Antarctica: धरती पर जीवन की उत्पत्ति कब हुई और कब से है? यह एक ऐसा कंफ्यूज कल देने वाला बड़ा ही कठिन सवाल है जिसका संतोषजनक जवाब तो आज तक किसी को भी नहीं मिल पाया है। अक्सर ही वैज्ञानिक इस सवाल के जवाब को लेकर नए-नए दावे किए जाते हैं अब वैज्ञानिकों को 10 लाख वर्ष पुराना डीएनए (Discovery in Antarctica) का अंश मिला जो अब पृथ्वी पर जीवन की उतपत्ति को लेकर नई बहस भी छेड़ सकता है।
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अंटार्कटिका (Antarctica) के उत्तर में स्कोटिया सागर (Scotia Sea) के तल के नीचे वैज्ञानिको कों कार्बनिक पदार्थों के अंश मिले हैं। तलछटी में पाए गए इस DNA को सेडाडीएनए (sedaDNA) कहते हैं। बरामद किए गए य नमूने अंटार्कटिका (Big Discovery By Scientists In Antarctica) के इतिहास और भविष्य को समझने में काफी हद तक मददगार साबित हो सकते हैं।
ऑस्ट्रेलिया में तस्मानिया यूनिवर्सिटी की मरीन ईकोलॉजिस्ट लिंडा आर्मब्रेक्ट (Linda Armbrecht) का कहना है कि ये अब तक का सबसे पुराना प्रमाणित समुद्री सेडाडीएनए (1 Million Years Old DNA) है। अब तक सेडाडीएनएन (sedaDNA) अलग-अलग वातावरण में मिला है जिसमें गुफाएं, सबआर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट भी शामिल हैं, ये 4 लाख और 6.5 लाख साल पुराने डीएनए थे।
कम ऑक्सीजन, ठंडे तापमान, और यूवी विकिरण की कमी ध्रुवीय समुद्री वातावरण बनाती है जिससे स्कोटिया सागर (Scotia Sea) जैसी लोकेशन में sedaDNA सुरक्षित रहते हैं। बरामद हुए डीएनए 2019 में समुद्र तल से निकाला गया था और इसे कंटैमिनेशन कंट्रोल प्रोसेस से गुजरना पड़ा ताकि DNA (Big Discovery By Scientists In Antarctica) की सही उम्र सुनिश्चित हो पाएं।
यह नहीं रिसर्च इस बात का प्रमाण है कि ये सेडा तकनीक हजारों सालों के पारिस्थितिक तंत्र को समझन में मददगार साबित हो सकती है, जिससे हमें यह मालूम होता है कि महासागरों में किस प्रकार बदलाव हुआ है।
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पिछले जलवायु परिवर्तनों और महासागर पारिस्थितिकी तंत्र इस पर प्रतिक्रिया को जानने का अर्थ होता है है कि दक्षिण ध्रुव के आसपास आगे क्या होने की संभावना है, इसके लिए अधिक सटीक मॉडल और भविष्यवाणियों के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी।
वहीं, इस सिलसिले में शोधकर्ताओं ने अपने प्रकाशित पत्र में लिखा है, “अंटार्कटिका धरती पर जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कमजोर क्षेत्रों में से एक है। वहीं, सबसे बढ़कर बात यह है कि पर्यावरणीय परिवर्तन के लिए इस ध्रुवीय समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के अतीत और वर्तमान प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करना भी एक बेहद ही जरूरी विषय है।” यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस (Nature Communications) में प्रकाशित किया गया है।