महाद्वीपीय विस्थापन  सिद्धांत ( continental drift theory)  क्या है? क्या दुनिया के सभी महाद्वीप  एक साथ जुड़े थे ? इसके वैगनर के सिद्धांत में क्या प्रमाण दिए गए हैं ? और क्या यह प्रमाण हकीकत की जमीन पर खरे उतरते हैं ?

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कार्बोनिफरस युग से इस प्रकार हुआ महाद्वीपों का विस्थापन

( continental drift theory ) महादिपीय विस्थापन सिद्धांत क्या है ?और किसने सिद्धांत को प्रतिपादित किया?

continental drift theory महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का प्रतिपादन जर्मनी के प्रसिद्ध जलवायुवेत्ता भूशास्त्तवेत्ता प्रोफ़ेसर अल्फ्रेड वेगनर ने सन 1912 में किया। इन्होंने ( continental drift theory ) महाद्वीपों के स्थिरता की अवधारणा को गलत बताया और इसके लिए अपने प्रतिस्थापना परिकल्पना का प्रतिपादन किया वैगनर के सामने जलवायु परिवर्तन से संबंधित समस्याएं मूलभूत  थी।वैगनर को समय-समय पर एक ही स्थान पर जलवायु में परिवर्तन के साक्ष्य मिले और इनकी व्याख्या करने के लिए वैगनर के समक्ष दो विकल्प थे।१.  यदि स्थल भाग एक जगह पर स्थिर रहे हो जलवायु कटिबंधओं क्रमशः स्थानांतरण हुआ होगा जिस कारण कभी  शीत कभी उष्ण और कभी शुष्क एवं  उष्ण आर्द्र जलवायु का आगमन हुआ होगा लेकिन ऐसे स्थान तरण के प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिलते हैं।   २.  यदि जलवायु कटिबंध स्थिर हो तो स्थल भागों का स्थानांतरण हुआ होगा वैगनर ने स्थल के स्थायित्व को पूर्णतया अस्वीकार किया है तथा उनके स्थानांतरण एवं प्रवाह मे विश्वास किया।

बिंदी से प्रदर्शित किए गए क्षेत्रों में महाद्वीपों के  स्थानांतरित  हो जाने  के बाद  आज भी हिमी करण के साक्ष्य मिलते हैं

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (continental drift theory )  की व्याख्या :-

वैगनर के अनुसार कार्बोनिफरस युग में सभी स्थल खंड एकमात्र स्थल पर  पेंजिया ( continental drift theory ) महाद्वीप के रूप में स्थित थे और इसके चारों तरफ विशाल जल क्षेत्र स्थित था जिसे पेंथालासा कहा जाता था। पैजिया का उत्तरी भाग अंगारा लैंड (उत्तरी अमेरिका ,यूरोप तथा एशिया ) तथा दक्षिणी भाग  गोंडवाना लैंड (मेडागास्कर ,ऑस्ट्रेलिया अंटार्कटिका तथा प्रायद्वीप भारत कहलाया।

पेंजिया को तीन परतों सियाल ,सीमा और निफे में बांटा गया और कहा गया कि ( continental drift theory ) महाद्वीप बिना किसी रूकावट के सीमा के ऊपर रहा है। वैगनर ने यह भी माना कि अंगारा लैंड और गोंडवाना लैंड के मध्य एक उथला टेथिस सागर था। वैगनर के अनुसार कार्बोनिफेरस काल के अंत में पेंजिया में विखंडन एवं विस्थापन हुआ जिससे वर्तमान महाद्वीप और महासागरों की स्थिति सुनिश्चित हुई वैगनर के अनुसार महाद्वीप  विषुवत रेखा की ओर तथा पश्चिम की ओर   विस्थापित हुए।

मानचित्र में अंगारा लैंड और गोंडवाना लैंड स्थिति

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वेगनर के अनुसार भूमध्य रेखा की ओर विस्थापन गुरुत्वाकर्षण बल तथा  प्लवनशीलता के बल के कारण माना तथा कहा कि कम घनत्व वाला महाद्वीप  सियाल, अधिक घनत्व वाली महासागरीय सीमा के ऊपर ऊपर बिना किसी रूकावट के तैर रहा है।( continental drift theory ) महाद्वीपों के पश्चिम की ओर प्रवाह का कारण पश्चिम से पूर्व गति  करने के कारण महाद्वीपों का पीछे (पश्चिम )की तरफ छूट जाना माना है।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत( continental drift theory) के संबंध में वैगनर द्वारा प्रस्तुत प्रमाण :-

वैगनर ने  महाद्वीपों के विस्थापन के पक्ष में पृथ्वी की भूगर्भिक संरचना के तत्कालीन ज्ञान तथा विभिन्न महाद्वीपों, ( continental drift theory ) महाद्वीपों के पुरा जल वायु, पुरा वनस्पति तथा तटीय आकृतियों को आधार बनाते हुए कई प्रमाण प्रस्तुत किए इन प्रमाणों को बहुत हद तक वैज्ञानिक माना गया।

1. पूरा जलवायु संबंधी अध्ययन के अंतर्गत विभिन्न महाद्वीपों पर वर्तमान जलवायु से भिन्न अतीत काल की जलवायु के साक्ष्य के आधार पर यह स्वीकार किया कि यह तभी संभव है जब ( continental drift theory ) महाद्वीपीय विस्थापन होकर महाद्वीप विभिन्न जलवायु कटिबंध में प्रवेश करते रहे होंगे।

2. कार्बोनिफरस काल हिम युग में पृथ्वी पर महान हिम युग आया इस समय पृथ्वी का वृहद भाग  बर्फ से ढक गया वर्तमान में सभी ( continental drift theory ) महाद्वीपों पर इस हिम युग से संबंधित साक्ष्य मिलते हैं यह तभी संभव है जब विभिन्न महाद्वीप उस समय परस्पर जुड़े होंगे। कार्बोनिफरस काल में ही अपेक्षाकृत  उष्ण जलवायु में अत्यंत सघन बनस्पतिओं का विकास हुआ यहां वनस्पतियां  ग्लोसोप्टेरिस  आदि वनस्पतियों के सतह के नीचे दबने और रूपांतरित होने से कोयला खनिज का निर्माण हुआ इन वनस्पतियों का बेकार कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ही हुआ वर्तमान में कार्बोनिफरस काल के कोयला भंडार प्राय सभी महाद्वीपों पर पाए जाते हैं इससे यह भी प्रमाणित होता है कि कार्बोनिफरस काल में सभी महाद्वीप परस्पर जुड़े हुए थे।

इस फोटो में दिखाया गया है कि जब भूखंड जुड़े हुए थे तो इन जीवों और वनस्पतियों का विस्तार इन भागो में था जब अलग हुए तो इन भागों में आज भी इनके अवशेष पाए जाते हैं

3. तटीय आकृति से संबंधी वैज्ञानिक कई प्रमाण दिए हैं तटीय आकृति से यह पाया गया के तटीय क्षेत्र खड़े   ढाल पर भ्रंश कगार के रूप में है।   भ्रंश कगार का पाया जाना महाद्वीपों से जुड़े होने और विखंडन को प्रमाणित करता है । महासागरीय तटों को यदि परस्पर मिलाया जाए तब परस्पर समायोजित हो जाते हैं इस स्थिति को जिग सॉ फिट (jig saw fit)  हैं।

Evidence jig saw fit aur parvaton ki sthiti se

अटलांटिक महासागर के दोनों तटों में साम्यावस्था वर्तमान में दृष्टिगत होती है अफ्रीका का उत्तर पश्चिम भाग मेक्सिको की खाड़ी एवं कैरेबियन सागर में तथा ब्राजीलियन हॉर्न गिनी की खाड़ी में jig saw fit की स्थिति बनाते हैं। अन्य महासागरों के तटवर्ती प्रदेशों में भी यह स्थिति पाई जाती है इस प्रमाण को computer fit द्वारा भी प्रमाणित किया गया है,।

4. नवीन वलित पर्वत ओं की भौगोलिक स्थिति और उत्पत्ति को भी विस्थापन के पक्ष में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया हिमालय ,आल्पस ,एटलस नवीन वलित पर्वत है इन की भौगोलिक स्थिति प्राचीनतम टेथिस सागर के क्षेत्र में है टेथिस सागर के मलबों में वलन की क्रिया से ही इन पर्वतों की उत्पत्ति हुई। बलित पर्वतों के निर्माण के लिए संपीडन या दबाव सकते आवश्यक होते हैं जो कि अफ्रीकी एवं भारतीय भूखंड के उत्तर की ओर विस्थापन से संभव है।

इसी प्रकार रॉकी और एंडीज पर्वत अमेरिका के पश्चिमी तटीय पर्वत इनकी उत्पत्ति के लिए आवश्यक बल उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी भूखंड के खंड के पश्चिम की ओर विस्थापन से हुई है ।उत्तरी अमेरिका एवं दक्षिणी अमेरिका भूखंड जब पश्चिम की तरफ से विस्थापित हुआ तब प्रशांत महासागर के नितल से रुकावट के कारण अमेरिकी भूखंडों में तटीय भाग में बलन की क्रिया से रॉकी एवं एंडीज की उत्पत्ति हुई।

( यह स्थिति एक विरोधी व्याख्या है क्योंकि  वैगनर ने मूलतः यह स्वीकार किया था कि महासागरीय नितल, तरल सीमा से निर्मित है।)

5. प्राचीन केलेडोनियन पर्वतों की स्थिति के संदर्भ में भी ( continental drift theory ) महाद्वीपीय विस्थापन की पुष्टि की है। उत्तरी गोलार्ध में न्यूफाउंडलैंड ,स्कॉटलैंड और स्कैंडिनेविया (डेनमार्क, स्वीडन ,नॉर्वे ) पर्वतों का लगभग एक सीधी रेखा में होना , इस बात को प्रमाणित करता है कि इनकी स्थिति उत्पत्ति महाद्वीपों के संयुक्त रहने की स्थिति में हुई होगी।

इसी प्रकार  दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिणी अमेरिका का ब्राजीलियन और अफ्रीका में नमीबियन  केलेडोनियन पर्वत है। जो एक सीधी रेखा  में इस समय दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका के परस्पर जुड़े रहने की पुष्टि करता है।

इस फोटो में अफ्रीका से अलग होकर वर्तमान भारत अपनी वर्तमान स्थिति तक कैसे पहुंचा, दिखाया गया है

6. प्रमाण में  प्राचीनतम पठारों की संरचना मैं समरूपता महाद्वीपों में संलग्न दीपों की संरचना का तट के अनुरूप होना और स्कैंडिनेविया के लेमिंग जंतु का पश्चिम की ओर अटलांटिक महासागर में छलांग लगाना  , स्पष्टतः वैगनर द्वारा प्रस्तुत प्रमाण तत्कालीन परिस्थितियों में बहुत हद तक वैज्ञानिक था और महाद्वीपों के विस्थापन की इससे पुष्टि संभव हो  सकी। इसके बाद ही ( continental drift theory ) महादीपीय विस्थापन के आधार पर ही विभिन्न भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्या की जाने लगी।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत की आलोचनाएं :-

हालांकि महाद्वीपों के विखंडन और विस्थापन की प्रक्रिया के लिए उत्तरदाई बलों की वैज्ञानिक व्याख्या नहीं किए जाने के कारण इस महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (continental drift theory ) की आलोचना भी की गई।

* विशेषकर सूर्य एवं चंद्रमा  के ज्वारीय बल पश्चिम की ओर विस्थापन का कारण माना जाना पूर्णता अवैज्ञानिक व अतार्किक था।

*  महाद्वीपों में केवल एवं पश्चिम की ओर विस्थापन की अवधारणा भी अमान्य है। इससे दक्षिण में स्थित  अंटार्कटिका और दक्षिण – पूर्व में स्थित आस्ट्रेलिया की भौगोलिक स्थिति की वैज्ञानिक व्याख्या नहीं हो पाई।

* प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत को भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्या से संबंधित सर्वाधिक वैज्ञानिक सिद्धांत माना जाता है इसमें महाद्वीपीय विस्थापन( continental drift) को नकारते हुए प्लेटो के विस्थापन को स्वीकार किया गया है प्लेटो के अंतर्गत ( continental drift theory ) महाद्वीपीय एवं महासागरीय दोनों ही स्थलमंडल आते हैं जिनमें गति पाई जाती हैं ऐसे में केवल महाद्वीपों का विस्थापित होना भ्रामक अवधारणा है। इस सिद्धांत का प्रमुख आधार  अवैज्ञानिक था जिसमें माना गया है कि  पैंजिया panthalassa के ऊपर तैराव की दशा में है । वास्तविक अर्थ में स्थलमंडल अर्ध तरल  प्लास्टिक दुर्बल मंडल के के ऊपर स्थित है जिसमें भूगर्भ से उत्पन्न तापीय ऊर्जा तरंगों के कारण विखंडन और विस्थापन होता है जो प्लेटो की गति के रूप में विविध भूगर्भिक क्रियाओं को उत्पन्न करता है।

इस प्रकार वैगनर के सिद्धांत की कई आलोचनाएं की गई फिर भी वर्तमान में इसका महत्व बना हुआ है।

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