अजब गजब – “भूल जाने का अधिकार” क्या है ? किस प्रकार भूल जाने का अधिकार से सूचना के अधिकार का उल्लंघन हो जाता है।

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भूलने का अधिकार भारतीय संविधान में प्रत्यक्ष ग्रुप में नहीं है लेकिन समय के हिसाब से भूलने के अधिकार को संविधान में जगह मिलनी चाहिए।

अजब गजब भूल जाने का अधिकार खासतौर पर साइबर वर्ल्ड में अपने पर्सनल डाटा को इंटरनेट से हटाने से लेकर जुडा है।  यानी भूल जाने का अधिकार सर्च इंजन डेटाबेस, वेबसाइट, इंटरनेट या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को उस स्थिति में हटाने का अधिकार है जब वह व्यक्तिगत जानकारी जरूरी या प्रासंगिक नहीं रह जाती । दरअसल इंटरनेट पर जो इंफॉर्मेशन या डाटा डाला जाता है वह भले ही उपयोग कर्ता डिलीट कर दे लेकिन इंटरनेट कंपनियां उसे फिर से हासिल कर सकती हैं ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो आपका पर्सनल डाटा है उसे बनाए रखने या पूरी तरह से खत्म करने का अधिकार क्या आपके पास नहीं होना चाहिए इसी तर्क के साथ वकालत की जाती है  ” राइट टू बी फॉरगॉटन “ की । यह मांग की जाती है कि सरकारों को बाकी अधिकारों के जैसे ही एक अधिकार के तौर पर प्रदान किया जाना चाहिए। अगर कोई भी व्यक्ति अपनी पर्सनल जानकारी को इंटरनेट से हटाने का अनुरोध करें तो उसे हटाने की कानूनी इजाजत मिलनी चाहिए। इसे ही भूल जाने का अधिकार कहते है।

राइट टू बी फॉरगॉटन निजता के अधिकार से अलग है। अजब गजब जहां निजता के अधिकार में ऐसी जानकारी शामिल होती है जो सिर्फ अधिकार रखने वाले व्यक्ति तक ही सीमित हो सकती है जबकि भूल जाने के अधिकार में एक निश्चित समय पर सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध जानकारी को हटाना और तीसरे पक्ष को जानकारी तक पहुंचने से रोकना भी शामिल होता है। 2014 में एक फैसला आने के बाद दुनिया भर में भूल जाने के अधिकार पर चर्चा जोर पकड़ने लगी।

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अजब गजब जानते हैं राइट टू बी फॉरगॉटन से जुड़े इस बहुचर्चित मामले के बारे में जिसे गूगल स्पेन केस के नाम से जाना जाता है। गूगल स्पेन मामले में CJEU जिसे हम यूरोपीय संघ के न्यायालय के नाम से जानते हैं उसके 2014 के फैसले के बाद राइट टू बी फॉरगॉटन का प्रचलन हुआ। गूगल स्पेनिश CJEU एक स्पेनिश नागरिक के पक्ष में फैसला सुनाया जिसने गूगल से अपने बारे में समाचार पत्रों के लेखों के दो लिंक हटाने का अनुरोध किया था । यह माना गया कि प्रोसेसिंग के उद्देश्यों के संबंध में अपर्याप्त अप्रसांगिक या अत्यधिक पाई जाने वाली पर्सनल इंफॉर्मेशन को मिटा दिया जाना चाहिए भले ही इसे कानूनी रूप से प्रकाशित किया गया ।

यूरोपीय संघ द्वारा बनाया गया जनरल डाटा प्रोटक्शन रेगुलेशन कानून :-

अजब गजब यूरोपीय संघ में ” राइट टू बी फॉरगॉटन” को जीडीपीआर (GDPR) जनरल डाटा प्रोटक्शन रेगुलेशन के तहत एक वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है और यूनाइटेड किंगडम और यूरोप में कई अदालतों द्वारा इसे बरकरार रखा गया है । जनरल डाटा प्रोटक्शन रेगुलेशन यूरोपीय संघ द्वारा बनाया गया एक कानून है जो कि यूरोपीय संघ के नागरिकों के डेटा संरक्षण के लिए बनाया गया है। इस रेगुलेशन के मुताबिक किसी भी कंपनी को किसी भी नागरिक की निजी जानकारी को ज्यादा समय तक स्टोर करने की इजाजत नहीं होगी और कंपनी को अपने कस्टमर्स की जानकारी को हर कीमत पर सुरक्षित रखना होगा। इस कानून को 2016 में बनाया गया और 2018 में लागू किया गया ।इस कानून के लागू होने के बाद अगर कोई नागरिक किसी वेबसाइट या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से अपना डाटा हटाना चाहता है तो वह इस बारे में कंपनी से निवेदन कर सकता है। अजब गजब संबंधित कंपनी को इस निवेदन का उत्तर जल्द से जल्द देना होगा। इस कानून के लागू होने के बाद कंपनियों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है कि वह अपने कस्टमर्स के पर्सनल डाटा को सुरक्षित रखें और इसे सही तरीके से उपयोग में लाएं। इस संदर्भ में जरूरत पड़ने पर कंपनियों को यह साबित भी करना पड़ सकता है कि वह डाटा को सही तरीके से इस्तेमाल कर रही हैं या नहीं।

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अजब गजब जो कंपनियां यूरोपीय संघ के देशों में नहीं है लेकिन इस संघ में आने वाले देशों के नागरिकों की जानकारी रखती है वैसी कंपनी के लिए भी जीडीपीआर (GDPR) का पालन करना जरूरी है। इस कानून को न मानने वाली कंपनियों को यूरोपीय संघ से बाहर कर दिए जाने का प्रावधान है ।और ऐसी कंपनी को भारी जुर्माना भी चुकाना पड़ेगा यूरोपीय संघ में उद्घाटन को लेकर भले ही कड़े कानून हैं ।लेकिन भारत में स्थिति काफी अलग है ।

यूरोपीय संघ में यदि कोई भूलने के अधिकार का पालन नहीं करता है तो उन्हें यूरोपीय संघ से बाहर कर दिया जाता है और भारी जुर्माना भी चुकाना होता है।

अजब गजब भारत में “राइट टू बी फॉर गोटन” की स्थिति :-

अजब गजब दरअसल भारत में ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है जो खासतौर से भूल जाने के अधिकार का प्रावधान करता हूं ।आईटी एक्ट 2000 और आईटी रूल्स 2011 में राइट टू बी फॉरगॉटन से संबंधित कोई प्रावधान नहीं है हालांकि पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल 2019 इस अधिकार को मान्यता देता है। लेकिन यह फिलहाल संसदीय समिति के पास है । व्यक्तिगत डेटा संरक्षण  विधेयक 2019 की धारा 20 में राइट टू बी फॉरगॉटन को शामिल किया गया है। जिसके मुताबिक किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत डेटा के निरंतर खुलासे या प्रकृति करण को प्रतिबंधित करने का अधिकार होगा। इसके मुताबिक किसी व्यक्ति से संबंधित  डेटा के खुलासे की जरूरत नहीं रह गई हो या उपयोग करने की सहमति वापस ले ली हो तो ऐसी स्थिति में यह अधिकार लागू होगा।

अजब गजब भूल जाने के अधिकार से होता है सूचना के अधिकार का उल्लंघन:-

अजब गजब डीपीए का एडजुडिकेटिंग ऑफिसर  तय करेगा कि डाटा प्रिंसिपल के राइट टू बी फॉरगॉटन के उपयोग से क्या किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या सूचना के अधिकार का उल्लंघन होता है। सामान्य तौर पर न्यायालयों द्वारा ऐसे मामलों की व्याख्या की जाती है लेकिन यह अनिवार्य रूप से सरकारी एजेंसियों को न्याय निर्णय शक्ति प्रदान करता है जो पृथक्करण शक्तियों के सिद्धांत का प्रत्यक्ष उल्लंघन है । इसलिए इस पर आपत्तियां भी उठाई जा रही है हालांकि भारत में राइट टू बी फॉरगॉटन को विधायक मंजूरी नहीं मिली हुई है। 2017 में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति के एस पुट्टू स्वामी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है ।फैसले में कहा गया कि अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14,19 और 21 के तहत सुरक्षित हैं।  कोर्ट ने इस मामले में अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के हिस्से के रूप में भूल जाने के अधिकार को मान्यता दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की अपने पर्सनल डाटा पर नियंत्रण रखने और स्वयं के जीवन को नियंत्रित करने में सक्षम होने का अधिकार भी इंटरनेट पर अपने अस्तित्व को नियंत्रित करने के उसके अधिकार को शामिल करेगा।

अजब गजब बलात्कार पीड़ितों की आपत्तिजनक तस्वीरों और वीडियो सोशल मीडिया से हटाने के लिए “भूल ने का अधिकार” जरूरी :-

वर्तमान में कई उच्च न्यायालयों ने इस अधिकार पर अंतरराष्ट्रीय न्याय प्रणाली को ध्यान में रखते हुए अपने फैसलों में भूल जाने के अधिकार को साफ तौर से मान्यता दी है।

अजब गजब दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र और गूगल से पूछा था कि क्या निजता के अधिकार में इंटरनेट से अप्रासंगिक सूचनाओं को हटाने का अधिकार शामिल है। इसी तरह नवंबर 2020 में शुभ्रांशु रावत @ गुगुल  बनाम स्टेट ऑफ़ ओड़ीशा” मामले में ओडिशा हाईकोर्ट ने राइट टू बी फॉर बटन की वकालत की । कोर्ट ने भूल जाने के अधिकार की वैधानिक मान्यता की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि बलात्कार पीड़ितों की आपत्तिजनक तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बने रहने देना उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

भारत में भूलने का अधिकार समय की मांग है

अजब गजब भारत में भूल जाने के अधिकार को लेकर कई चुनौतियां :-

अजब गजब भारत में राइट टू बी फॉरगॉटन को लेकर चुनौतियां भी कम नहीं है इस दिशा में बड़ी चुनौती कानूनी पहलुओं से जुड़ी हुई है। दरअसल भूल जाने के अधिकार पर सार्वजनिक रिकॉर्ड से जुड़े मामलों के बीच विरोध की स्थिति पैदा हो सकती है। जैसे कि भारत में अदालती फैसलों को हमेशा सार्वजनिक रिकॉर्ड के रूप में माना गया है और यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 74 के मुताबिक सार्वजनिक दस्तावेज की परिभाषा के तहत आते हैं। विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक राइट टू बी फॉरगॉटन  को आधिकारिक सर्वजनिक रिकॉर्ड विशेष रूप से न्याय के रिकॉर्ड तक विस्तारित नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे लंबे समय में न्याय प्रणाली में जनता का विश्वास कमजोर होगा ।

अजब गजब भारत में ऐसा भी कोई भी कानून नहीं है जो स्थाई रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सर्वर से हटाई गई फोटो को भूल जाने या प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। ऐसे में देश में भूल जाने के अधिकार की कानूनी संभावनाएं व्यापक बहस की मांग करती है। यह देखते हुए की पर्सनल डाटा प्रोटक्शन विधेयक 2019 पहले ही संसद में पेश किया जा चुका है। भूलने के अधिकार पर व्यापक बहस की जरूरत है ।ताकि भारतीय संविधान से मिलने वाले दो मौलिक अधिकारों के बीच रस्साकशी को कम किया जा सके।

अजब गजब इस कड़ी में राइट टू बी फॉरगॉटन को लागू किए जाने से पहले कुछ सुधारों की जरूरत है मसलन भूल जाने के अधिकारों को लागू करने के लिए संविधान में एक बड़े संशोधन द्वारा अनुच्छेद 19 दो के तहत गोपनीयता को उचित प्रतिबंध के आधार के रूप में जोड़ा जाना चाहिए ।इसी तरह गोपनीयता और सूचना के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है।

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