( लेमरू हाथी रिजर्व ) जहां बनना था ‘लेमरू हाथी रिजर्व’  वहां बनने लगी कोयला खदान और कोल वाशरी ‘ ? जंगल काटने के विरोध में आदिवासी आंदोलन की नहीं की जा रही कोई सुनवाई ?

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छत्तीसगढ़ के जंगलों में विचरण करते जंगली हाथी

( लेमरू हाथी रिजर्व ) खतरे में है वन संपदा और  हाथियों का जीवन :-

( लेमरू हाथी रिजर्व ) यह कोयला परियोजना हसदेव और मांड नदियों के कछार बाली इस वन भूमि में प्रस्तावित है। 1 साल पहले अक्टूबर में इसी क्षेत्र में लेमरू हाथी रिजर्व भी बनना था लेकिन इसके बारे में अब सरकार बात नहीं कर रही है। उत्तर छत्तीसगढ़ स्थित हसदेव अरण्य क्षेत्र के जिन गांवों में राज्य सरकार “लेमरू हाथी रिजर्व” बनाने की सहमति ले रही थी अब वहां खदान और कोल वाशरी खोलने की अनुमति दे दी है।

इस खदान के संचालन का अधिकार अदानी ग्रुप के पास है जो राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को अलॉट की गई। सरगुजा जिले के गांव  साल्ही हरिहरपुर ,फतेहपुर ,घाट बर्रा और सूरजपुर जिले के जनार्दन पुर और गांव स्थित 1,252 एकड़ जमीन पर छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल ने मार्च 2021 में राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को खुली खदान और कोल वाशरी लगाने की अनुमति दे दी।

मंडराता जंगलों पर खतरा

इस क्षेत्र में 841 एकड़ में घना जंगल है जो अब बर्बाद होना प्रारंभ हो गया है। इससे पहले केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इस परियोजना को मंजूरी दी थी। कंपनी ने इस मंजूरी के लिए के लिए ग्राम सभाओं के जिस प्रस्ताव का हवाला दिया था गांव वालों ने ही उसे फर्जी बता दिया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल  से शिकायत की गई तो आदिवासी गांव वालों की शिकायत पर ध्यान ही नहीं दिया गया।

आदिवासी कर रहे हैं आंदोलन लेकिन सुनने वाला कोई नहीं :-

हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति और स्थानीय गांव वालों का आरोप है कि यह है पर्यावरण स्वीकृति छत्तीसगढ़ वाइल्डलाइफ बोर्ड के फर्जी दस्तावेज पेश करके हासिल की गई है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला का कहना है कि यह आदेश स्पष्ट बताता है कि हसदेव अरंड जैसे समृद्ध वन क्षेत्रों को बचाने और ग्राम सभाओं के निर्णय का विपक्ष में रहकर समर्थन देने के अपने वादे से कांग्रेस सरकार भी मुकरती नजर आ रही है पिछले एक दशक से आदिवासी लोग और उनके ग्राम सभाएं आंदोलन कर रहे हैं लेकिन कारपोरेट  से होने वाले मुनाफे के लिए सरकार आदिवासियों की आवाज को अनसुना कर रहे हैं।

प्राकृतिक संपदा हाथी और जंगल

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भूमि अधिग्रहण करने के लिए ” कोल वियरिंग एक्ट ” सरकार की एक चाल :-

‘कोल वियरिंग एक्ट’ एक केंद्रीय कानून है । इसके तहत सरकार उस भूमि का अधिग्रहण कर सकती है जिसके नीचे कोयला भंडार स्थित हो। इसके खिलाफ एक याचिका हाईकोर्ट  पेंडिग में है ।कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है भूमि अधिग्रहण कानून के तहत ग्राम सभाओं से सहमति न मिलता देख कर केंद्र सरकार इसी भूमि के लिए ” कोल वियरिंग एक्ट  “लाई थी । उस समय वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने इस पूरी प्रक्रिया को गलत बताया था और कहा था कि इस तरह के अधिग्रहण से पहले राज्य सरकारों से भी नहीं पूछा गया।

कोयला खनन

“लेमरू हाथी रिजर्व ” के लिए ली गई थी इन क्षेत्रों की जनता की सहमति

छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक की  (PCCF ) ने 30 सितंबर 2020 को CCF और DFO को पत्र लिखा था इसमें प्रस्तावित लेमरू हाथी रिजर्व के लिए 2 अक्टूबर की विशेष ग्राम सभा में सहमति प्रस्ताव पर कराने को कहा गया था और लगभग सभी गांव में ने लेमरू हाथी रिजर्व पर सहमति जताई थी। इस पत्र के साथ PCCF के सरगुजा के 39 और सूरजपुर वन मंडल के 8 गांवों की सूची दी थी जिसमें साल्ही  हरिहरपुर, फतेहपुर, तारा और जनार्दनपुर का भी जिक्र था।

कितने दिनों से अटका पड़ा है  “लेमरू हाथी रिजर्व “

छत्तीसगढ़ में जंगली हाथी और मनुष्यों के बीच जानलेवा संघर्ष से छुटकारा पाने के लिए तत्कालीन सरकार ने प्रस्ताव केंद्र सरकार के सामने रखा। 2007 में इसे मंजूरी दे दी गई लेकिन खान योजनाओं  के के कारण यह काम अटका रहा और फिर कांग्रेस की सरकार बनी तो अगस्त 2019 राज्य मंत्रिपरिषद ने 1995 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में लेमरू हाथी रिजर्व की घोषणा की और इस क्षेत्र को 3,827 वर्ग किलोमीटर  बढ़ा दिया गया इसमें अब मांड ,हसदेव अरंड और अन्य क्षेत्र शामिल हो गए लेकिन अब यहां कोयले की खान बननी है और यह काम शुरू भी हो गया है।

जंगली हाथियों से सावधान करता हुआ बोर्ड

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