Ramesh Babu Barber: इंसान अपनी मेहनत और लगन से क्या नहीं कर सकता, जिंदगी में क्या नहीं बन सकता? आपने कई उद्योगपतियों, लीडर्स, फिल्म स्टार के किस्से सुने होंगे। जिन्होंने सिर्फ अपने विश्वास और कुछ कर गुजरने की जिद के चलते देश और दुनिया में एक बड़ा मुकाम हासिल किया। आज लोग उनकी मिसाले देते हैं।
ऐसे ही एक शख्सियत है Ramesh Babu Barber। जिन्हें लोग भारत का Billionaire Barber के नाम से भी जानते हैं। कभी गरीबी में जिंदगी बसर करने वाले रमेश बाबू आज बीएमडब्ल्यू, जैगुआर और रॉल्स रॉयस 85 करोड़ों रुपए की लग्जरी गाड़ियों से घूमते हैं। आज उनके पास शोहरत और पैसा सब कुछ है। आप यह सोच रहे होंगे कि यह सब कुछ एक बाल काटने वाले नाई के पास कैसे आया। तो चलिए हम आपको बताते हैं इनके बारे में।
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रमेश बाबू किसी रईस घराने में पैदा नहीं हुए थे। बल्कि उनका जन्म एक छोटे से गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता पी गोपाल बेंगलुरु में एक नाई थे। जब रमेश बाबू 7 साल के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। पिता अपने पीछे पत्नी, तीन बच्चों और एक छोटे सी नाई की दुकान छोड़कर गए थे।₹1 की भी बचत परिवार के पास नहीं थी।
पति की अचानक मृत्यु ने रमेश बाबू की मां को तोड़ कर रख दिया। 3 बच्चों के पालन पोषण के लिए वह नौकरानी बन गई। रमेश बाबू की मां महीने में 40 से 50 रुपए कमाती थी। इसी में खाना, बच्चों की पढ़ाई समेत सारे खर्च भी निकालने होते थे।
रमेश बाबू ने पूरा दिन सिर्फ एक टाइम खाना खाकर गुजारा किया और ऐसे ही वह बड़े हुए। पिता की मृत्यु के बाद से रमेश बाबू नाई की दुकान को चला नहीं सके और उसे उन्होंने ₹5 प्रतिदिन पर किराए पर दे दिया। रमेश बाबू भी अपनी मां का बोझ कम करने के लिए कुछ ना कुछ काम करते रहे ताकि उनकी थोड़ी सी मदद हो सके। 13 वर्ष की उम्र तक वह अखबार बांटते, घर-घर जाकर दूध की डिलीवरी जैसे काम करते रहें ताकि वह अपने परिवार को सहारा दे सके।
ऐसे ही अलग-अलग तरह के काम करके वह परिवार को सपोर्ट करते रहे और पढ़ाई भी जारी रखीं। दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद से रमेश बाबू ने फैसला किया कि वह अपने पिता की दुकान को चलाएंगे और आगे पढ़ाई नहीं करेंगे। उनके सैलून का नाम था Inner Space, जो एक शॉपिंग कांप्लेक्स के अंदर था और यह उसी स्कूल के पास था जहां रमेश बाबू पढ़ते थे। बहुत जल्द ही उनका सैलून ट्रेंडी हेयर कटिंग को लेकर मशहूर हो गया।
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बता दें कि बाबर रमेश बाबू कुछ करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने एक कार खरीदने की सोची। रमेश बाबू ने अपने सैलून से कुछ पैसे बचाएं और 1993 में एक मारुति वैन Omni खरीदी। लेकिन मैक्सिमम टाइम वह अपने सैलून में ही व्यस्त रहते। इसीलिए वैन ऐसे ही बेकार खड़ी रहती। उनका कोई उपयोग होता ना देख उन्होंने उसे तब किराए पर देना तय किया जब वह बेकार खड़ी रहती थी। मगर यह कौन जानता था कि उनका यह फैसला उन्हें 1 दिन करोड़पति बना देगा।
रमेश बाबू को उनका पहला बिजनेस ऑर्डर एक परिवार से मिला। यह वही परिवार था जिनके घर पर उनकी मां काम करती थी। जब वह छोटी थी धीरे-धीरे उनके ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी। अब रमेश ऑटोमोबाइल रेंटल सर्विस Business की ताकत को पहचान चुके थे।
रमेश बाबू अब टूर एंड ट्रेवल्स बीते 30 साल से महंगी कारें इकट्ठा कर रहे हैं। रमेश बाबू ने 90 की दौर से लग्जरी गाड़ियों को रेंट पर देना शुरू किया था और अभी तक यह सिलसिला चला आ रहा है।