Delhi: आप प्रतिदिन अनेकों ऐसी खबरें पढ़ते रहते होंगे जिनमे कोई न कोई किसी न किसी कारण से आत्महत्या कर लेता होगा लेकिन बीते दिवस दिल्ली में जो सामूहिक आत्महत्या की घटना हुई वह इन सभी आत्महत्याओं से अलग है और इसकी वजह जानकर आप भी यही कहेंगे कि इस घटना के बाद मानवता शर्मसार है,तमाम मीडिया कर्मियों ने आपको इस घटना की अलग अलग तरह से खबरे दी होंगी
लेकिन इस घटना की वजह पर विस्तृत प्रकाश शायद ही किसी ने डाला हो इसलिये हम आपको विस्तार से बतायेंगे की आख़िर ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली की उन दो बेटियों को अपनी माँ के साथ आत्महत्या करनी पड़ी,वजह आपको यह कहने पर मजबूर कर देगी की अगर आज इंसानियत जिंदा होती तो वह दोनों लड़कियां भी अपनी माँ के साथ जिंदा हम सभी के बीच होती, बताते हैं पूरी ख़बर आप हमारे साथ बने रहें।
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क्यों पर बात करने से पहले आपको यह समझना जरूरी होगा कि आख़िर उस दिन हुवा क्या था,साउथ वेस्ट Delhi के बसंत बिहार इलाके में,दो लड़कियाँ अपने मां के साथ रहती थी,एक रात उन्होंने अपने घर की सभी खिड़कियों और दरवाज़ों को बंद करके घर मे रखी गैस को खोल दिया और इसके बाद वह बिस्तर पर अपनी माँ के साथ लेट गयीं,
पूरे घर ने गैस फैलने से घर एक गैस चेम्बर बन गया और दोनों बेटियों सहित मां की भी घुट घुट कर मृत्यु हो गयी। आप कल्पना कर सकते हैं कि किस तरह उनकी घुट-घुट कर मौत हुई होगी, सम्भव है कि सोंचकर ही आपके रोंगटे खड़े हो जायें,अब कल्पना कीजिये कि आखिर किस वजह से उन सभी को यह घातक क़दम उठाना पड़ा।
अगर उन तीनों में से कोई भी आज जीवित होता तो इस प्रश्न का उत्तर और अच्छे से मिल सकता था लेकिन अफ़सोस उनमे से कोई भी जीवित नहीं है, विभिन्न पड़तालो से यह बात निकल कर सामने आई है कि उन लड़कियों के पिता की कोरोना से मौत हो गयी थी जिसके बाद घर के हालात बिगड़ गये थे,माँ की तबियत इतना ख़राब थी कि वह बिस्तर से उठ तक नहीं पाती थी, जब तक घर सम्भाला जा सका उन लोगों ने संभाला, लेकिन जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हुई तो तीनों ने दुनिया को अलविदा कह दिया… उनका इस तरह दुनिया को अलविदा कह देना कितने लोगों का चेहरा उज़ागर करता है आगे देखिये।
दिल्ली में आजकल बहुत कुछ फ्री है लेकिन ज़िन्दगी शायद आज भी बहुत मंहगी है, कोरोना से मरने वालों के लिये Delhi सरकार ने कई तरह की व्यवस्थाये और मुआवजों की बात की है लेकिन वह मुआवजा किसे मिला यह पता नहीं,अगर व्यवस्थाओं का लाभ इस परिवार को मिला होता तो शायद यह घटना न होती, इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि सभी दावे सिर्फ किताबी हैं, ज़रूरत मन्द के हिस्से में आज भी मायूसी ही है,इस घटना ने सरकारी तंत्र की पोल खोलकर रख दी है।
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सरकार की बात छोड़कर अगर बात मानवता की करें तो सबसे पहला प्रश्न यही होगा कि आख़िर कहाँ गये इस परिवार के सभी रिश्तेदार क्यों कोई उनकी मदद करने को आगे नहीं आया,आस-पास के पड़ोसियों में क्या इतनी भी मानवता नहीं बची थी कि उनके सहयोग से कोई परिवार जीवित रह सके,दिल्ली में समाज सेवा के नाम पर करोड़ो का चन्दा इकट्ठा करने वाले समाज सेवी कहाँ हैं??उनकी सेवा इस परिवार तक क्यों नहीं पहुँची, यह सभी प्रश्न पूरी सामाजिक व्यवस्था को बेनक़ाब कर रहे हैं,अगर मानवता जिंदा होती तो यह परिवार भी जिंदा होता।