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अंबेडकर नगर से चलकर कामाख्या जंक्शन जा रही डाउन Train19305 कामाख्या एक्सप्रेस स्थानीय रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या दो पर रुकी। यह ट्रेन निर्धारित समय से लगभग ढाई घंटे लेट थी । जब जवान जनरल बोगी में जांच कर रहे थे, तब उन्हें 2 संदिग्ध बोरे दिखे। उन्होंने जब बोरो को खोल कर देखा तो उनमें कछुआ भरे हुए थे ।
पुलिस के जवानों ने जब Train के बोगी में बैठे यात्रियों से पूछताछ की तो वह बोरे उन में से किसी के नहीं थे और पुलिस को वहां पर तस्कर नहीं मिले। एसओ जीआरपी मारकंडेय यादव का कहना है कि इसकी जानकारी अधिकारियों के साथ ही वन विभाग को भी दे दी गई है । यह खबर पाकर वन दरोगा संजीव गुप्त वहां पहुंचे और उन्हें कछुओं को सौंप दिया। संजीव गुप्त ने कहा है कि इस मामले की जांच की जाएगी।
Train के बोगी में बोरों में मिले कछुओं की संख्या 90 थी। इन कछुओं को वन विभाग को सौंप दिया गया है। कछुआ की तस्करी करने वाले तस्करों को पुलिस नहीं पकड़ सकी है लेकिन इसकी जांच की जा रही है कि कौन इन कछुओं की तस्करी कर रहा था, और यह कछुए कहां से लाए गए हैं और कहां इन कछुओं को ले जाना था। कछुओं की तस्करी की खबरें हमेशा से आती रही हैं।
कछुआ को भारत में एक स्थान से दूसरे स्थान पर तो भेजा जाता ही है । साथ में कछुए को गैरकानूनी तरीके से विदेशों में भी भेजा जाता है। भारत से विदेशों में चीन, म्यांमार, ताइवान, सिंगापुर थाईलैंड आदि देशों में कछुओं की तस्करी की जाती है। भारत से सर्वाधिक चीन में कछुओं की तस्करी की जाती है।
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भारत में अंधविश्वास के कारण कछुओं को पकड़ा जाता है तथा घरों में रखा जाता है। और यह विश्वास करते हैं कि कछुआ को घर में रखने से धन की प्राप्ति होती है लेकिन यह सब अंधविश्वास है। माना जाता है कि कछुए का मांस स्वादिष्ट होता है इसलिए लोग उसके मांस को पसंद करते हैं और उसकी विदेशों में भी तस्करी करते हैं।
पुलिस द्वारा पकड़े गए एक अन्य के केस में तस्कर ने बताया कि कछुए को पकड़कर वह मार देते हैं । फिर उसकी खाल तथा मांस निकाल लेते हैं। उसकी खाल को उबाला जाता है और फिर सुखा लिया जाता है। इसे ही कैलिपी कहते है। कैलिपर की विदेशों में कीमत लाखों में होती है एक अन्य तस्कर द्वारा बताया गया कि चीन में इसका सूप बनाया जाता है और लोग बड़े चाव से इस सुख को खाते हैं। कैलिपी से कई शक्तिवर्धक दवाएं भी बनाई जाती हैं।