पिछले दो हफ्तों से जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर ब्रितानी शहर ग्लासगो में जारी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन COP-26 सम्मेलन अब खत्म हो चुका है। पिछले दो हफ्तों से जारी दुनिया के तमाम राजनेताओं ने इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जरूरी उपाय करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है। इसके बावजूद भी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रुकना संभव होगा ही नहीं।
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वैश्विक साझेदारी की घोषणा काप-26 में मीथेन के उत्सर्जन को कम करने के लिए अमेरिका व यूरोप संघ ने सन् 2030 तक ग्रीनहाउस गैस व मीथेन के उत्सर्जन को कम करने के लिए वैश्विक साझेदारी की घोषणा की है। ग्लोबल वार्मिंग को वायुमंडल में मीथेन की कटौती को तेजी से कम करने की दिशा में एक बेहतर विकल्प माना जा रहा है। दुनिया के 40 से भी ज्यादा देशों ने कोयले का उपयोग कम करने का संकल्प लिया है। चूंकि अमेरिका व चीन जैसे देश जो सबसे ज्यादा कोयले का उपयोग करते हैं, वो ही इस संकल्प से दूर रहें। इसके साथ विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन का सामना करने एवं इससे होने वाले नुकसान की भरपाई करने के लिए नए आर्थिक कोष बनाने की घोषणा हुई है। दरअसल विशेषज्ञों का यह मानना है कि यह काफी नहीं है। अमेरिका समेत दुनिया के कई मुल्कों ने घोषणा करते हुए, इस दशक में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही सीमित करने के लिए साथ काम करने की घोषणा की है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बताया कि यह लक्ष्य पहले से ही जीवन रक्षक प्रणाली पर था। उन्होंने बताया कि यह संभव है कि इस सम्मेलन में सरकारी कार्बन उत्सर्जन में पर्याप्त कटौती करने के लिए राजी न हो। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित कर दिया जाए तो हमारी दुनिया में जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े खराब प्रभावों से बचा जा सकता है। फ्रांस की राजधानी पेरिस में वर्ष 2015 में हुए एक ऐसे ही सम्मेलन में वैश्विक नेताओं ने संकल्प लिया था, कि दुनिया के तापमान में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि रोकने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती भी की जाएगी।
तापमान में अब 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी के एक आकलन के अनुसार दुनिया के तापमान में अब 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होने जा रही है। इसका असर कितना पड़ेगा इस बात से समझा जा सकता है कि अगर मात्र 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई तो पूरी दुनिया में मौजूद कोरल रीफ समाप्त हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बताया कि सरकारों द्वारा उत्सर्जन कम करने के वादों का कोई विशेष मतलब नहीं है, क्योंकि सरकारों ने तो लगातार जीवाश्म ईंधन में निवेश करना जारी रखा है। गुटेरेस ने अब तक ग्लासगो में किए गए वादों को नाकाफी बताते हुए कहा कि हमें पता है कि क्या करना चाहिए। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि उम्मीद आखिरी पल तक बनी हुई है।
इस समझौते में गरीब देशों का सहयोग करने की अपील अमीर देशों से की गई है, कि वो जलवायु परिवर्तन का सामना करने में गरीब देशों की मदद करें। समझौते में पहले से ही सरकारों ने तेज गति से ग्रीन हाउस के गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने की बात कही है। वैज्ञानिकों ने बताया अगर दुनिया के औसत तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी को रोका जा सके तो जलवायु परिवर्तन के इस बेहद ही खतरनाक प्रभावों से बचा जा सकता है।