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प्राचीन भारत के इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो इसमें अंग्रेजों के शासनकाल में स्वतंत्रता के लिए अनेक प्रकार के आंदोलनों युद्ध और विद्रोह का पता चलता है। भारत प्राचीन इतिहास के पन्नों को पढ़े बिना भारत इतिहास की कल्पना करना असंभव है। युद्ध, आंदोलन और आक्रमण भारत शौर्य गाथा और पराक्रम को दर्शाते हैं । 30 जून 1855 में विद्रोह का आगमन हुआ। जिसका नाम संथाल विद्रोह पड़ा। इस विद्रोह के आगमन से अंग्रेजी हुकूमत के हाथ-पैर फूल गए और अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून को बदलने पर मजबूर कर दिया गया इस विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजों और साहूकारों द्वारा संथाल जनजाति पर अत्याचार तथा उनका शोषण करना था तथा उनकी जमीन हड़प कर उन पर हुकूमत करना था। संथाल भूमि को कृषि योग्य बनाकर उस पर खेती किया करते थे। कृषि इनका प्रमुख व्यवसाय था।
इनकी प्रमुख निवास स्थान कटक ,पलामू , छोटानागपुर हजारीबाग ,पूर्णिया , भागलपुर आदि थे। संस्थानों का अपना राजनीतिक ढांचा भी था। परहा पंचायत के द्वारा सारे संथाल के क्षेत्र में उनके प्रतिनिधियों के द्वारा शासन किया जाता था। परहा पंचायत के सरदार हमेशा संथाल जनजाति के लोगों के हितों की रक्षा का ध्यान रखते थे। वह गांव के लोगों से लगान लेते थे और एक साथ उन्हें राजकोष में जमा करते थे। किसी अनुष्ठान के लिए भी अपने ही लोगों का पुरोहित के रूप में चयन करते थे लेकिन अंग्रेजों के आने से संथाल जनजाति के लोगों के जीवन की शांति भंग हो गई। इस क्षेत्र में अंग्रेजो के द्वारा संस्थानों पर शोषण व अत्याचारों के कारण विद्रोही की स्थिति उत्पन्न हो गई ऐसी जनजाति का बड़े भूभाग पर अधिकार था।
शुरुआती दौर में इनका जीवन खुशहाल था। भारत में अंग्रेजों के शासन काल औपनिवेशिक या उपनिवेश काल कहा जाता था। इनकी शासन काल का समय सन 1707 से 1947 तक माना जाता है। संथाल जनजाति का विस्तृत भू-भाग और खुशहाल जीवन अंग्रेजों की आंख में किरकिरी बनने लगा था। इस कारण अंग्रेजों ने संथालो की जमीन को जमींदारों को देना शुरू कर दिया । इनकी भूमि का वास्तविक अधिकार तो अंग्रेजों का रहा। अंग्रेज संथाल किसानों से उनकी ही भूमि पर खेती कर आने लगे और बदले में भूमि कर लेने लगे। धीरे-धीरे संथालो की हानि पर हानि होने लगी। और संथाल कर्ज में डूबने लगे। संथालो साहूकारों से कर्जा लेकर खेती करते भूमि कर देते और अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। इस प्रकार संथाल लोगों की दशा दयनीय हो गई ।
अंग्रेजों और साहूकारों के अत्याचारों से परेशान होकर संथालों ने विद्रोह का रास्ता चुना। सन 1855 से 1856 तक संथालो ने सरदार धीर सिंह के नेतृत्व में एक दल बना लिया और विद्रोह का ऐलान कर दिया। सबसे पहले संथालों ने महाजनों और साहूकारों का निशाना बनाया और उनके धन को लूटा इस विद्रोह में चार संथाल नेता आगे आए। जिनका नाम सिद्धू , कानू , चांद तथा भैरव था । 29 जून 1855 में गांव में एक विशाल बैठक बुलाई गई। जिसमें चारों नेता समेत लगभग 10000 लोगों ने भाग लिया। इससे बैठक मैं संथाल लोगों द्वारा शपथ ली गई की साहूकारों का, अंग्रेजों का अत्याचार नहीं सहेंगे और उन्हें मुंहतोड़ जवाब देंगे । बैठक के बाद में छोटा सा विद्रोह शक्तिशाली विद्रोह में बदल गया। संस्थानों के विद्रोह का भयानक रूप देखकर अंग्रेजों के पैरों तले जमीन खिसक गई । महाजनों ,साहूकारों के मकानों को दस्तावेजों के साथ जलाकर राख कर दिया जो गुलामी के प्रतीक थे। रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशनों को जला दिया । रेलवे इंजीनियर के बंगलों को जला दिया फसलों को भी जला दिया गया। संस्थानों ने अपनी परंपरागत हथियारों का उपयोग किया तीर धनुष और भाले का प्रयोग करते थे जबकि अंग्रेजी सैनिक इनका उपयोग नहीं करते थे । संस्थानों द्वारा किए गए इस विद्रोह में साहूकारों अंग्रेजों को निशाना बनाया जाने लगा इस दौरान अंग्रेजों के साथ लूटमार व मारपीट की जाने लगी । इस विद्रोह से डरकर अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी नीति को अपना संथाल विद्रोह को रोकने के लिए अंग्रेजों ने जमकर हथियारों का प्रयोग किया और विद्रोही नेताओं के लिए चारों तरफ अंग्रेजी सैनिक लगा दिए गए और विद्रोही नेताओं के लिए इनाम की घोषणा भी कर दी गई और इस लड़ाई में 15000 संथाल मारे गए गांव के गांव उजड़ गए ।
जिसके बाद विद्रोह कमजोर पड़ गया और इस तरह यह संथाल विद्रोह कमजोर होने लगा। यह विद्रोह जो जाति के आधार पर अपनी पहचान बनाई थी। जिसमें 60000 से भी अधिक लोगों का संगठन बना दो एक क्रांति के रूप में प्रगट हुआ था । इस विद्रोह का उत्प्रेरक अंग्रेजी हुकूमत से टकराना था अंग्रेजी सरकार ने इस पर विचार किया और ब्रिटिश सरकार ने संथालों को उनकी भूमि पर अधिकार दे दिया गया । वह संस्थानों का अलग से संथाल परगना बना दिया गया और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट लागू किया संथाल और अंग्रेजों के बीच संवाद स्थापित करने के लिए ग्राम प्रधान को मान्यता दी गई। यह संथाल विद्रोह अपने देश अंग्रेजों के शासन काल का पहला विद्रोह बना।