22 दिसंबर 1992 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल 17 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाए जाने की घोषणा की गई थी। इस दिवस पर अलग अलग राष्ट्र द्वारा गरीबी उन्मूलन के लिए प्रयास, विकास, विभिन्न कार्यों और योजनाओं को जारी किया जाता है। ये दिवस पहली बार 1987 में फ्रांस में मनाया गया था। जिसमें करीब एक लाख लोगों ने मानवाधिकारों के लिए प्रदर्शन किया था। ये आंदोलन एटीडी फोर्थ वर्ल्ड के संस्थापक जोसफ व्रेंसिकी के द्वारा आरंभ किया गया। इसके अलावा गरीबी से लड़ाई सहस्राब्दी विकास लक्ष्य तथा नए सतत विकास लक्ष्यों के विकास के मूल्य में निहित है।
इस पोस्ट में
दरअसल भारत एक कृषि प्रधान देश है। लेकिन फिर भी भारत में गरीबी की मुख्य वजहें बढ़ती जनसंख्या, भ्रष्टाचार, रूढ़िवादी सोच, नौकरी की कमी, अशिक्षा, बीमारी, जातिवाद, अमीर गरीब में ऊंच-नीच, कमजोर कृषि इत्यादि हैं। भारत की एक बड़ी जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। खराब कृषि तथा बेरोजगारी की वजह से लोगों को भोजन की कमी से जूझना पड़ता है। यही कारण है कि महंगाई ने भी पंख फैला रखे हैं। और कहीं न कहीं भारत में गरीबी का एक मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या भी है।
बहुत ही लंबे समय से गरीबी की समस्या को झेल रहा है। देश में गरीबी का आलम स्वतंत्रता पूर्व से लेकर स्वतंत्रता पश्चात भी पसरा हुआ है। गरीबी उन्मूलन के लिए अभी तक का योजनाएं बनी है। कई प्रयास हुए, गरीबी हटाओ चुनावी नारा बना तथा चुनाव में जीत हासिल की गई। लेकिन इन सारी चीजों के बाद भी न तो गरीबी की स्थिति में सुधार हुआ व न ही गरीबी का खात्मा हुआ। जबकि सच्चाई यह है कि गरीबी मिटाने के बजाय देश में दिनोंदिन गरीबों की संख्या में गिरावट होने लगी है। गरीब को सत्ता हथियाने के लिए वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया। तो मिलते ही उसे हमेशा के लिए अपने ही हाल पर छोड़ दिया गया। यही वजह है कि आज भी गरीब वहीं खड़ा है, जहां पर आजादी से पहले था। आज के समय में भी सवेरे की पहली किरण के साथ ही गरीब के सामने रोटी, कपड़ा व मकान की समस्या खड़ी हो जाती है। गौरतलब है कि ये विडंबना कम नहीं है कि सोने की चिड़िया से पहचाने जाने वाले देश का भविष्य आज के समय में भी गरीबी के कारण भूखा तथा नंगा दो जून की रोटी की जुगाड़ में दरबदर की ठोकरें खा रहा है। जबकि अब हकीकत तो यह है कि गरीब पैदा होना अब पाप समझा जाने लगा। गरीब की पूरी जिंदगी तो महज एक चिंगम की तरह होकर सिमट गई है। जिसे कोई भी खरीदता है व चबाकर थूक देता है।
देश में कितनी गरीबी है। इसके बारे में सबसे चर्चित आंकड़ा अर्जुन सेनगुप्ता की अगुवाई वाली एक समिति का है। कुछ साल पहले ही इस समिति ने यह अनुमान लगाया था कि देश के 77 फ़ीसदी आबादी रोजाना 20 रुपए से कम पर गुजर बसर करने को मजबूर हैं। सरकार के मुताबिक गरीब की परिभाषा ये है कि शहरी क्षेत्र में प्रतिदिन 28.65 रुपए तथा ग्रामीण क्षेत्र में 22.24 रुपए कम से कम जिसकी आय है। वह सभी गरीबी रेखा में सम्मिलित है। आज जहां पर महंगाई आसमान छू रही है। क्या वहां 28 रुपए और 22 रुपए में एक दिन में तीन वक्त का पेट भर खाना खाया जा सकता है? क्या यह एक तरह से गरीबों का मजाक नहीं है..?
गरीबी केवल व केवल पेट का भोजन ही नहीं छिनती है। बल्कि कईयों के सपनों पर पानी फेर देती है। लेकिन इन सभी बातों से अनजान हमारे नेता गरीबी को लेकर अभी भी संजीदा नहीं हुए हैं। हम भारत को न्यू इंडिया तो बेशक बनाना चाहते हैं लेकिन वहीं पर गरीबी को मिटाना नहीं चाहते। जबकि हमारे प्रयास हर बार अधूरे ही रह जाते हैं। क्योंकि हमने कभी भी अपने सच्चे मन से इस समस्या को दूर करने की कोशिश ही नहीं की है।
जब तक गरीबी की बीमारी भारत को लगी रहेगी। तब तक भारत का विकासशील से विकसित बनने का सपना पूरा ही नहीं हो सकता है। दरअसल में गरीबी इतनी भी बड़ी समस्या नहीं है। जितनी की बढ़-चढ़कर उसी को हर बार बताया जाता है। जबकि सच तो यह है कि गरीबों के लिए चलने वाली दर्जनों सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता है। जिसकी एक वजह अज्ञानता भी है। चूंकि इस दिशा में वर्तमान सरकार द्वारा डिजिटलीकरण सार्थक कदम है। गरीबी बढ़ने का एक प्रमुख कारण जनसंख्या का लगातार अनियंत्रित तरीके से वृद्धि करना है। हम यदि भारत के संदर्भ में देखें तो आजादी के बाद से ही सालों साल हमारे देश की जनसंख्या में इजाफा होता गया है। जाहिर सी बात है कि जिस सीमित जनसंख्या को ध्यान में रखकर विकास का मॉडल और योजनाएं बनाई गई हैं। उतनी बार जनसंख्या वृद्धि में बाधा उत्पन्न की है। हमें जरूरत है कि हम जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में न केवल जागरूकता लाएं। बल्कि दो बच्चे ही अच्छे की नीति के आधार पर ही सरकारी सेवाओं का लाभ भी तय करें।