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जाने महात्मा गांधी ने 102 साल पहले कैसे दी थी दुनिया की सबसे बड़ी महामारी को मात |

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इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है, यह पहली बार नहीं है कि दुनिया ऐसी किसी महामारी से मुकाबला कर रही है, 1918 में स्पेनिश फ्लू, पूरी दुनिया के करीब 10 करोड़ लोगों की जिंदगी छीन ली थी, तब महात्मा गांधी ने कुछ नियमों का पालन कर इस महामारी को हरा दिया था |

1918 की महामारी स्पेनिश फ्लू

कोरोना वायरस का खौफ इस समय पूरी दुनिया में फैला हुआ है, अभी तक इस वायरस की वजह से विश्व में 47256 लोगों ने अपनी जानें गंवा दी हैं, 9,37,567 लोग संक्रमित हैं, और यह आंकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । भारत में भी 1965 संक्रमित लोग हैं । जिनमें से 50 लोगों की मौत हो चुकी है । हालांकि कुछ लोग स्वस्थ होकर घर भी लौट चुके हैं केंद्र सरकार ने संक्रमण फैलने से रोकने के लिए 21 दिन का लॉकडाउन कर दिया है । यह पहली बार नहीं है, जब दुनिया ऐसी किसी महामारी का सामना कर रही है,

आज से 102 साल पहले 1918 में भी ऐसी ही एक महामारी ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई थी । अकेले भारत में तब करीब 14 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आए थे, खुद महात्मा गांधी भी इस बीमारी की चपेट में आ गए थे । तब उन्होंने गुजरात के अपने आश्रम में रहकर ही इस महामारी को मात दी थी |

महात्मा गाँधी स्पेनिश फ्लू से लड़ते हुवे

दुनिया पहले विश्व युद्ध से बाहर निकली थी कि 1918 में स्पेनिश फ्लू ने तबाही शुरू कर दी, एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में स्पेनिश फ्लू के कारण करीब 10 करोड़ लोगों की मौत हो गई थी |

महात्मा गांधी के एक सहयोगी ने इस बारे में बताया था कि 1918 में उन्हें भी स्पेनिश फ्लू हो गया था। तब उन्हें दक्षिण अफ्रीका से लौटे हुए केवल 4 साल हुए थे । उस वक्त महात्मा गांधी की उम्र 48 साल की थे । फ्लू होने पर उन्हें आराम करने के लिए कहा गया था उसके बाद वह लिक्विड डाइट पर चले गए थे ।

जब उनकी बीमारी की खबर सब तक पहुंची तब – एक स्थानीय अखबार ने लिखा था कि “महात्मा गांधी की जिंदगी सिर्फ उनकी जिंदगी नहीं बल्कि पूरे देश पूरे समाज की है”

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नियमों का पालन कर खुद भी बचे और अपने आश्रम वासियों को भी बचाए थे । महात्मा गांधी ने संयम, एकांतवास और लिक्विड डाइट पर भरोसा जताया जल्दी व स्वस्थ हो गए । इस दौरान उनके आश्रम में रहने वाले सभी लोगों ने महात्मा गांधी के नियमों का पालन किया। इससे आश्रम में रहने वाले सभी लोग इस फ्लू से बच गए |

सामुदायिक कार्यकर्ता लिन वान डेट ने कहा था कि ” प्रकोप की पहचान करने में गांधीजी की भूमिका अहम थी, साथ ही उन्होंने मरीजों को स्वस्थ रहने की सलाह दी थी, अगर उनके सुझाव पर अमल नहीं किया गया होता, तो बीमारी का प्रसार बहुत भयानक होता।

निराला की पत्नी का लू की वजह से निधन हो गया था – गांधी जी और उनके सहयोगी किस्मत के धनी थे, कि वह सब बच गए । हिंदी के मशहूर लेखक और कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की बीवी और घर के कई दूसरे सदस्य इस बीमारी की भेंट चढ़ गए, उन्होंने लिखा था कि “पलक झपकते ही मेरा परिवार आंखों से ओझल हो गया ”

सूर्य कांत त्रिपाठी निराला

उन्होंने तब के हालत के बारे में लिखा था कि गंगा नदी शवो से पट गई थी, चारों तरफ इतने शव थे कि उन्हें जलाने के लिए लकड़ी भी कम पड़ रही थी।

खराब मौसम की वजह से सूखा पड़ने के बाद हालत और बिगड़ गई लोग और कमजोर होने लगे। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई, शहरों में भीड़ बढ़ने लगी इससे बीमार पड़ने वालों की संख्या बढ़ गई |

मुंबई के 7 पुलिसकर्मी बने थे पहले शिकार _

स्पेनिश फ्लू के कारण 10 जून 1918 में मुंबई के 7 पुलिसकर्मी को बुखार की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया गया । अगले कुछ हफ्ते में बीमारी तेजी से फैल गई । कई कंपनी के कर्मचारी इसके शिकार बन गए, वहीं हांगकांग और शाघाई बैंक में काम करने वाले भी इस गंभीर बीमारी की चपेट में आ गए ।

इस फ्लू की चपेट में आए मरीजों को बुखार, हड्डियों व आंखों में दर्द की शिकायत होती थी । रेलवे लाइन शुरू होने की वजह से देश के दूसरे हिस्सों में भी या बीमारी बड़ी तेजी से फैल गई |

बाद में असम में इस फ्लू का एक इंजेक्शन तैयार किया गया कथित तौर पर हजारों मरीजों का टीकाकरण किया गया इससे बीमारी को रोकने में कुछ कामयाबी मिली।

मारे गए थे करीब 1.75 करोड़ भारतीय: टर्नर मानते थे कि यह फ्लू मुंबई में लौटे सैनिकों के जहाज से 1918 में पूरे देश में फैला था । हेल्थ इंस्पेक्टर टर्नर के मुताबिक यह फ्लू का वायरस चुपके से भारत में घुसा और तेजी से फैल गया ।

उसी साल सितंबर में यह महामारी दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में फैलना शुरू हो गई । हालांकि आधिकारिक रिपोर्ट में 14 लाख भारतीयों के इस बीमारी में मारे जाने की बात कही गई है , लेकिन टर्नर के मुताबिक इसकी वजह से करीब पौने दो करोड़ भारतीयों की मौत हुई थी। यह संख्या विश्व युद्ध में मारे गए लोगों से भी ज्यादा थी । इस वक्त भारत ने अपनी आबादी का 6 फ़ीसदी हिस्सा इस बार बीमारी में खो दिया था। मरने वालों में महिलाओं की संख्या ज्यादा थी, ऐसा माना जाता है कि इस महामारी से दुनिया की 1/3 आबादी प्रभावित हुई थी, विश्व में करीब 5 से 10 करोड़ लोगों की मौत हुई थी।

जुलाई 1918 में हर दिन मर रहे थे 230 लोग

बड़ी आबादी के कारण मुंबई में संक्रमण फैलने के कारण तेजी से फ्लू का प्रकोप बढ़ता चला गया , देश में जुलाई 1918 में हर दिन करीब 230 लोग स्पेनिश फ्लू से मर रहे थे,

द टाइम्स ऑफ इंडिया ने तब लिखा था कि “मुंबई में करीब हर घर में किसी न किसी को बुखार की शिकायत है इसका सबसे अच्छा उपाय है कि चिंता ना करो और घर में रहकर आराम करो”

तब अखबार ने लोगों को सलाह दी थी कि वह दफ्तर और कैंटीन से दूर अपने – अपने घरों में रहे, इसके अलावा मेला, थिएटर, स्कूल ,सिनेमाघर, रेलवे प्लेटफार्म जैसे भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें, इसके अलावा हवादार घर में सोए पौष्टिक खाना खाएं और कसरत करने की सलाह दी गई थी,

फ्लू फैलने के कारणों पर अलग थी अफसरों की राय

भारत में स्पेनिश फ्लू फैलने को लेकर ब्रिटिश अधिकारियों की राय अलग थी हेल्थ इंस्पेक्टर टर्नर मानते थे कि मुंबई के बंदरगाह पर बाहर से आए जहाजों ने यह बीमारी भारत में लाई थी ।

वही सरकार का मानना था कि फ्लू बाहर से नहीं आया था बल्कि यही फैला था,

ब्रिटिश अधिकारियों को स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य की अनदेखी करने की कीमत चुकानी पड़ी थी डाक्टरों की भारी कमी ने हालत और खराब कर दी थी,

तो आज हमने इस आर्टिकल में आपको यह बताया कि कैसे महात्मा गांधी ने ना सिर्फ स्पेनिश फ्लू से अपनी जान बचाई बल्कि अपने आश्रम में रह रहे लोगों की भी जाने बचाई महात्मा गांधी ने अपने दृढ़ निश्चय और विश्वास से इस बीमारी को मात दी थी।

Brijendra Kumar

Founder and Chief Editor

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