बीजेपी के पितामह आज बीजेपी नाम की बाण सैया पर लेटे हुए हैं, लेकिन उन्हें पानी पिलाने कोई अर्जुन, कोई युधिष्ठिर नहीं आ रहा है। भाजपा पार्टी और नरेंद्र मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी के योगदान , सम्मान को ऐसे दरकिनार कर दिया है जैसे कोई मां बाप अपने घर को एक-एक ईंट रखकर बनाते हैं, और जब उनका बेटा लायक हो जाता है तो उन्हीं मां बाप को दरकिनार कर देता है, और घर पर निकाल देता है।
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गुजरात के गांधीनगर से 6 बार सांसद बनने वाले, 8 बार लोक सभा के सदस्य बनने वाले लालकृष्ण आडवाणी जी को बीजेपी के पितामह के नाम से जाना जाता था। एक समय था जब उन्हें बीजेपी पार्टी की धुरी कहा जाता था। उनके चारों तरफ नेताओं का , मंत्रियों का जमावड़ा लगा रहता था। लेकिन अब लालकृष्ण आडवाणी जी अकेले पड़ गए हैं। उन्हें उनकी ही पार्टी ने उन्हें दरकिनार कर दिया है। जनसंघ से लेकर भाजपा, देश की शक्तिशाली पार्टी बनाने तक लालकृष्ण आडवाणी जी के महत्वपूर्ण योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। लालकृष्ण आडवाणी जी उस समय अपनी पार्टी को आगे ले जाने में इतनी मगन रहे कि कब उनकी पार्टी उन्हें छोड़कर समय की दौड़ में आगे निकल गई उन्हें खुद भी पता नहीं चला। लालकृष्ण आडवाणी जी कट्टर हिंदुत्ववादी नेता थे । उनमें किसी प्रकार की लोच नहीं थी ।वह संघ की विचारधारा को रखते थे।
लालकृष्ण आडवाणी जी नरेंद्र मोदी जी के सामने ढाल बनकर खड़े रहे और उनके पीछे एक गुरु के रूप में सपोर्ट करते रहे, लेकिन आडवाणी जी गुजरात के गांधीनगर से सांसद का चुनाव लड़ते थे, तो अब वहां से अमित शाह चुनाव लड़ने लगे, और जब मीडिया कर्मियों ने पूछा कि ऐसा बदलाव क्यों किया तो अमित शाह ने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी जी का स्वास्थ्य ठीक ना होने के कारण अब वह यहां से चुनाव नहीं लड़ेंगे। लेकिन लालकृष्ण आडवाणी जी एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं। वह चाहते थे कि उन्हें किसी ना किसी संवैधानिक पद पर बैठने का मौका दिया जाएगा लेकिन उन्हें पार्टी द्वारा किसी प्रकार का मौका नहीं दिया गया।
लालकृष्ण आडवाणी जी प्रधानमंत्री बनने की शुरू से ही इच्छा नहीं है लेकिन उनकी कट्टर हिंदुत्ववादी विचारधारा उनके आड़े आती रही। इसलिए लाल कृष्ण आडवाणी ने एक कदम पीछे हटकर अटल बिहारी बाजपेई को प्रधानमंत्री बना दिया और आडवाणी जी सही समय का इंतजार करते रहे। उस समय नरेंद्र मोदी उभरते हुए नेता के रूप में देखे जा रहे थे इसलिए नरेंद्र मोदी का आडवाणी जी ने सपोर्ट किया और नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई।
लालकृष्ण आडवाणी जी ने गुरु के रूप में प्रधानमंत्री मोदी जी को राजनीति के पैंतरे सिखाएं, उन्हें क्या पता था कि यह राजनीति है। राजनीति में अपने रोम पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। समय बदला शिष्य ने सारे पैंतरे सीख लिए और सारे पैंतरो का इस्तेमाल अपने गुरु पर ही कर दिया, और अपने गुरु लालकृष्ण आडवाणी जी से एक के बाद एक सारे पद छीन लिए, और उन्हें मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया। जी हां मार्गदर्शक मंडल जिससे आज तक बीजेपी पार्टी के किसी भी नेता ने मार्गदर्शन नहीं लिया होगा। या यह कह लीजिए कि सक्रिय राजनीति से नरेंद्र मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी जी को दूर कर दिया।
वर्ष 2002 में गुजरात दंगों के समय मोदी जी की सत्ता खतरे में पड़ गई थी ऐसे समय में लालकृष्ण आडवाणी जी मोदी जी के समर्थन में चट्टान की तरह खड़े रहे, और तब के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई से कहा कि नरेंद्र मोदी जी को पद से हटाने से कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है, इसलिए मुख्यमंत्री से इस्तीफा ना मांगा जाए। यदि लालकृष्ण आडवाणी जी नरेंद्र मोदी जी के सपोर्ट में खड़े ना रहते तो आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतना बड़ा मुकाम हासिल ना कर पाते।