से हिजाब विवाद पर सुनवाई चल रही थी, जिसमें पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से अनेक वकील शामिल हुए और उन्होंने अपने-अपने पक्ष के तरफ से व्यापक दलीले प्रस्तुत की।
इन सभी दलीलों के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट एक अंतिम निर्णय पर पहुंचा और अपना निर्देश जारी करते हुए उसने या निर्णय किया कि हिजाब पर बैन जारी रहेगा ऐसी खबर बाहर आते हैं कई संगठनों और कई लोगों के बीच हलचल सी मच गई है और सोशल मीडिया पर वाद संवाद का दौर फिर से चालू हो गया है।
इस फैसले में जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह यह कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है कि हिजाब इस नाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है जबकि वहीं पर इस्लामिक संगठन बार-बार इस बात पर दावा कर रहे हैं कि यह उनका निजी तथा धार्मिक मामला है, उनके धर्म पुस्तक इस बात का आदेश देती है कि मुस्लिम महिलाएं हिजाब को अनिवार्य रूप से पहने, परंतु अब जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की है कि इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं तो इस पर दो अलग अलग तरीके के विचार उठते नजर आ रहे हैं और इस पर व्यापक तर्क वितर्क शुरू हो गया है।
आपको पता होगा कि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान जाने-माने इस्लामिक स्कॉलर है,उन्होंने भी इस मुद्दे पर अपनी टिप्पणी व्यक्त करते हुए कहा था कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और कहीं पर भी ऐसा कोई आदेश कुरान में नहीं दिया गया है यह लोगों द्वारा अपनी सुविधा के लिए बनाया गया एक सामान्य नियम है अब जब कोर्ट ने भी इसी बात को दोहराया है और यह निर्णय दिया कि हिसाब पर बैन रहेगा क्योंकि यह किताब का अनिवार्य हिस्सा नहीं है तो हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद उठने वाले वाद विवाद धार्मिक संकीर्णता की ओर इशारा करते नजर आ रहे हैं।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले में एक और बड़ी बात कही वहीं की सरकार को यह शक्ति प्राप्त है कि वह हिसाब को बैन कर सकती है।
कोर्ट ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि अब यह स्पष्ट हो चुका है की हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है अतः यह धार्मिक स्वतंत्रता के तहत नहीं गिना जा सकता और इस पर लगने वाला प्रतिबंध धार्मिक स्वतंत्रता के रूप में मौलिक अधिकार का हनन नहीं कहा जाएगा सरकार के पास जा सकती है कि वह इसको बैन कर सकती है।
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सामान्यतः मुस्लिम लड़कियों को सिखाया जाता है कि हिजाब उनके लिए बहुत ही अनिवार्य है और यह उनका धार्मिक अधिकार है परंतु अब जब देश के बड़े-बड़े वकीलों ने तर्क वितर्क करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस्लाम का आवश्यकता नहीं है तो यह मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं के बीच जागरूकता का भी एक बहुत बड़ा विषय बन गया है कि आखिर क्यों मुस्लिम समुदाय लड़कियों को इस विषय पर जबरन बाध्य करना चाहता है, जबकि यह पूर्णतया उनकी सुरक्षा का विषय है कि वह हिजाब पहने अथवा ना पहने अब देखना यह है कि कोर्ट का यह फैसला आगे क्या रूप लेता है।