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Sharif Chacha: लावारिस लाशों के मसीहा कहे जाते हैं । ये समाज सेवी है जिन्होंने अपने निस्वार्थ सेवा भाव से पूरी दुनिया में एक मिसाल कायम की है । शरीफ चाचा लावारिस लाशों का पता लगाने पर उसका स्वयं ही अंतिम संस्कार करते हैं।
Sharif Chacha अयोध्या से फैजाबाद के रहने वाले हैं। Sharif Chacha के निस्वार्थ भाव से सेवा के लिए राष्ट्रपति भवन में इन्हें पदम श्री से सम्मानित किया गया है। बुजुर्ग शरीफ चाचा जो 80 वर्ष के हैं इन्हें लावारिस लाशों के मसीहा कहा जाता है। हुआ यह था कि शरीफ चाचा के बड़े पुत्र की किसी ने किसी बात के चलते हत्या कर दी थी और लावारिस लाश समझकर इन के बड़े पुत्र का अंतिम संस्कार करा दिया । इस घटना ने Sharif Chacha के जीवन पर ऐसा असर डाला कि तब से अब तक लगभग 25 सालों से शरीफ चाचा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करते चले आ रहे हैं। लगभग 25 वर्षों में इन्होंने लगभग 5 से 6 लाशों को दफनाया है। इनमें से जो हिंदू थे उन्हें जलाया है तथा जो मुस्लिम थे उन्हें दफनाया है। शरीफ चाचा वाकई में एक मसीहा हैं क्योंकि इन्हें जो लाशें मिलती है कोई क्षत-विक्षत होती हैं, कोई का शरीर से धड़ से अलग होता है । कई लाशें सड़ी गली भी होती हैं। उन्हें छूना तो दूर की बात है कोई आम आदमी देखना भी नहीं चाहेगा।
Sharif Chacha लाशों को उठाकर तथा उन्हें नहलाकर पूरे क्रिया कर्म के साथ लाशों का अंतिम संस्कार करते हैं जोकि सराहनीय और काबिले तारीफ है। लावारिस लाशों को अंतिम संस्कार के लिए चंदा जोड़कर लाशों को दफनाया जाता है। जब पहली बार चाचा ने इस काम को करने का बीड़ा उठाया था । तब वह अपनी साइकिल पर तथा अपने कांधे पर लाश लेकर जाया करते थे लेकिन उनके इस काम को देखकर लोगों द्वारा चंदा जोड़कर एक चार पहिए वाले ठेला की व्यवस्था की गई । शरीफ चाचा कई बड़ी हस्तियों से मिले और शरीर चाचा को लोगों द्वारा सम्मानित किया गया।
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जब भारत एक नई सोच की पत्रकार पल्लवी राय शरीफ चाचा का इंटरव्यू लेने अयोध्या गई तो शरीफ चाचा ने बताया कि उन्हें मौखिक तौर पर पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कर दिया गया है लेकिन किसी प्रकार की ट्रॉफी ,प्रमाण पत्र या कुछ भी नहीं दिया गया है । कोरोना के चलते यह कहा गया है कि बाद में मिलेगा । शरीफ चाचा ने कहा कि बड़ी-बड़ी हस्तियों ने उन्हें प्रमाण पत्रों से सम्मानित किया । लेकिन इन कागजों का मै क्या करूंगा। क्योंकि उस समय शरीफ चाचा का परिवार अत्यंत गरीबी से गुजर रहा था । जब शरीफ चाचा की आवाज को जोरो से उठाया गया तो 2021 को शरीफ चाचा को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया।
शरीफ चाचा लावारिस लाशों के मसीहा है, इसमें कोई दोराय नहीं है। यह काम बहुत ही सराहनीय है । अब शरीफ चाचा की उम्र 80 से ऊपर हो गई है। उनके बेटे की मौत के सदमे ने उन्हें मसीहा बना दिया। यह हमारे समाज के लिए हिम्मत, सहयोग, इंसानियत और सब्र का जीता जागता उदाहरण है।