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Ladies के लिए अफसरों की असमानता, हमारे इतने बुरे दिन नहीं आए हैं कि हम अपने घर की औरतों से काम करवाएं।

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Ladiesकी अपेक्षा पुरुषों को अधिक एक्टिव माना जाता है :-

महिला और पुरुष में लैंगिक असमानता के कारण अवसरों में असमानता

Ladies को पुरुषों की अपेक्षा हर किसी क्षेत्र में पुरुषों से कम माना जाता है। भारत में जो अवसर महिलाओं को मिलते हैं, किसी काम या किसी जॉब को लेकर यदि बात करें तो महिला और पुरुषों में कोई काम को लेकर असमानताएं नहीं है फिर भी महिलाओं को कई परेशानियों का सामना अपने कार्यस्थल पर करना पड़ता है। 80 परसेंट महिलाओं ने लैंगिक भेदभाव के कारण उनके कार्यों में अफसरों की कमी बताई । कंपनियों या कोई कार्यक्षेत्र हो वहां पर महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को अधिक एक्टिव माना जाता है। Ladies भले ही पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करती हैं लेकिन लैंगिक असमानताएं बनी रहती हैं। उन्होंने माना कि भारत की 37% कामकाजी महिलाओं की पुरुषों की तुलना में कम अफसर और बहुत कम वेतन प्राप्त करने का दावा किया है । महिलाओं को कम वेतन मिलने पर 21% पुरुषों ने यह दावा किया और माना कि महिलाओं को पुरुषों की तरह अवसर प्राप्त नहीं होते हैं।

Ladies पर होती है बच्चों की जिम्मेदारियां इसलिए उन्हें कम अवसर प्राप्त होते हैं :-

Ladies ने माना है कि घरेलू जिम्मेदारी के चलते उन्हें अपने कार्य क्षेत्र में बाधित होना पड़ता है। घरेलू कामकाजी Ladies को व्यवसाय या कंपनियों में किसी जिम्मेदारी के चलते जैसे कि बच्चों की जिम्मेदारी या घर में कोई और जिम्मेदारी काम आ गया है तो उन्हें अपने कार्य क्षेत्र में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। 63 से 69% कामकाजी महिलाओं को घरेलू जिम्मेदारियों के चलते भेदभाव का सामना करना पड़ता है । महिलाओं- पुरुषों को एक ही लक्ष्य होने के बावजूद लैंगिक असमानता के कारण महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम अवसर प्राप्त होते हैं।

Ladies तरक्की की दौड़ में रह जा रही हैं पीछे

Ladies सुरक्षा को ध्यान में रखकर महिलाएं अधिक रात तक काम नहीं कर पाती इसलिए कंपनी वाले पुरुष वर्कर रखते हैं :-

हमारे समाज के पुरुष- महिलाएं रूढ़िवादी सोच के कारण आगे नहीं बढ़ पाते हैं। जैसे  कि घर में पुरुष है तो उसे ही घर का मुखिया माना जाता है। वह जो कह दे घर में सब लोग वही मानते हैं। महिलाएं अपनी सोच और विचारों को नहीं निकाल पाते और आगे नहीं बढ़ पाते । रूढ़िवादी सोच के चलते महिलाओं में आज भी शिक्षा की कमी जागरूकता का अभाव है। एक तरफ महिलाओं का काम और दूसरा घर की जिम्मेदारी इन दोनों स्थिति को हैंडल करने में बाधाएं आती हैं। अपनी जिम्मेदारी के चलते प्रमोशन नहीं ले पाती हैं । और महिलाओं को अपना काम छोड़ना पड़ता है। सामाजिक सुरक्षा की कमी यदि किसी को एक वर्कर की जरूरत है जो देर रात तक काम करे सुरक्षा की दृष्टि से महिलाएं अकेले काम नहीं कर सकती इसलिए लोग सोचते हैं कि पुरुष वर्कर को रख लेते हैं। इस प्रकार कार्य क्षेत्र में महिलाओं के लिए अफसरों में यह बाधाएं आ जाती हैं। हमारे भारत में ऐसी बहुत सी महिलाओं से संबंधित घटनाएं हो चुकी हैं जो बहुत ही निंदनीय है। इससे महिलाओं को काम करने में बाधा आती है। घर के लोग डरते हैं कि कहीं रेप बलात्कार जैसी घटनाएं हमारी घर की महिलाओं के साथ ना हो।

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समाज पूर्वाग्रह से ग्रस्त है जैसे – महिलाएं हैं तो वह कमजोर हैं, कम दिमाग की हैं :-

सामाजिक सुरक्षा भी एक अहम मुद्दा है। भारत में Ladies के प्रति पूर्वधारणा है कि महिलाएं, पुरुषों की तरह काम नहीं कर सकती। पुरुष काम करें और उसमें गलती हो गई हो तो उसे  नजरअंदाज कर दिया जाता है। यदि महिलाओं से कोई गलती होती है तो कहा जाता है कि महिला है गलती तो करेगी ही। अभी हाल ही में एक आलिया भट्ट का स्कूटरी प्रचार आया है, जिसमें बताया गया है कि ट्रैफिक लगा है और हट नहीं रहा है, कोई बीच में गाड़ी अडाये  हुये है तो लोग कहते हैं कि लड़की चला रही होगी। इस विषय पर इस प्रचार में एक समाज को सीख दी गई है। इस प्रकार की समाज की छोटी सोच पर आघात किया है। महिला और पुरुष एक ही काम कर रहे है लेकिन पुरुष की वेतन ज्यादा होती है और महिला की वेतन कम होती है। यूट्यूब पर बहुत से ऐसे एजुकेशनल चैनल भी हैं और आमतौर पर सुनने को मिल ही जाता है कि महिलाओं में दिमाग की कमी होती है लेकिन इस दिमाग की कमी समाज ही होता है। महिलाओं को शिक्षित बनाएं, उन्हें नए-नए अवसर दें, खुली जिंदगी खुला वातावरण दें तो महिलाएं भी पुरुषों को सिखा देंगी। और अगर चारदीवारी में बंद करके, अनपढ़ बना कर रखेंगे तो खाएंगी तो आपका ही दिमाग। उन्हें कैसे पता होगा कि जेब्रा क्रॉस पर से रोड को क्रॉस करना होता है।

पुरुषों के मुकाबले Ladies को मिलती है कम वेतन

सरकारों ने प्रयास किया है लेकिन हकीकत में उनका प्रयास विफल है :-

– मातृत्व लाभ( संशोधन )अधिनियम 2017 सरकार ने मातृत्व अवकाश की अवधि को बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया है। इससे पहले मातृत्व अवकाश की अवधि 12 हफ्ते थी। सरकार द्वारा यह विचार भी किया गया है कि नियोक्ता द्वारा महिला को भुगतान की अवधि के बाद अगर महिला ऑफिस ना आकर घर पर काम करना चाहती है तो उसे work-from-home की अनुमति दी जा सकती है। वैसे इस कोरोना काउंट में महिला हो या पुरुष वर्क फ्रॉम होम हो रहा है।

– यदि Ladies जिस जिस स्थान पर काम कर रही हैं जिसमें 50 से अधिक कर्मचारियों वाले कार्यस्थल या प्रतिष्ठान को निर्धारित दूरी के भीतर महिलाओं के जो बच्चे हैं, उनके लिए क्रेच सुविधा बनाना सुनिश्चित की जाए। क्योंकि महिलाओं पर बच्चों को संभालने की जिम्मेदारियां रहती हैं जिसके कारण वह है काम नहीं कर पाते हैं यदि उन्हें बच्चों के लिए सुविधा मिलेगी तो वह अपना काम कर सकती हैं।

– यदि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न हो रहा है तो इस पर शिकायत की जा सकती है । यह अधिनियम 2013 में सुनिश्चित किया गया था।

– भारत संविधान के भाग 3 के मौलिक अधिकार की बात कहें तो अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समानता को बताया गया है और अनुच्छेद 15 में बताया गया है कि राज्य किसी नागरिक के साथ केवल धर्म, मूल वंश ,जाति ,लिंग ,जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता।

– अनुच्छेद 15 ( 3) में राज्य महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष उपबंध कर सकता है। इसमें अनुच्छेद 15 द्वारा कोई रोक-टोक नहीं होगी। अनुच्छेद 39 (क) में सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार है। चाहे वह महिला हो या पुरुष।

– आपने देखा होगा कि समान कार्य करने पर, समान मेहनत करने पर, भी Ladiesओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं मिलती है। अनुच्छेद 39( घ) में समान वेतन की बात कही गई है। अनुच्छेद 42 में कार्य कि न्याय संगत और मानव चित्र दशाओं की बात हुई । जहां सभी आराम से काम कर सके। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जो 8 मार्च को मनाया जाता है एक दिवस महिलाओं के लिए एक आंदोलन का प्रतीक है।

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