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क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल : सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।

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इन महान क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सरकार को दिन में तारे दिखा दिए थे :-

भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह ऐसे देश के क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए। अंग्रेजों को इन्हें शांत कराने के लिए फांसी देनी पडी लेकिन इनके शहीद हो जाने के बाद भी इनकी कुर्बानी को देख कर सारे भारत में आजादी की आग भड़क गई। इन साधारण से लगने वाले असाधारण क्रांतिकारियों को हम शीश झुकाते हैं।

” सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमां ,

हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।”

यह पंक्ति हमारे देश के महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखी गई थी जो हिंदी और उर्दू भाषा का अच्छा ज्ञान रखते थे और एक कवि थे । जो अपनी कविताओं में अधिकतर देशभक्ति की कविताओं को प्रधानता देते थे ।इन्होंने भारत की आजादी को अपना लक्ष्य बना लिया था। इन्होंने अंग्रेजों द्वारा हो रहे अत्याचारों को देखकर अपने अन्य क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर काकोरी में सरकारी खजाना चुराने का प्लान बनाया। इस योजना में उनके साथ अशफाक उल्ला खां , मुरारी शर्मा , बनवारी लाल , राजेंद्र लाहिड़ी , सचिंद्र नाथ , भक्ति केशव चक्रवर्ती , चंद्रशेखर आजाद , मन्मथ नाथ , मुकुंदी लाल क्रांतिकारी शामिल थे। नरम दल के नेता महात्मा गांधी ने सन 1922 में चौरा – चोरी कांड के बाद असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। गांधी जी के इस कदम से भारत वासियों में निराशा उत्पन्न हुई।

क्यों किया गया था काकोरी कांड :-

जहां क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से खजाना लूट लिया था

काकोरी में 9 अगस्त सन 1925 को सहारनपुर पैसेंजर ट्रेन में रखी सरकार के खजाने को लूटना था । इस काकोरी कांड को अंजाम देने वाले क्रांतिकारी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे । काकोरी कांड का नेतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल जी ने किया था। खजाना लूटने से इनका मकसद अपने क्रांति को बढ़ाने के लिए हथियार खरीदना था ताकि अंग्रेजों के विरुद्ध मजबूती से पहला उठाया क्रांति का कदम था । क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड करके खजाने को लूट लिया लेकिन अंग्रेजी सरकार को कुछ सबूत में मिल गये। इस कांड के बाद देश में गिरफ्तारियां शुरू हो गई । मुकदमे चले इन क्रांति वीरों को सरकार की तरफ से वकील दिया गया जो इनका पक्ष रखे लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल जी ने वकील लेने से इनकार कर दिया। कोर्ट में इन्होंने अपना पक्ष स्वयं रखा जब रामप्रसाद जी ने अंग्रेजी में बहस किया तो प्रतिद्वंदी वकील हक्का-बक्का रह गया तो जज को यह पूछना पड़ा कि शिक्षा कहां से ग्रहण की । उन्होंने अंग्रेजी में जवाब दिया। 10 महीने तक लखनऊ की अदालत में मुकदमा चलने के बाद फैसला आया। राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खां , रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई गई ।सत्येंद्र नाथ सान्याल को काला पानी बाकी क्रांतिकारी को 5 से 10 साल की सजा सुनाई गई।

यदि मन में सवाल आए कि मित्रता किसे कहते हैं तो इन क्रांतिकारियों को याद कर लेना :-

काकोरी कांड में सम्मिलित क्रांतिकारी

रोशन सिंह इस कांड में शामिल नहीं थे। फिर भी रोशन सिंह को फांसी हुई । राष्ट्रद्रोह के आरोप में उन्हें 5 साल की सजा का पता चला तो रोशन सिंह ने गोरे के मुंह पर जूता मार दिया। इसके बाद रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। इस पर सच्चे राष्ट्रप्रेम और क्रांति के रूप में रोशन सिंह ने राम प्रसाद बिस्मिल से कहा कि तू ही भारत माता का लाल नहीं है मैं भी तेरे साथ आऊंगा । अंग्रेजी सरकार चंद्रशेखर आजाद को पकड़ने में नाकाम रही। 17 दिसंबर 1927 को सबसे पहले राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी दी गई। फांसी से पहले उन्होंने अपने साथियों को अपने पत्र में लिखा था कि हमारे देश की बलिवेदी कुर्बानी मांग रही है और हम इतिहास रच जाएंगे । हमारी मृत्यु व्यर्थ नहीं जाएगी । फांसी के 2 दिन के बाद 19 दिसंबर 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल जी को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई । उन्होंने फांसी से पहले कहा था। मैं अंग्रेजी सरकार का विनाश चाहता हूं। अपनी आंखों में आजाद भारत का सपना लिए इन महान क्रांतिकारियों ने अपनी आंखें हमेशा हमेशा के लिए बंद कर ले। यह क्रांतिकारी देश प्रेम, सच्चाई, अच्छाई और मित्रता की जमाने में मिसाल पेश कर गए।

……………………………समाप्त ………………………..

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