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Abdul Ghaffar Khan का खुदाई खिदमतगार आंदोलन, जिसमें अंग्रेजों द्वारा सैकड़ों निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाई गई।

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Abdul Ghaffar Khan ने लाल कुर्ती आंदोलन की नींव रखी :-

बादशाह खान, फ्रंटियर गांधी, सीमांत गांधी, बादशाह खान जैसे नामों से मशहूर खान Abdul Ghaffar Khan को भारत द्वारा भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न 1987 में दिया गया था।

महात्मा गांधी और सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान

Abdul Ghaffar Khan का जन्म 6 फरवरी 1890 में पाकिस्तान के प्रथम परिवार में हुआ था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अपनी पढ़ाई करते थे। अब्दुल गफ्फार खान विद्रोही विचारों के व्यक्ति थे। अब्दुल गफ्फार खान ऐसे व्यक्ति थे जो महात्मा गांधी सविनय अवज्ञा आंदोलन में उत्तर पश्चिम सीमा में क्षेत्र से भारत की लड़ाई का नेतृत्व करता है। जिसने इसके लिए लालकुर्ती यानी रेड पश्तून मूवमेंट या खुदाई खिदमतगार आंदोलन की नींव रखी थी।

Abdul Ghaffar Khan ने पश्तूनों को शिक्षा देने का प्रयास किया :-

1929- 30 में खुदाई खिदमतगार की एक संस्थागत आंदोलन के रूप में स्थापना हुई थी। खुदाई खिदमतगार का मतलब खुदा की सेवा करना, मतलब इंसान की सेवा करना, मानवता की सेवा करना, आजादी के लिए लड़ने अहिंसा और धार्मिक एकता इस की प्रतिबद्धता थी। इससे ही खुदाई खिदमतगार की बुनियाद तैयार हुई थी।

यह आंदोलन पश्तून ऊपर जुल्म करने के विरोध में था लेकिन यह आंदोलन समय बीतते बीतते अंग्रेजों से आजादी का आंदोलन बन गया इस आंदोलन का राजनीतिकरण हो गया और अंग्रेज इस आंदोलन से जुड़ने लगे तथा Abdul Ghaffar Khan को इसके लिए 3 वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया। पश्तून ऐसे व्यक्ति थे जो खून खराबा करते रहते थे ।

जैसे कोई किसी के पिता को मार देता था तो फिर उसका लड़का सोचता था कि मैं उसके परिवार का एक शख्श तो जरूर मारूंगा और दूसरे परिवार का शख्श सोचता था कि मैं उसके परिवार का एक शख्श जरूर मारुंगा । इस प्रकार वह अपनी पूरी जिंदगी खून खराबे में बिता देते थे । लेकिन खान अब्दुल गफ्फार खान ने स्कूल खोला और पश्तून बच्चों को शिक्षा दी । यह लोग लाल कलर की ड्रेस पहनते थे इसलिए इसे लाल कुर्ती आंदोलन कहते हैं और महिलाएं काले कलर के कपड़े पहनते थे लेकिन आंदोलनों को लाल कुर्ती आंदोलन ही कहते हैं।

खुदाई खिदमतगार आंदोलन

खान Abdul Ghaffar Khan ने पश्तूनों के लिए स्कूल खोला लेकिन अंग्रेजों को पसंद नहीं आया प्रतिबंधित कर दिया :-

20 वर्ष की उम्र में Abdul Ghaffar Khan ने अपने गृह नगर उत्मान जई में एक स्कूल खोला जो थोड़े ही महीनों में चलने लगा और बहुत से बच्चे स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए आने लगे लेकिन अंग्रेजों को यह अच्छा नहीं लगा तो अंग्रेजी हुकूमत ने उनके स्कूल को 1915 में प्रतिबंधित कर दिया। अगले 3 साल तक उन्होंने बच्चों को जागरूक करने के लिए जयपुर गांव की यात्रा की।

इसके बाद लोग उन्हें बादशाह खान के नाम से पुकारने लगे। पश्तून मूवमेंट के चलते चर्चित हुए खान Abdul Ghaffar Khan की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई तो वह महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित हुए और अहिंसक आंदोलनों से जुड़ गये। नमक सत्याग्रह में भाग लेने के चलते अंग्रेजों ने Abdul Ghaffar Khan को गिरफ्तार कर लिया था क्योंकि उन्होंने उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत के अटमानजई शहर में आयोजित एक सभा में भाषण दिया था।

पश्तून मूवमेंट से चर्चित हुए खान Abdul Ghaffar Khan

अंग्रेजों ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाकर, सैकड़ों लोगों की हत्या की :-

खान अब्दुल गफ्फार खान के विचार क्रांतिकारी थे लेकिन वह अहिंसा पर विश्वास रखते थे इसलिए वह गांधी जी से जुड़ गए । जब उन्हें भाषण देने के जुर्म में अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया तो खान अब्दुल गफ्फार खान की गिरफ्तारी को लेकर पेशावर सहित पड़ोसी शहरों में विरोध प्रदर्शन होने लगे । उनको गिरफ्तारी से छुड़ाने के लिए पहुंची हजारों हजार लोगों को देखकर अंग्रेज भयभीत हो गए और उन्होंने लोगों को रोकने के लिए आम लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। गोली चलाने का आदेश मिलते ही लोगों पर आंख बंद करके अंग्रेजों ने गोलियां बरसा दी।

लगभग 250 निहत्थे लोगों की हत्या कर दी। वही हत्याकांड से पहले अंग्रेजों के गोली चलाने का आदेश मानने से इनकार करने वाले गढ़वाल राइफल्स के जवानों का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। इन जवानों को कई सालों तक जेल भी काटनी पड़ी। इन जवानों में से उत्तराखंड के वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का नाम प्रमुख था।

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खान अब्दुल गफ्फार खान का संपूर्ण जीवन समाज सेवा और जेल में बीता :-

Abdul Ghaffar Khan

1919 में रोलेट सत्याग्रह के खिलाफ गांधी जी ने देश भर में सत्याग्रह का आह्वान किया था, तो बादशाह खान भी इस आंदोलन से जुड़ गए थे। बिहार और नोआखली में 1946 में जब सांप्रदायिक दंगे हुए उस वक्त बादशाह खान और गांधीजी साथ-साथ वहां गए थे। गांधीजी और खान अब्दुल गफ्फार खान ने साथ-साथ बिहार में काम किया और अंत तक उनका एक दूसरे के साथ संबंध कायम रहा। जब भारत के बंटवारे की बात चली तो खान अब्दुल गफ्फार खान ने इसका सख्त विरोध किया और अब्दुल गफ्फार खान ने जून 1947 में पस्तूनों के लिए पाकिस्तान से एक अलग देश की मांग की ।

लेकिन इस मांग को माना नहीं गया । पाकिस्तान सरकार ने उन्हें अपना दुश्मन समझा इसलिए उन्हें कई सालों तक जेल में रखा । उन्हें लगभग 24-25 सालों तक जेल में रखा गया और 20 जनवरी 1988 में खान अब्दुल गफ्फार खान को हाउस अरेस्ट के दौरान पाकिस्तान में ही उनका निधन हो गया।

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