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असम – मिजोरम विवाद क्या है ? किस प्रकार एक अंतर्राज्यीय मामला खूनी झड़प  में बदल गया।

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असम और मिजोरम की सीमा में विवादित क्षेत्र

असम- मिजोरम विवाद का इतिहास :-

भारत के उत्तर पूर्वी राज्य असम और मिजोरम के बीच इन दिनों सीमा के सीमांकन पर विवाद छिड़ा है। यह विवाद कोई पहली बार नहीं हो रहा है इतिहास में कई बार असम और मिजोरम की सीमा को लेकर विवाद होता रहा है लेकिन अब इस सीमा विवाद ने हिंसात्मक रूप ले लिया है। आज जिस इलाके को हम मिजोरम कहते हैं वह 1972 में  केंद्र शासित राज्य था मिजोरम 1987 में पूर्ण राज्य बना। दोनों राज्यों के बीच विवाद का इतिहास उस समय से है जब मिजोरम असम का एक जिला था और लुशाई हिल्स के नाम से जाना जाता था। इन राज्यों की सीमाओं का निर्धारण मानचित्र पर तो साफ-साफ दिखता है लेकिन दुर्गम पहाड़ी इलाके में इस का बंटवारा बहुत ही कठिन होता है। कभी यह बंटवारे को पहाड़ियो  सीध में मान लेते हैं और कभी यह बंटवारे को नदी नालों के हिसाब से मान लेते हैं। लेकिन जमीन पर सीमा का कोई निश्चित विभाजन ना होने की वजह से विवाद होता है जैसा की असम – मिजोरम में हो रहा है।

असम – मिजोरम सीमा का दो बार हुआ निर्धारण :-

ऐतिहासिक रूप से असम – मिजोरम के बीच दो बार सीमा का सीमांकन किया गया है। पहली बार असम और मिजोरम की सीमा का सीमांकन 1875 में और दूसरी बार 1933 में असम और मिजोरम की सीमा का सीमांकन किया गया।

(1) 1875 की एक अधिसूचना जो कछार हिल्स और लुशाई हिल्स के बीच सीमा निर्धारण करती है । 1933 में किया गया सीमांकन वर्तमान विवाद की मूल में है ।

(2) 1933 की अधिसूचना जो लुशाई हिल्स और मणिपुर की सीमा निर्धारित करती है । कछार आज असम का हिस्सा है । लुशाई हिल्स का हिस्सा आधुनिक मिजोरम का हिस्सा है।

असम के लोग 1933 की अधिसूचना को मानते हैं और मिजोरम के लोग 1875 की अधिसूचना को मानते हैं। 1933 में किया गया सीमांकन वर्तमान विवाद के मूल में है और 1875 का सीमांकन ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन(BEFR) एक्ट 1873 के आधार पर किया गया । यह सीमांकन मिजो प्रमुखों के परामर्श से किया गया था जो 2 साल बाद ‘ इनर लाइन रिजर्व फॉरेस्ट सीमांकन , का आधार बना। 1933 का सीमांकन लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच एक सीमा को चिन्हित करता है । यह सीमा लुशाई हिल्स, कछार जिले और मणिपुर के त्रि- जंक्शन से शुरू होती है । मिजो लोग इस सीमांकन को इसलिए स्वीकार नहीं करते हैं कि इस सीमांकन के दौरान उनके प्रमुख से सलाह नहीं ली गई थी।

मिजो नेताओं ने कुछ अन्य संगठनों से मिलकर 2018 में विवाद से जुड़ा हुआ एक ज्ञापन प्रधानमंत्री जी को सौंपा था । इसमें इन्होंने कुछ इलाकों की बात की थी कि जिसे उन्होंने विवादित कहा था। मिजो लोगों ने संगठनों से मिलकर जो ज्ञापन प्रधानमंत्री को दिया था उसमें उन्होंने कहा कि कछार जिओन, लांगनुआम,लाला बाजार और बंगा बाजार जैसे अन्य लुसाई क्षेत्र मिजो लोगों की स्वीकृति के बिना 1930 और 1933 में हड़प लिए गए।

कैसे अंतर्राज्यीय सीमा का मामला खूनी झड़प में हुआ तब्दील :-

दो राज्यों के पुलिस प्रशासन, जनता के बीच हुई हिंसक झड़प जिसमें 6 पुलिसकर्मी जवान हो गए शहीद

अभी हाल ही में असम और मिजोरम के विवाद में जो हिंसक घटना हुई है। इस घटना में दोनों राज्यों के पुलिस प्रशासन के साथ-साथ आम नागरिक भी सम्मिलित हैं। जिस इलाके को लेकर गोली चली उसे असम अपने रिकॉर्ड में दर्ज बताता है लेकिन वहां बरसों से मिजो जनजाति के लोग खेती कर रहे हैं इस पर दोनों राज्यों के लोगों के बीच यह हमारी जमीन है यह हमारी जमीन है बातें होती हैं। 29 जून को असम की तरफ से जिला कलेक्टर और एसपी विवादित जगह पर दल बल के साथ पहुंचे। असम का कहना है कि वह अपनी जमीन को अतिक्रमण से हटाना चाहता है और जब मिजोरम में प्रशासन को खबर मिली तो वह भी अपने दल बल के साथ मौके पर पहुंच गए। इंडियन टूडे की रिपोर्ट के अनुसार असली विवाद जब शुरू हुआ जब असम के पुलिस ने अपना इलाका खाली कराने के लिए कुछ लोगों को खदेड़ दिया । इस दौरान सीमा के दौरे पर गई असम सरकार की टीम पर 10 जुलाई को एक आईईडी बम फेंका गया।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार क्यों हुई हिंसक झड़प

11 जुलाई को एक के बाद एक दो धमाकों की आवाज भी सुनाई दी। सवाल यह उठता है कि आम जनता के पास हथियार कैसे आए। इस प्रकार नई दिल्ली ने भी इस मामले में दखल दिया और दोनों राज्यों के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को दिल्ली बुलाकर बैठक करवाई। सोचा था कि यह मामला ठंडा होगा लेकिन नहीं। यह मामला एक तरफ से कार्रवाई फिर दूसरी तरफ से कारवाही ऐसी कार्रवाई के साथ चलते चलते खूनी मंजिल पर पहुंचा। 26 जुलाई को दोनों राज्यों के पुलिस में और आम जनता में झड़प हो गई। जिससे असम के 6 पुलिसकर्मी जवान शहीद हो गए।

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