एक ऐसा देश जहां 97 फीसद महिलाओं पर अभी भी अत्याचार होता है। अगर गलती से बुर्का से पैर दिख जाने परकहीं अधिक उम्र की महिलाओं को पीटा जाता था, या प्रेमी के साथ भागने वाली महिलाओं को भीड़ में पत्थर मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता था, या पुरुष डॉक्टर द्वारा महिला रोगी के चेकअप पर पाबंदी से कई महिलाएं मौत के मुंह में चली गई, या फिर कई महिलाओं को घर में बंदी बनाकर रखा जाता था इसके कारण महिलाओं में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ने लगे।तालिबान की शुरुआत कब हुई?
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Taliban: 1990 की शुरुआत में ही उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उदय माना जाता है। इस समय सोवियत सेना अफगानिस्तान से वापस जा रही थी। पश्तून आंदोलन के सहारे तालिबान ने अफगानिस्तान में अपनी जड़े जमा ली थी। 1996 में तालिबान ने अफगानिस्तान के अधिकतर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। सन् 2001 में अफगानिस्तान युद्ध के बाद ये पहले से ही गायब हो गया था। 2004 के बाद इसने अपनी गतिविधियां दक्षिणी अफगानिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तान में बाढ़ आई है। इसमें फरवरी 2009 में पाकिस्तान की उत्तर पश्चिमी सरहद के करीब स्वात घाटी में पाकिस्तान सरकार के साथ एक समझौता किया। जिसके कारण वो लोगों को मानव बंद करेंगे। और साथ ही इसके बदले उन्हें शरीयत के अनुसार काम करने की छूट मिलेगी।
हालांकि माना जाता है पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा व इसके लिए सऊदी अरब में फंडिंग भी की। सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का इस आंदोलन में प्रचार भी किया जाता था।
तालिबान पर सांस्कृतिक दुर्व्यवहार और मानवाधिकार के उल्लंघन से जुड़े कई आरोप लगने शुरू हो गए थे। इसका एक उदाहरण 2001 में तब देखने को मिला। जब तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध के बाद भी मध्य अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध की प्रतिमा को नष्ट कर दिया। हालांकि तालिबान को बनाने और मजबूत करने के आरोप से पाकिस्तान हमेशा से इनकर करता रहा है। लेकिन इस बात पर कोई शक नहीं किया जा सकता कि शुरुआत में दाल बना दो लर्न से जुड़ने वाले लोग पाकिस्तान में मदरसों से निकले थे। जब तालिबान का अफगानिस्तान पर नियंत्रण था। तब तब दुनिया के उन 3 देशों में पाकिस्तान भी शामिल था। जिसने तालिबान सरकार को मान्यता दी थी। पाकिस्तान के अलावा संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब नेवी तालिबान सरकार को स्वीकार किया था।
पाकिस्तान तालिबान से अपने राजनयिक संबंधों को तोड़ने वाले देशों में से सबसे आखरी देश रहा। एक समय ऐसा आया जब तालिबान ने उत्तर-पश्चिम में अपने नियंत्रण वाले इलाके से पाकिस्तान को अस्थिर करने की धमकी भी दी। उसी समय में तालिबानी चरमपंथियों ने अक्टूबर 2012 को मिंगोरा नगर में अपने स्कूल से घर लौट रही मलाला यूसुफजई को गोली मार दी थी। तब मलाला यूसुफजई 14 साल की थी। इस घटना में वह बुरी तरह से घायल हो गई थी। उस वक्त पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी निंदा हुई। जबकि इस घटना के ठीक दो साल बाद तालिबानी चरमपंथियों ने पेशावर के एक स्कूल पर हमला किया था। उसके बाद पाकिस्तान में तालिबान का प्रभाव काफी कम हो गया।
अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाले तालिबान की क्रूरता और दरिंदगी से सारी दुनियां वाकिफ हैं। तालिबानियों का महिलाओं पर अब भी अत्याचार करना कोई नई बात नहीं है। हाल ही में तालिबान के हाथ लगने से पहले भागकर भारत एक महिला ने कट्टरपंथियों को लेकर जो खुलासा किया है। वो बेहद ही घिनौना और चौका देने वाला है। उसने बताया कि हमें वहां धमकाया जाता था कि अगर आप काम पर जाओगे तो आपकी फैमिली खतरे में है आप खतरे में है। एक वार्निंग देते थे, उठा के ले जाते थे अगर नहीं मानी तो आकर सिर में गोली मार देते थे। उस महिला ने बताया कि काबुल में मेरे साथ काम करने वाली एक महिला के साथ जो हुआ उसे याद करके उसकी रूह कांप उठती हैं। उसने कहा “20-25 दिन के बाद भी जब डेड बॉडी मिली। तो वे लोग डेड बॉडी के साथ भी सेक्स करते हैं। यह नहीं कि वह बॉडी मर चुकी है। वो उसको मरने के बाद भी नहीं छोड़ते। आप क्या इसकी कल्पना भी कर सकते हैं…?”
उस महिला ने आगे बताया कि, वे लोग चाहते हैं कि हमें हर घर से लड़की मिले। अगर लड़की नहीं मिली तो परिवार वालों को गोली से मार डालते हैं। 10-12 साल की लड़कियों को भी उठाकर ले जाते हैं।”सबसे बड़ी बात है कि तालिबान हमेशा यह कहते हैं कि हम बदल गए हैं। लेकिन यह सिर्फ और सिर्फ उनका दिखावा है।