Faridkot House: Faridkot Royal Property Dispute, बुधवार को उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाते हुए 30 साल से चल रहे संपत्ति विवाद को खत्म किया है। यह मामला फरीदकोट के महाराजा की करीब 20 करोड़ की संपत्ति को लेकर था। अपना हक पाने के लिए बेटियां करीब 30 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रही थी। महाराजा की संपत्ति में किला, हीरे जवाहरात, राजमहल से लेकर अन्य कई जगहों पर स्थित इमारत में भी शामिल है
अब मामले (Faridkot Royal Property Dispute) में दो बहनों की जीत हुई है और उन्हें संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दिए जाने का फैसला भी बरकरार रखा गया है। CJI यूयू ललित, जस्टिस एस रविंदर भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कुछ सुधारों के साथ हाई कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को बरकरार रखा है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को 28 अगस्त को सुरक्षित रखा था।
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महारावल खेवाजी ट्रस्ट और महाराजा की बेटियों (Property Dispute)के बीच चली यह कानूनी लड़ाई कानूनी इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाली लड़ाई में से एक है। कोर्ट ने महाराजा की वसीयत को खत्म करते हुए 33 साल बाद महारावल खेवाजी ट्रस्ट को भंग करने का फैसला भी सुनाया। वहीं, इस सिलसिले में ट्रस्ट के सीईओ जागीर सिंह सरन ने कहा, ‘अभी तक हमें सिर्फ सुप्रीम कोर्ट का मौखिक फैसला ही पता चला है, लिखित आदेश नहीं मिला है।
जुलाई 2020 में ट्रस्ट (Faridkot House Royal Property Dispute) ने खुद ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी। उस बाद 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देते हुए ट्रस्ट की निगरानी की अनुमति दी थी।
2013 में चंडीगढ़ जिला अदालत ने दोनों बेटियों अमृत कौर और दीपिंदर कौर (Amrit Kaur and Deepinder Kaur) के पक्ष में फैसला सुनाया और हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि ट्रस्ट के लोग संपत्ति हड़पने की साजिश करते हुए फर्जी बातें बता रहे हैं।
साल 1918 में अपने पिता की मृत्यु के बाद, हरिंदर सिंह बराड़ को महज 3 वर्ष की आयु में महाराजा बनाया गया था। वह इस रियासत के अंतिम महाराजा थे। उनकी तीन बेटियां अमृत कौर, दीपिंदर कौर और महीपिंदर कौर और एक बेटा टिक्का हरमोहिंदर सिंह था। 1981 में एक सड़क दुर्घटना में महाराज के बेटे की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद महाराज डिप्रेशन में चले गए थे और सात-आठ महीने बाद उसकी वसीयत बनाई गई।
महाराज हरिंदर सिंह बराड़ की संपत्ति की देखभाल के लिए एक ट्रस्ट का गठन हुआ था। इस बात की जानकारी उनकी पत्नी नरिंदर कौर और मां को भी नहीं थी। वहीं ट्रस्ट के चेयरपर्सन और वाइस चेयरपर्सन के तौर पर दीपिंदर कौर और महीपिंदर कौर को नियुक्त किया गया है। इस वसीयत में यह भी लिखा था कि बड़ी बेटी अमृत कौर ने महाराजा की मर्जी के खिलाफ शादी की है, इसलिए उसे बेदखल कर दिया जाता है। यह बात उस समय खुलकर सामने आई जब 1989 में महाराज की मौत हो गई।
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Faridkot House, महाराज की पुत्री महीपिंदर कौर की संदिग्ध परिस्थितियों में शिमला में मौत हो गई। बडी बेटी अमृत कौर ने 1992 में स्थानीय अदालत में मामला दायर करते हुए कहा कि हिंदू संयुक्त परिवार होने के कारण संपत्ति पर उनका ही अधिकार था, जबकि पिता की वसीयत में सारी संपत्ति ट्रस्ट को दे दी गई थी। अमृत कौर ने इस वसीयत पर सवाल उठाया था।
Faridkot House, आजादी के बाद महाराज को 20 हजार करोड़ की संपत्ति मिली थी जिसमें चल और अचल संपत्ति भी शामिल है। दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, और हरियाणा के अलावा चंडीगढ़ में भवन और जमीनें मौजूद हैं। 1885 में बना फरीदकोट का राजमहल 14 एकड़ में है। अब इसके एक हिस्से में 150 बेड का चैरिटेबल अस्पताल चल रहा है। वहीं 1775 में 10 एकड़ में बने किला मुबारक, फरीदकोट को राजा हमीर सिंह ने बनवाया था। यहां जो इमारत अब बची है उसका निर्माण 1890 में हुआ था।
Faridkot House, नई दिल्ली में कॉपरनिकस मार्ग पर जमीन का एक बहुत बड़ा टुकड़ा मौजूद है जिसे केंद्र सरकार ने किराए पर लिया हुआ है। केंद्र सरकार हर महीने करीब 17 लाख के किराए का भुगतान करती है और इसकी कीमत करीब 9 साल पहले 1200 करोड़ रुपए थी।
वहीं शिमला का फरीदकोट हाउस और चंडीगढ़ में मणीमाजरा किला भी महाराजा की संपत्ति में शामिल हैं। 1929 मॉजल ग्राहम, 1929 मॉडल रोल्स रॉयस, 1940 मॉडल बेंडली, डामलर, जैगुआर, पैकार्ड भी हैं जो कि अभी चलतू हालत (running condition) में हैं। इसकेअलावा मुंबई के स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के पास 1 हजार करोड़ के हीरे जवाहरात भी सुरक्षित हैं।