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मैला ढोने वाले कर्मचारियों की लगातार मौत की खबर आती रहती है लेकिन इन मौतों पर कोई ध्यान नहीं देता और ना ही सरकार इसके लिए कोई उचित कदम उठाती है । कर्मचारी मैला ढोते हैं मरते हैं। और दूसरे कर्मचारी मिल जाते हैं और फिर मैला ढोते हैं और मर जाते हैं। भारत के सफाई कर्मचारी क्यों हाथों से मैला ढोने के लिए मजबूर हैं। स्वच्छ भारत अभियान के तहत करोड़ों का खर्चा किया गया। लेकिन अब भी भारत में क्यों नहीं है आधुनिक मशीन जिससे गंदे मैले से सीवर को साफ किया जा सके। क्यों गंदे नालों और शिविरों को साफ करने के लिए कर्मचारियों को अपनी जान की बाजी लगानी पड़ती हैं। काशी में प्रधानमंत्री मोदी जी ने कर्मचारियों पर जिस प्रकार पुष्पों की वर्षा की इसके बदले यदि सफाई कर्मचारियों बिजली कर्मचारियों को उनकी सेफ्टी से संबंधित व्यवस्थाएं कराएं तो कर्मचारियों को अच्छा भी लगेगा और सम्मान भी मिलेगा क्योंकि फूल तो मुर्दों पर भी बरसा दिए जाते हैं।
यह मामला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का है जहां सीवर में दो लोगों की मौत हो गई । बताया जा रहा है कि दोनों में से एक तो मजदूर है और दूसरा इंजीनियर है। यह लोग निजी कंस्ट्रक्शन के लिए काम करते थे। जिस सीवर टैंक में यह लोग घुसे थे । उसकी गहराई 20 फीट बताई जा रही है । यह जगह भोपाल के लाऊखेड़ी इलाके की है ।बताया जा रहा है कि सीवर के बाहर जूते उतरे थे। कोई दिखाई नहीं दिया जब पता चलाया तो पता चला कि सीवर टैंक में 2 लोग पड़े हैं। पुलिस को सूचना दी गई पुलिस आई और दोनों कर्मचारियों को बाहर निकाला अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इस घटना के अनुसार कंपनी की लापरवाही बताई जा रही है और जहां घटना हुई वहां केवल मृतकों के जूते रखे थे। मृतकों के पास कोई सुरक्षा का उपकरण नहीं था । पुलिस इस घटना की जांच में जुटी है दोनों व्यक्ति सीवर में उतरे थे या गलती से गिर गए थे। लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि वह गिरे होते तो बाहर जूते ना उतरे होते।