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yogini murti: हमारा देश संस्कृति और सांस्कृतिक कलाकृतियों से भरा पड़ा है हमारे यहां के मंदिर आश्चर्य और कलाओं का अलग-अलग गाते हैं। प्राचीन इतिहास में अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेजों ने भी भारत के कई मंदिरों से मूर्तियों को उठाकर अपने देश इंग्लैंड ले गए और कुछ मूर्तियां या कलाकृतियां भारत में तस्करों द्वारा पैसों के लिए विदेशों में बेच दी गई। तस्करी करके ले जाएंगे मूर्तियों में से हाल ही में एक मूर्ति पेरिस के निजी निवास में मिली है और उसे वापस भारत में भी लाया जा चुका है। यह मूर्ति उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के एक मंदिर से चोरी की गई थी।
1400-1500 साल पहले तंत्र – मंत्र, जादू- टोना जैसी गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई। जैसे जैसे पूर्व मध्यकाल में सामंती गतिविधियां बढ़ती गई थी वैसे वैसे ऐसी गतिविधियां जैसे संकल्पना में बढ़ोतरी हुई थी क्योंकि सामंती गतिविधियों के बढ़ने से स्त्रियों पर अत्याचार बढ़ गए थे। जैसे सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा जैसी कुप्रथाओं का बोलबाला हो गया था।
स्त्रियों पर अत्याचार करने वाली प्रथाओं के कारण स्त्रियां अत्यधिक कष्ट में थी । उनको अपने गुस्से की अभिव्यक्ति करने का कोई माध्यम नहीं मिल रहा था तो उन्हें यह माध्यम धर्म और संस्कृति में नजर आया और अपने आप को अभिव्यक्ति किया । इसी से जुड़ी संकल्पना योगिनी की है। सचमुच में योगिनी कोई नहीं है । योगी का महिला रूप योगिनी कहा गया है, इन्हें देवियां ही माना गया है। इनके लिए समय-समय पर मंदिरों का भी निर्माण कराया गया है। बड़ी संख्याओं में मूर्तियां भी बनी हुई है । आज से 1000 साल पहले या 900 साल पहले योगिनी के लिए मूर्तियों का निर्माण और मंदिरों का निर्माण कराए जाने का प्रारंभ किया गया था ।यह अक्सर समूह में रखा जाता था । जैसे 64 का समूह है जिन्हें चौसठ योगिनी कहा जाता है। चौसठ योगिनी का मंदिर उड़ीसा के क्षेत्रों में और मध्य भारत जैसे मध्य प्रदेश के कुछ जिलों जैसे कालिंजर, महोबा, खजुराहो इत्यादि में इनके लिए मंदिरों का निर्माण कराया गया । कई मंदिरों में इन्हें खड़े हुए दिखाया गया है, साथ ही अपने वाहनों के साथ भी दिखाया गया है। कई मंदिरों में इन्हें विभिन्न मुद्राओं में प्रदर्शित किया गया है।
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लगभग 1000 साल पहले इन मूर्तियों का निर्माण कराया गया। जिनका शरीर तो मनुष्य का था लेकिन सिर पशुओं का होगा । जैसे भेड़, बकरी, भैंसा, बेैल इत्यादि। इसलिए यह मूर्तियां अत्यधिक रुचिकर होती हैं और इनकी मांग विदेशों में बहुत अधिक है तो भारत में प्रायः इन मूर्तियों के मंदिरों से चोरी कर ली जाती है और विदेशों में गैर कानूनी तरीके से बेच दी जाती हैं। अब जो मूर्ति हमें वापस मिली है यह भारतीय संस्कृति गौरव की पुनर्दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा ।