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Hindi Diwas: हिंदी और अंग्रेजी को पहले चुना गया था,तीन दिन तक संसद में बहस चली

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पहले भाषा ने जन्म लिया या फिर पहले समाज का निर्माण हुआ। ये कुछ ऐसे सवाल है जैसे कि पहले मुर्गी आई या फिर पहले अंडा आया। समाज के लिए बहुत ही उपयोगी साधन ‘भाषा’ है। इस दृष्टि से तो पहले समाज के निर्माण हुआ होगा। हिंदी भाषा न केवल युवाओं और बच्चों को रास आ रही है। बल्कि हर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर तेजी से अपनी जगह बनाती जा रही है। इसकी सबसे खास बात यह है कि हिंदी का यह स्वरूप हमारा अपना है। हिंदी यहां किसी नियम कायदे में नहीं बंधी है। हम उसे जिस भी तरह से प्रेम करते हैं। उसी तरह से हम हिंदी को दुनिया तक पहुंचा भी रहे हैं। असल में यही वह हिंदी है जो हमारी पहचान बन सकती हैं, सहज है, आसान है तथा ताकतवर भी है। क्योंकि इसमें दुनिया भर की कई भाषाओं की खुशबू मिली हुई है। यही वजह है कि गेमिंग से लेकर, माइक्रो ब्लॉगिंग साइट तथा ब्लॉगिंग तक हिंदी छाई हुई है। हर साल 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है। आजादी मिलने के दो साल बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एकमत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था। इसके बाद हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने जाने लगा।

हिंदी और अंग्रेजी को पहले चुना गया था

आजाद भारत का संविधान तैयार करने के लिए 6 दिसंबर 1946 में संविधान सभा का गठन हुआ था। 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम प्रारूप को संविधान सभा ने मंजूरी दे दी थी। इसके बाद 26 जनवरी 1950 से आजाद भारत का अपना संविधान पूरे देश में लागू हुआ। लेकिन उस समय सबसे बड़ा सवाल यही था कि राजभाषा के रूप में कौन सी भाषा का चयन किया जाए। जिस पर काफी सोच विचार किया गया। फिर हिंदी और इंग्लिश को नए राष्ट्रभाषा के रूप में चुना गया। संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को अंग्रेजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। लेकिन संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। भारतीय संविधान के भाग 17 की अध्याय की धारा 343 (1) में यह वर्णित है कि ‘संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।’

तीन दिन तक संसद में बहस चली

संविधान बनने की प्रक्रिया जब शुरू हुई थी तो भारत की भाषा क्या हो? इस सवाल को लेकर संसद में 3 दिन 12 सितंबर दोपहर से लेकर 14 सितंबर दोपहर तक बहस चली। जो राष्ट्र को जोड़ने का काम करें, किसी भी देश की आधिकारिक भाषा वो हो सकती है। उस समय हिंदी बोली अधिकांश रियासतों में पढ़ी लिखी जाती थी। यही वजह थी कि उसे ही अधिकारी भाषा बनाने की मांग लगातार उठ रही थी। हालांकि चर्चा के दौरान ही 13 सितंबर को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बताया कि किसी भी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता है। भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के लिए, भारत के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने की विधि में जो अपनी आत्मा को पहचाने, जो संसार के साथ सहयोग कर सकें, जिस आत्मविश्वास हो, उसके लिए हमें हिंदी को अपनाना चाहिए। आखिरकार देवनागरी लिपि को ही अधिकतर सदस्यों ने स्वीकार किया।

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