Samrat Prithviraj Chauhan एक ऐसा नाम जिसे सुनकर अफगानी राजा के रातों की नींद उड़ जाती थी। जिनका खौफ़ मुगलों के लश्करों कि नींव हिला कर रख देता था। तो आओ बच्चों अपने बैग से सामाजिक विज्ञान की किताब निकालो और भाग संख्या दो खोलो। आज हम वह कहानी सुनेंगे जो भारत के इतिहास का बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट रहा है। इसमें राजा और उनके राज्य को ध्यान से पढ़ना, याद रखना,और सीखना।
इसमें Samrat Prithviraj Chauhan के अलावा हमारे भारत की राजधानी दिल्ली की भी कहानी है। एनसीईआरटी पैटर्न से संबंध रखने वाली सातवीं क्लास की किताबें “हमारे अतीत” को पढ़ाते वक्त स्कूल में अध्यापक लगभग कुछ ऐसी ही बातें कहकर पढ़ाना आरंभ करते हैं।
इस पोस्ट में
बचपन में दादी-नानी के कहानियों-किस्सों या फिल्म टीवी सीरियल मैं संभवत आपने पृथ्वीराज चौहान की जो भी कहानियां पढ़ी या देखी होंगी वह संभवत इसी पृथ्वीराज रास्तों से निकली हैं। पृथ्वीराज रासो एक बहुत बड़ी कविता है जिसे साल 1000-1400 के दौर की रचना माना जाता है। देखा जाए तो हिंदी साहित्य को चार भागों में विभाजित किया गया है। आदिकाल,भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिककाल, साहित्य के इतिहास के इसी विकास क्रम में शुरुआती आरंभ को आदिकाल कहा जाता है।
पृथ्वीराज रासो एक ऐसी कविता है जिसमें सम्राट पृथ्वीराज चौहान की कहानी का उल्लेख किया गया है।इस कविता के लेखक चंदबरदाई माने जाते हैं। पृथ्वीराज रासो की कहानी का उल्लेख कुछ यूं है “पृथ्वीराज अजमेर शरीफ के राजा सोमेश्वर के बेटे थे” राजा सोमेश्वर का विवाह दिल्ली के राजा अनंगपाल की बेटी कमला से हुआ था। दूसरी बेटी की शादी कन्नौज के राजा विजयपाल से संपन्न हुई थी।जिनसे जयचंद ने जन्म लिया था।राजा अनंगपाल ने अपने नाती पृथ्वीराज को गोद लिया।
जिससे जयचंद को इस बात का बुरा लगा ।बाद में जयचंद ने यज्ञ का आयोजन किया और बेटी संयोगिता का स्वयंवर रखा, सम्राट पृथ्वीराज यज्ञ में नहीं आए तो बौखलाए जयचंद ने पृथ्वीराज की मूर्ति अपने दरवाजे पर रखवाई।संयोगिता को पहले से ही पृथ्वीराज पसंद थे। संयोगिता ने सम्राट पृथ्वीराज की मूर्ति पर माला डालकर अपने प्रेम का इजहार किया। जिसके पश्चात सम्राट पृथ्वीराज आए और युद्ध करके संयोगिता को दिल्ली लेकर चले आए।
हिंदी साहित्य के इतिहासकार और बड़े विज्ञानों में से एक आचार्य रामचंद्र शुक्ल थे जिनका जन्म 1884 और निधन 1941 में हुआ था। उन्होंने अपनी “हिंदी साहित्य का इतिहास” नामक किताब में लिखा है कि पृथ्वीराज रासो में दिए हुए साल ऐतिहासिक तथ्यों के साथ मेल नहीं खाते हैं।ऐसे में Samrat Prithviraj Chauhan के दौर में इसके लिखे जाने पर संदेह उत्पन्न होता है।अनेक विद्यानों ने इन कारणों से पृथ्वीराज रासो को 16 वीं शताब्दी में लिखा हुआ एक झूठा और जाली ग्रंथ ठहराया है।
रासो में चंगेज खान तैमूर जैसे कुछ बाद के शासकों के नाम आने से यह झूठ और शक मजबूत होता है। जैसा कि हमें इतिहास के किताबों से पता चलता है कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान का शासनकाल साल 1177 से 1192 तक था अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि चंदबरदाई या उनके बेटों का पृथ्वीराज रासो में लगभग 200 साल बाद के शासक तैमूर का जिक्र आना कैसे संभव है। हिंदी लेखक रायबहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा जो एक बहुत ही मशहूर इतिहासकार हैं उन्होंने भी पृथ्वीराज रासो को कल्पना और तथ्यों से दूर बताया है।
मिलिए 6 साल के गूगल बॉय से इनके पास सबका जवाब है गजब !
अफगानिस्तान में स्थित काबुल से 400 किलोमीटर दूर एक प्रांत है जिसका नाम गोर है,
यह वही जगह है जिस जगह के नाम पर शहाबुद्दीन मोहम्मद उर्फ मोईजुद्दीन मोहम्मद बिन साम का नाम मोहम्मद गौरी भी कहलाया और पूरा हिंदुस्तान आज भी उन्हें इसी नाम से जानता है।
सन, 1173 में गजनी की गद्दी पर मोहम्मद गौरी बैठे।1178 में गौरी में रेगिस्तान के रास्ते गुजरात में घुसने की कोशिश की लेकिन उसे शिकस्त हासिल हुई।फिर उसके बाद गौरी ने तैयारी के साथ लौटकर 1190 तक लाहौर ,पेशावर और सियालकोट को अपने कब्जे में ले लिया।
मोहम्मद गौरी और सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बीच 1191 में तराइन का युद्ध हुआ यह युद्ध तबरहिंद पर दोनों के दावे के चलते शुरू हुआ ।इतिहासकारों के मुताबिक पृथ्वीराज चौहान की सेना के सामने मोहम्मद गौरी की सेना तबाहो बर्बाद हो गई ।मोहम्मद गौरी की जान भी एक युवा खिलजी सवार ने बचाई थी।पृथ्वीराज चौहान उसके बाद तबर हिंद की ओर कूच किये। 12 महीने की घेराबंदी के बाद तबरहिंद पर जीत हासिल की।