तुम डाल डाल तो हम पात पात यह मुहावरा सरकार और किसान संगठनों पर बिल्कुल सटीक बैठता है। सरकार ने असंवैधानिक तरीके से बिल को पास करा लिया तो किसान संगठनों ने इस बिल का विरोध कर दिया और धरना प्रदर्शन पर बैठ गए।
फिर सरकार ने और हमारे हमारी गोदी मीडिया ने किसान आंदोलन में खालिस्तानी, एंटी नेशनल, विपक्षी पार्टी के होने के आरोप लगाए लेकिन किसानों ने अपने आंदोलन को बनाए रखा और सरकार और गोदी मीडिया के आरोपों को दरकिनार कर दिया।
सरकार ने कहा कि किसान आंदोलन में किसान है ही नहीं वह तो पिज़्ज़ा खा रहे हैं काजू किसमिस बादाम खा रहे हैं अंग्रेजी बोल रहे हैं एक ऐसा नहीं है तो किसानों ने इस बात का भी सरकार को जवाब दिया।
फिर सरकार सुप्रीम कोर्ट के पास गई उसने सोचा की सुप्रीम कोर्ट की बात तो किसानों को माननी ही पड़ेगी और किसान कानून समर्थकों की कमेटी बना दी। लेकिन किसानों ने कमेटी मानने से इंकार कर दिया।
इसके बाद 11 वें दौर की बातचीत तक कुछ भी हल नहीं निकला तो किसान आंदोलन में दंगा कराने के लिए दंगाइयों को प्रविष्ट करा दिया गया लेकिन पात पात पर रहने वाले किसानों ने इस साजिश का भी भंडाफोड़ कर दिया।