Gyanvapi Mosque: बनारस में बृहस्पतिवार को पहली बार Gyanvapi Mosque के परिसर का सर्वे हुआ। कोर्ट के आदेश पर परिषद के अंतर्गत श्रृंगार गौरी तथा विग्रहों का सर्वे किया जाना है। सर्वे का काम शाम तक चला तथा सर्वे किया जाएगा परिषद का सर्वे उस दावे के आधार पर किया जा रहा है।जिसमें हिंदू पक्ष की एक वर्ग का यह मानना है कि बनारस में औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर तथा उसके अवशेषों के जरिए ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। जिसके आधार पर ही कोर्ट ने वीडियोग्राफी के साथ सर्वे के आदेश दिए थे।
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यह लगभग 30 साल पुराना मामला है। जब वर्ष 1991 में पुजारियों के समूह ने बनारस की कोर्ट में याचिका को दायर किया था। जिन्होंने Gyanvapi Mosque क्षेत्र में पूजा करने की अनुमति मांगी थी। इन्हीं लोगों ने कोर्ट में ये दलील दी है कि औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। हालांकि ऐसी में उन्हें परिसर में पूजा की अनुमति दी जाए। इस मामले में Gyanvapi Mosque की देखभाल करने वाले अंजुमन इंतजा मियां मस्जिद को ही प्रतिवादी बनाया गया।
लगभग 6 वर्ष के सुनवाई के बाद से 1997 में कोर्ट ने दोनों पक्षों के पक्ष में मिलाजुला फैसला सुनाया। जिससे कि दोनों पक्ष हाई कोर्ट चले गए तथा इलाहाबाद कोर्ट में वर्ष 1998 में लोअर कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। उसके बाद से ये मामला ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहा।
लगभग 20 वर्ष बाद से वर्ष 2018 में मुकदमे में वकील रहे विनय शंकर रस्तोगी में नेक्सट फ्रेंड के रूप में याचिका दायर की तथा अंबर 2019 में ये केस फिर से खुल गया। इसमें अहम बात यह थी कि इसके ठीक 1 महीने पहले ही अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आया था तथा रस्तोगी की याचिका पर अप्रैल 2022 में कोर्ट ने ज्ञानवापी परिषद का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का भी निर्देश दिया। इसी के आधार पर अभी परिसर का सर्वेक्षण किया जाएगा।
काशी विश्वनाथ मंदिर तथा उसमें लगी Gyanvapi Mosque के बनने को लेकर विभिन्न प्रकार की धारणाएं है। आमतौर पर तो यही मानना है कि औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद भी बनवाई तथा मंदिर के अवशेषों का उपयोग मस्जिद निर्माण में किया गया। हिंदू पक्ष का ये भी मानना है कि जमीन के नीचे भगवान शिव का शिवलिंग है। चूंकि मुस्लिम पक्ष न दावो को नकारता है। मुस्लिम पक्ष का यह कहना है कि मंदिर तथा मस्जिद भिन्न-भिन्न बनाए गए एवं मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर को नहीं तोड़ा गया।
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जहां तक काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का सवाल है तो इसका श्रेय अकबर के दरबारी राजा टोडरमल को ही दिया जाता है। जिन्होंने वर्ष 1585 में ब्राह्मण नारायण भट्ट की मदद से कराया था। इसी के आधार पर हिंदू पक्ष का यह मानना है कि औरंगजेब के कार्यालय में मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। चूंकि इस मत में इतिहासकार की एक राय नहीं है। कुछ हिंदू पक्ष की दलीलों को सही बता रहे हैं तो कुछ का यह कहना है कि मंदिर को तोड़ा नहीं गया था।
जिस प्रकार अयोध्या को लेकर राम मंदिर निर्माण का फैसला आया तथा उसकी एक महीने बाद से ज्ञानवापी कैसे शुरू हुआ। उसी को देखते हुए इस फैसले का भारतीय राजनीति पर बड़ा असर भी दिख सकता है क्योंकि वर्तमान में केंद्र की सत्ता में बैठी बीजेपी के नेताओं के ओर से इस तरह के बयान हमेशा आते रहे हैं। अयोध्या तो झांकी है बल्कि काशी मथुरा बाकी है। बता दे अयोध्या की तरह भले ही बीजेपी ने काशी मथुरा को लेकर प्रस्ताव पारित नहीं किया हो।
पर पार्टी के नेताओं का मानना है कि काशी मथुरा विवाद का भी हल निकालना चाहिए। ऐसे में जब ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्विस शुरू हो रहा है। तो यह भी तय करना है कि इसके बड़े राजनीतिक असर होंगे।