सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा की बहू को आश्रित कोटे में बेटी से सबसे ज्यादा अधिकार मिले हैं। ये फैसला सस्ते गल्ले लाइसेंस धारक की मौत पर वारिसों को दुकान आवंटन में लागू होता है। हाईकोर्ट ने सरकार के आदेश को रद्द करते हुए इसको बदलने का भी निर्देश दिया है। ये आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने पुष्पा देवी की याचिका को स्वीकार करते हुए किया।
हाईकोर्ट ने बेटी को परिवार में शामिल करने तथा बहू को शामिल न करने के 5 अगस्त 2009 को जारी सचिव खाद्य तथा आपूर्ति के आदेश पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने अपर मुख्य सचिव तथा प्रमुख सचिव खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति को आदेश का पालन करने को कहा है। कोर्ट ने नयाशन आदेश जारी करते हुए एवं संदेश को ही 4 हफ्ते में संशोधित करने का निर्देश दिया है।
दरअसल याची पुष्पा देवी के सास के नाम सस्ते गल्ले की दुकान का लाइसेंस था। 11 अप्रैल को सास की मौत हो गई। उनके पति की तो पहले ही मौत हो चुकी थी। विधवा बहू तथा उनके दो नाबालिग बच्चों के उस परिवार में कोई और नहीं है। पुष्पा ने मृतक आश्रित कोटे में दुकान के आवंटन के भी अर्जी दी। 5 अगस्त 2019 को उससे यह कहते हुए निरस्त कर दिया गया था कि शासनादेश में बेटी को परिवार में शामिल किया गया है, लेकिन इसमें बहू को अलग रखा गया है। कोर्ट ने इसे शासनादेश में बहू को परिवार से अलग करने को समझ से परे बताया है। उन्होंने यह कहा कि बहू को आश्रित कोटे में बेटी से ज्यादा अधिकार प्राप्त है। इसी वजह से बहू को परिवार में शामिल किया जाए।