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King Cobra: इस गांव का नाम शेतफल है और यह पुणे से लगभग 200 किमी दूर सोलापुर जिले में स्थित है। यह गांव अपनी अनूठी परंपरा के लिए जाना जाता है । इस गांव के हर एक घर में घातक कोबरा सांप का स्थायी निवास होता है।गांव वाले इन सांपों की पूजा करते हैं। और उनके साथ परिवार के मेंबर की तरह व्यवहार करते हैं। हैरानी की बात यह है कि इन सांपों से गांव वालों को कोई नुकसान नहीं होता है।ये सांप घर में कहीं भीआजादी से रह सकते है। और इन्हें गांव में खुलेआम घूमने की आजादी है।इस गांव को देखने के लिए देश के दूर से लोग आते हैं।
कोडाइकनाल पहाड़ी स्टेशन के पास स्थित वेल्लागवी लगभग दो से तीन सौ की आबादी वाला एक छोटा सा गांव है, जहां मंदिरों की वहां के घरों से अधिक है। लेकिन यही कोई मुख्य कारण नहीं गांव के मशहूर होने का। इस गांव में किसी को भी जूते पहनने की आजादी नहीं है। आपको जानकर हैरानी होगी गांव वालों की तो बात छोड़िए बाहर का कोई भी व्यक्ति जो गांव में आता है वह भी जूता नहीं पहन सकता है।
अगर कोई व्यक्ति जूता पहने हुए पाया जाता है तो उसे सजा दी जाती है। इस गांव में जाने सड़क संपर्क मार्ग नहीं है। इस गांव में जाने के लिए घने जंगलों के द्वारा रास्ता तय करना पड़ता है जो कि 8 घंटे का है।
लोंगवा नागालैंड में मोन जिले का सबसे बड़ा गांव है और एकमात्र गांव है जो दोनों देशों द्वारा शेयर किया जाता है। जी हां आपने सही पढ़ा,भारत-म्यांमार की सीमा यहां से गुजरती है। गांव के मुखिया के घर को काटते हुए इसे दो हिस्सों में बांटती है। इस गांव का एक हिस्सा भारत में पड़ता है तो दूसरा म्यांमार में।
रिपोर्ट्स के मुताबिक,भारत में अपने शासन के अंतिम दिनों में ब्रिटिश मानचित्रकारों द्वारा इस सीमा को निर्धारित किया गया था। दोनों गांव में रहने वाले ग्रामीण कोन्याक जनजाति के हैं। 1970-71 में खींची गई, यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा ग्राम प्रधान के घर को दो भागों में बांटती है। इनका परिवार म्यांमार में भोजन करता है, और भारत में सोता है।
बिहार के कैमूर जिले के अधौरा खंड में स्थित बरवां कला गांव को कुंवारों के गांव के रूप में भी लोग जानते है। क्योंकि इस गांव में 50 वर्ष बाद 2017 में ही गांव में विवाह समारोह हुआ था। इसका कारण गांव में पर्याप्त सुविधाओं की कमी। 2017 से पहले, गांव तक पहुंचने का एकमात्र तरीका 10 किमी का रास्ता था, लेकिन गांव वालों ने पहाड़ियों और जंगल को काटकर 6 किमी की सड़क बनाई थी।
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नतीजा यह हुआ कि जिस गांव में कई दशकों से बिजली, पानी और स्वास्थ्य केंद्र नहीं था, उस गांव शादी का समारोह हुआ और दुल्हन का स्वागत किसी रानी की तरह किया गया।
हम सब जानते हैं कि इस दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत अब देश में नहीं बोली जाती है। लेकिन कर्नाटक में शिवमोग्गा के पास शिमोगा जिले में ‘मट्टूर’ नाम का एक छोटा-सा गांव है जहां संस्कृत बोलने की परंपरा बरकार हैं। भले ही इस राज्य की राज्य और मूल भाषा कन्नड़ है। 1991 में, एक संस्था, संस्कृत भारती ने मत्तूर में भाषा को बढ़ावा देने के लिए 10-दिवसीय कार्यशाला का एक कार्यक्रम किया, जिसमें कई मशहूर हस्तियों ने भाग लिया। इस गांव के लोगों ने दिल से इस भाषा को स्वीकार किया। गांव के एक विद्यालय संस्कार भारती में लगभग 5,000 लोगों को संस्कृत की शिक्षा दी जाती है।