

Yashwant Sinha
Yashwant Sinha: 18 जुलाई को देश के नए राष्ट्रपति का चुनाव होना है। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी दलों को एकजुट कर आम सहमति से एक उम्मीदवार उतारने पर मंथन भी चल रहा है। शरद पवार, महात्मा गांधी और फारुख अब्दुल्ला के पुत्र गोपाल कृष्ण गांधी के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से इनकार करने के बाद से अब अचानक यशवंत सिन्हा का नाम चर्चा में आ गया। विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है।
हालांकि Yashwant Sinha के नाम का प्रस्ताव तृणमूल कांग्रेस ने रखा था। इससे पहले यशवंत सिन्हा ने राष्ट्रीय कार्य के नाम पर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा भी दे दिया था। यशवंत सिन्हा ने ट्वीट कर सम्मान देने के लिए ही ममता बनर्जी का आभार व्यक्त किया। यशवंत के सियासी जीवन तथा केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्यकाल की बात करें तो इनकी छवि ‘मिस्टर यू-टर्न रही है।
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यशवंत सिन्हा चंद्रशेखर तथा अटल बिहारी बाजपेई के नेतृत्व वाली सरकारों में वित्त मंत्री रहे। यशवंत सिन्हा को भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े कई महत्वपूर्ण फैसले लेने का विषय दिया जाता है तथा उनके वित्त मंत्री रहते ही संसद में बजट पेश करने का भी वक्त शाम 5 बजे की जगह दिन में 11 बजे किया गया था। यशवंत सिन्हा ने वित्त मंत्री रहते ही अपने सरकार के कुछ नीतिगत फैसलों को भी बदला था। जिसके कारण से उन्हें मिस्टर यूटर्न भी कहा जाता है।
बिहार की राजधानी पटना की एक कायस्थ परिवार में 6 नवंबर 1937 को जन्मे यशवंत सिन्हा ने वर्ष 1958 में राजनीति शास्त्र में पोस्टग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद से वह पटना विश्वविद्यालय में अध्यापन करने लगे। वर्ष 1960 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में 12 वीं रैंक हासिल की तथा 24 वर्ष तक आईएएस अधिकारी के रूप में सब डिविजनल मजिस्ट्रेट से लेकर केंद्रीय वाणिज्य मंत्री के उप सचिव तथा जर्मनी के भारतीय वाणिज्यिक दूतावास के प्रथम सचिव तक अलग-अलग पदों पर सेवा दी। यशवंत सिन्हा ने ही जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर वर्ष 1984 में प्रशासनिक सेवा से भी इस्तीफा दे दिया तथा जनता पार्टी के सदस्य के रूप में अपने सियासी सफर का आगाज किया।
यशवंत सिन्हा को जनता (पीपुल्स) पार्टी (जेपी) ने वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में हजारीबाग सीट से चुनाव मैदान में उतारे। वर्ष 1986 में जनता पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया तथा 1988 में इस पार्टी से ही वह पहली बार राज्यसभा पहुंचे। वर्ष 1989 में जनता (पीपुल्स) पार्टी (जेपी) के गठन के बाद यशवंत सिन्हा को राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी मिली।
बता दें कि जनता (पीपुल्स) पार्टी (जेपी) को वर्ष 1989 में आम चुनाव में 143 सीटों पर जीत मिली तथा पार्टी ने वीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। हालांकि जनता पार्टी की सरकार का भारतीय जनता पार्टी तथा लेफ्ट ने भी बाहर से समर्थन किया था। यशवंत सिन्हा ने अपनी आत्मकथा ‘कंफेशंस ऑफ अ स्वदेशी रिफॉर्मर’ में लिखा है कि वीपी सिंह ने उनको सरकार में राज्य मंत्री बनने का भी ऑफर दिया था जिसको उन्होंने ठुकरा दिया था।
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सियासी परिस्थितियों ने फिर से करवट ली। जनता दल का गठन हुआ। जनता दल ने वर्ष 1990 में कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर के नेतृत्व में सरकार बनाई। तभी देश की अर्थव्यवस्था डंवाडोल थी। सियासत में महज वर्षो पुराने चेहरे Yashwant Sinha को तब चंद्रशेखर ने अपनी सरकार में वित्त मंत्री बना दिया। यशवंत सिन्हा के बाद में भाजपा में शामिल हो गए तथा 1996 में पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया।
आपको बता दें कि सक्रिय राजनीति से संन्यास का ऐलान करने के बाद से यशवंत सिन्हा ने आम आदमी पार्टी की तरफ से आयोजित मार्च में भी नजर आए। उनकी अरविंद केजरीवाल की पार्टी के साथ भी बढ़ती नजदीकियों की भी चर्चा रही। लेकिन Yashwant Sinha ने सक्रिय राजनीति से संन्यास के फैसले से भी यू-टर्न 2021 में ले लिया। Yashwant Sinha ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी का दामन थाम लिया।