World Bank: 2 वर्ष पहले आई कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया के तौर तरीकों को बदलकर रख दिया था । तमाम कम्पनियां भविष्य की अनिश्चितताओं के बीच उलझन में थीं और छंटनी कर रही थीं ऐसे में एक अच्छी जॉब की तलाश करना अपने आप में बेहद मुश्किल काम था । हाल ही में बिजनेस सोशल नेटवर्किंग साइट लिंक्डइन पर एक शख्स ने अपनी आपबीती बताई है कि कैसे उसे वर्ल्डबैंक में जॉब पाने के लिए कठिन दौर से गुजरना पड़ा । पर कहते हैं न कि संघर्ष कभी बेकार नहीं जाता और तमाम कठिनाइयों के बीच रास्ता निकल ही आता है । ऐसा ही कुछ इस शख्स के साथ भी हुआ ।
इस पोस्ट में
जब कोरोना महामारी दुनिया मे पैर पसार रही थी तब भारत के रहने वाले वत्सल नाहटा अमेरिकी यूनिवर्सिटी येल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर रहे थे । उन्हें उम्मीद थी कि ग्रेजुएशन पूरा होते ही उन्हें अमेरिका में ही अच्छी जॉब मिल जाएगी पर कोरोना महामारी ने उनकी ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सोच और तौर तरीकों को बदलकर रख दिया । नाहटा के तब और मुश्किल हो गया जब उनका ग्रेजुएशन उन्ही दिनों यानी अप्रैल 2020 में पूरा होना था।
ऐसे में वत्सल भविष्य को लेकर खासे चिंतित हो उठे । सोशल नेटवर्किंग साइट लिंक्डइन पर अपनी कहानी बयां करते हुए वत्सल उन दिनों को जब याद करते हैं तो संघर्ष की एक लंबी रेखा उनके जहन में तैर जाती है । बता दें कि वत्सल महामारी के समय न्यू हेवन, कनेक्टिकट स्थित येल यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल एंड डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स में मास्टर ऑफ आर्ट्स की पढ़ाई कर रहे थे और अपनी डिग्री लेने की तैयारी कर रहे थे ।
वत्सल लिंक्डइन पर अपना अनुभव शेयर करते हुए लिखते हैं कि उनके पास डिग्री थी पर जॉब नहीं थी । वह जहां भी कोशिश करते उन्हें निराशा ही हाथ लगती । उन्हें उस वक्त कोई भी नौकरी नहीं मिल रही थी जब उन्हें इसकी सख्त जरूरत थी । नाहटा उस दौर को याद करते हुए बताते हैं कि कोरोना के आने से हर कोई अनिश्चित था और कम्पनियां भी आगे की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयारी कर रही थीं
इसके लिए कम्पनियों ने छंटनी शुरू कर दी थी हजारों लाखों लोगों का रोजगार छिन चुका था ऐसे में कम्पनियों द्वारा नई भर्तियां करने का तो सवाल ही नहीं था । नाहटा बताते हैं कि मैं उस दौर में जॉब पाने की कोशिश कर रहा था जब कम्पनियां कर्मचारियों को निकाल रही थीं ।
लिंक्डइन पर पोस्ट शेयर करते हुए वत्सल नाहटा बताते हैं कि उनको जॉब न मिलने की एक वजह ये भी थी कि वह वीजा की शर्त कम्पनियों के सामने रखते थे । उस वक्त के तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वीजा नियमों में सख्ती कर दी थी जिससे कोई भी कम्पनी तैयार नहीं हो रही थी । वत्सल बताते हैं कि मैं बिना जॉब के भारत आने को तैयार नहीं था । मैं चाहता था कि जो भी कम्पनी मुझे जॉब दे वह मुझे वीजा भी स्पॉन्सर करे ।
और बात यहीं फंस जाती थी । वह बताते हैं कि जिस कम्पनी में भी वह जॉब के लिए अप्लाई करते वहां इंटरव्यू के अंतिम राउंड तक पहुंचने के बाद रिजेक्ट कर दिए जाते थे क्योंकि वह वीजा की शर्त रखते जिसे कम्पनियां इंकार कर देती थीं ।
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वत्सल बताते हैं कि उनके पास येल यूनिवर्सिटी की डिग्री थी लेकिन वह कोई काम नहीं कर रही थी। वह जिस भी जॉब पॉर्टल, कम्पनियों में अप्लाई करते रिजेक्ट कर दिए जाते । वह बताते हैं कि बेहद निराशा के दौर से गुजरते हुए आखिर उन्होंने तय कर लिया कि अब वह किसी भी कम्पनी में जॉब अप्लाई नहीं करेंगे । उन्होंने अपने लिए 2 लक्ष्य भी तय कर लिए थे । पहला ये कि बिना जॉब के वापस भारत लौटकर नहीं जाना है और दूसरा ये कि उनकी पहली सैलरी अमेरिकी डॉलर में ही होनी चाहिए ।
इसके बाद उन्होंने नेटवर्किंग का सहारा लिया और अनजान लोगों को ईमेल्स और कॉल्स करके जॉब मांगी । वह बताते हैं कि उन्होंने करीब 600 ईमेल्स और 80 कॉल्स किये । वह हर दिन किसी न किसी अनजान व्यक्ति को 2 बार कॉल करते थे। इसी बीच उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें रिप्लाई आने लगे । मई के पहले सप्ताह में उन्हें 4 जॉब ऑफर मिले जिनमें से एक ऑफर World Bank का भी था ।
आखिरकार उन्होंने World Bank में जॉब करना स्वीकार कर लिया । इसमें उन्हें वर्ल्डबैंक के मौजूदा रिसर्च डायरेक्टर के साथ मिलकर मशीन लर्निंग पर किताब लिखनी थी । फिलहाल वत्सल नाहटा इस वक्त आईएमएफ में इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड में रिसर्च एनालिस्ट के रूप में काम कर रहे हैं।