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मद्रास हाईकोर्ट ने अखबारों को दी छूट तो कोर्ट के खिलाफ ही याचिका दायर हो गई,

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मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि केवल आशंका के आधार पर समाचार पत्र पर प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते । केवल आशंका के आधार पर समाचार पत्रों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता क्योंकि यह लोगों के मौलिक अधिकार का हनन होगा ।

मद्रास उच्च न्यायालय ने गुरुवार को राष्ट्रीयापी डाउन में प्रिंट मीडिया को दी छूट जिसके खिलाफ याचिका दायर की गई है।

मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि केवल आशंका या संभावना पर लोगों के सूचना के अधिकार को खत्म नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति और हेमलता की पीठ ने कहा कि केवल आशंका या कम संभावना पर अखबारों के प्रकाशन पर रोक लगाने का आधार सही नहीं है क्योंकि यह ना केवल प्रकाशक, संपादक बल्कि पाठकों के भी भारत के संविधान द्वारा अनुच्छेद 19 ए के तहत अंगीकृत मौलिक अधिकार के हनन होगा ।

कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ एक याचिका दायर की गई जिसमें याचिकाकर्ता ने विभिन्न शोध रिपोर्टओं की पृष्ठभूमि में यह दावा किया कि कागज विशेष रूप से समाचार पत्र कोरोना वायरस के संभावित वाहक हो सकते हैं।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि यदि समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं और पाठकों को दिए जाता है जो कोरोना वायरस की संभावना को बढ़ा सकते है ।अगर पेपर डिलीवरी ब्वॉय कोरोना वायरस का संक्रमित हो तो भी संक्रमण काफी तेजी से फैल सकता है।

अपने दावे में याचिकर्ता ने न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिकल में प्रकाशित एक रिपोर्ट का हवाला दिया । जिसमें यह दावा किया गया था कि कोरोना वायरस अखबार पर 4 से 5 दिन तक जीवित रह सकता है। ऐसे सभी धारणाओं को खारिज करते हुए । पीठ ने कहा कि ऐसे सभी शोध प्रकृति में प्रारंभिक हैं । इस पर यह अटकलें निर्धारित नहीं है।

पीठ द्वारा कही गई बातों का बिंदुवार तरीके से विश्लेषण,

समाचार पत्रों के माध्यम से या कागज की सतह के माध्यम से वायरस का प्रसार इतना व्यापक नहीं है,

एडवोकेट जनरल ने इस क्षेत्र में शोध का बहुत सीमित और न्यूनतम विश्लेषण किया है । आंकड़ों का भी अभाव है शोध बड़े पैमाने पर नहीं किया गया है।

अगर प्रिंट मीडिया पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो यह देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ होगा जो सही नहीं है।

शोध में यह भी सुझाव दिया गया है कि समाचार पत्रों एवं मुद्रा नोटों को इस्तेमाल के बाद साबुन से हाथ धोने पर संक्रमण के प्रसार पर अंकुश लगाया जा सकता है।

पीठ ने यह भी कहा कि जिन देशों ने यह शोध हुए हैं उन देशों ने भी अखबारों के प्रकाशन पर रोक नहीं लगाई है।

जब वायोलॉजी के प्रोफेसर ने खुद ही कहा है कि पेपर उत्पादकों के माध्यम से वायरस का संक्रमण कम प्रभावित है। अगर लोगों को आशंका है तो वायरस का प्रसार रोका जा सकता है। समाचार पत्र को पढ़ने के बाद साबुन से हाथ धोने ,समाचार पत्रों को लोहे के बॉक्स से इस्त्री करने से भी इसे रोका जा सकता है।

समाचार पत्रों को केवल आशंका के आधार पर नहीं रोका जा सकता है । यह संपादक, पाठकों के साथ-साथ प्रकाशक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा । यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 ए के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन होगा,

इस प्रकार अदालत ने याचिका को खारिज किया और कहा कि सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसलिए प्रिंट मीडिया के प्रकाशन पर प्रतिबंधित करने जैसा कोई भी कदम नागरिकों के मौलिक अधिकार के खिलाफ माना जाएगा।

इस पूरे लेख को समझने के बाद आप यह जरूर समझ गए होंगे कि समाचार पत्र की आम आदमी के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है ।मौलिक अधिकारों की रक्षा तो कोर्ट के जिम्मे में ही आती है ।ऐसे में लोगों को ध्यान रखना चाहिए कि अगर वह समाचार पत्र को पढ़ रहे हैं तो सावधानी के तौर पर अपने हाथ को साफ करें,

Brijendra Kumar

Founder and Chief Editor

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