Happy Friendship Day 2022: देश की आजादी के 75 साल पूरे होने की खुशी में अमृत महोत्सव के रूप में जश्न मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता दिवस के 4 दिन पहले भी आज 7 अगस्त रविवार को इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे (International Friendship Day) 2022:मनाया जा रहा है। आज फ्रेंडशिप डे (Friendship Day 2022) के मौके पर हम आपको देश के उन वीर सपूतों की अनोखी दोस्ती की कहानी बता रहे हैं जिसे सुनकर आपकी आंखें नम हो जाएगी।
दोस्ती की अनोखी मिसाल पेश करने वाले तीनों दोस्त हंसते-हंसते और आजादी के गीत गाते हुए फांसी के फंदे से झूल गए थे। इन तीनों दोस्तों ने हमारे देश के आजादी में ऐसा महत्वपूर्ण बलिदान दिया है जिसकी बदौलत हम आज आजाद हैं।
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शहीद वीर भगत सिंह ऐसे क्रांतिकारी थे जिनके प्रयासर ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक अलग आयाम पर पहुंचा दिया था। भगत सिंह और उसने दो जिगरी दोस्तों शिवराम हरि राजगुरु और सुखदेव थापर ने मरते दम तक एक दूसरे का साथ निभाया था। देश की आजादी के लिए तीनों ने हंसते हुए अपने जीवन का बलिदान दे दिया।
सुखदेव, राजगुरु के अलावा बट्टूकेश्वर दत्त जयदेव कपूर भगवती चरण गौरा, और शिव वर्मा आदि भगत सिंह के मित्र थे। आजादी के मतवाले यह दोस्त अपने साथी को बचाने के लिए अपनी जान को खतरे में डालने से भी नहीं घबराए थे। शहीद भगत सिंह ने जो नौजवान भारत सभा का गठन किया था, उसमें इन मित्रों की बदौलत ही आगे चलकर इस सभा से हजारों की संख्या में नौजवान जुड़ चुके थे।
भगत सिंह से सुखराम थापर की पहली मुलाकात लाहौर नेशनल कॉलेज में हुई थी। दोनों दोस्तों की विचारधारा एक दूसरे से काफी मिलती जुलती थी इसलिए चंद दिनों में दोनों के बीच काफी गहरी दोस्ती का रिश्ता बन गया था। यह वह सुखदेव थापर ही थे जिन्होंने सिर्फ 12 साल की उम्र में अंग्रेज अफसरों को सैल्यूट करने से इंकार कर दिया था क्योंकि जलियांवाला बाग कांड में हुए नरसंहार को लेकर सुखदेव में गुस्सा फूट फूट कर भरा हुआ था।
दोनों के बीच गहरी दोस्ती होने के नाते भगत सिंह और सुखराम थापर ने मिलकर ही देश की आजादी के लिए कई क्रांतिकारी घटनाओं को साथ में अंजाम दिया था। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और नौजवान भारत सभा की इसके बाद ही सदस्य भी बने थे।
क्रांतिकारी भगत सिंह वह दोस्त थे जिन्होंने जेल में कैद होने के समय भी अनशन किया था। उन्होंने अनशन इसलिए किया था कि जेल में उनके कैदी मित्रों को अच्छा खाना नहीं मिलता था। भगत सिंह के अनशन से अंग्रेज हुकूमत भी हिल गई और उस बाद भारतीय कैदियों को जेल में अच्छा खाना परोसा जाने लगा था।
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लाहौर षडयंत्र कांड में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को साथ में फांसी की सजा सुनाई गई थी। ये तीनों दोस्त पुलिस सहायक अधीक्षक की हत्या में शामिल थे। दिसंबर 1928 में, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव थापर ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए लाहौर में ब्रिटिश अधिकारी जेम्स स्कॉट की हत्या की योजना बनाई थी। हालांकि, गोली एक सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स को मारी गई थी। अंग्रेज हुकूमत ने भगतसिंह को कैद कर लिया और उसके बाद अदालत में राजगुरु और सुखदेव ने भी भगतसिंह का साथ देते हुए अपनी गिरफ्तारी दी थी।
Happy Friendship Day 2022, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को साथ में फांसी होनी थी इससे पहले जब तीनों से जेलर ने उनकी अंतिम इच्छा पूछी तो तीनों ने कहा मरने से पहले हम आपस में गले मिलना चाहते हैं। जेलर ने उनकी अंतिम इच्छा पूरी की और फांसी से पहले तीनों के हाथों का बंधन खोल दिया गया और तीनों ने एक दूसरे को गले लगाया और अंत में फांसी के फंदे को चूम कर हंसते हुए देश पर अपनी जान न्यौछाव कर दी।
Happy Friendship Day 2022, तीनों आजादी के मतवालों को लाहौर की सेट्रल जेल में बड़े ही गुपचुप तरीके से फांसी दे दी गई थी और बाद में उनके शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया था।