IAS Akanksha Bhaskar बनने से पहले एक Doctor थी। वह आज प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ ही साथ अपने डॉक्टर होने का फर्ज भी अदा कर रही हैं। आकांक्षा अपनी हर छुट्टी गरीबों के साथ बिताती हैं। उनकी समस्या सुनते हैं एवं उनका इलाज करती है। हालांकि आकांक्षा भास्कर एक बार पुरुलिया के संतुरी गांव में अस्पताल का जायजा लेने पहुंची थी। चिकित्सा केंद्र की हालत देख वो बहुत नाराज हुई। संसाधनों की कमी के मद्देनजर उन्होंने खुद ही स्टेथोस्कोप उठाया और गरीब मरीजों का इलाज करने लगी।
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उत्तर प्रदेश के बनारस से ताल्लुक रखने वाली आकांक्षा भास्कर के माता-पिता दोनों ही डॉक्टर है। खुद आकांक्षा ने भी कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। उन्होंने कुछ वक्त तक डॉक्टर के रूप में काम किया। हालांकि सरकारी डॉक्टर के तौर पर उनकी पहली पोस्टिंग एक गांव में हुई थी। गांव के हालात को देखकर ही उन्होंने प्रशासनिक सेवा में आने का मन बना लिया था।
बता दें कि IAS Akanksha Bhaskar यह कहती है कि संतुरी के अस्पताल में पर्याप्त मेडिकल स्टाफ नहीं थे और ना ही मरीजों की संख्या के हिसाब से जरूरी सुविधाएं थी। मैं जब अस्पतालों के कमरों का जायजा ले रही थी। तब मुझे ये एहसास हुआ कि लोगों से जुड़ने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता। आकांक्षा भास्कर ने उस दिन 40 मरीजों का इलाज किया। जरूरी दवाइयों का इंतजाम किया। यह तो बस एक शुरुआत थी लेकिन अब यह छुट्टी के दिन की उनकी दिनचर्या बन गई है। छुट्टी के दिन वो इलाके की एसडीओ नहीं, बल्कि दूर-दराज के गांव में रह रहे आदिवासियों कि डॉक्टर बन जाती हैं।
आकांक्षा बताती है कि लोगों में अधिकारों को लेकर जागरूकता नहीं थी। एक डॉक्टर होने के नाते मैं उनकी बीमारी तो ठीक कर सकती थी। लेकिन उनके जीवन स्तर को और बेहतर बनाने के लिए मुझे जिन अधिकारों की जरूरत थी। वह प्रशासनिक सेवा में रहकर ही मिल सकती थी। 24 वर्ष की उम्र में आकांक्षा भास्कर ने पहले ही प्रयास में सफलता हासिल की। उन्होंने पूरे देश में 76वां रैंक हासिल किया।
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IAS Akanksha Bhaskar अक्सर गांव में हेल्थ चेकअप कैंप का आयोजन करवाती हैं। इनका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना ही होता है। गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार लेने की भी हिदायत दी जाती है। मां बनी महिलाओं को बच्चे के स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना भी सिखाया जाता है। इसके अलावा भी सभी मांओं को मेडिकल की सुविधा दी जाती है।
पुरुलिया की एचडीओ साहिबा यह बताती है कि मेरा मकसद इन आदिवासियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाना है। स्वास्थ्य इसमें पहली सीढ़ी है। हालांकि आकांक्षा भास्कर खुद ही इन कैंपों में सेवा देती हैं। वो बताती है कि इलाज करने के साथ ही वह क्षेत्र के बच्चों और युवाओं को प्रेरित एवं जागरूक भी करती हैं।