East India Company: पुर्तगाल के नाविक वास्कोडिगामा के भारत आने के बाद ही यूरोप में बड़ा बदलाव आया, वास्कोडिगामा अपने साथ ही जहाजों में भरकर भारतीय मसाले ले गया था. इसके बाद ही पूरे यूरोप में भारतीय मसालों की महक फैल गई. भारत की संपन्नता के चर्चों ने इस कम्पनी की स्थापना का आधार तैयार किया था…
East India Company पूरे भारत पर राज करती थी
कम्पनी का वर्चस्व 1857 के विद्रोह के बाद घटा
The East India Company: ईस्ट इंडिया कम्पनी (East India Company) का नाम इस समय भला कौन भारतीय नहीं जानता होगा! जिस किसी ने 8वीं-10वीं कक्षा तक भी इतिहास पढ़ा है, उसे इस कम्पनी का नाम भली-भांति याद भी होगा. यहां तक कि जो लोग कभी स्कूल नहीं गए, वह लोग भी कम्पनी राज (Company Raj) के नाम से ईस्ट इंडिया कम्पनी से कही न कही अवगत हैं. 17वीं सदी की शुरुआत में ही यानी सन 1600 ईस्वी के आस-पास भारत की जमीन पर अपना पहला कदम रखने वाली इस कम्पनी ने सैकड़ों साल तक हमारे देश पर शासन किया. सन 1857 तक भारत पर इसी कम्पनी का कब्जा था, जिसे कम्पनी राज के नाम से इतिहास में पढ़ाया जाता है.
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एक हिसाब से देखा जाए तो East India Company भारत की पहली कम्पनी थी, भले ही यह भारतीय न होकर अंग्रेजों की थी. इसी कम्पनी ने भारत को गुलामी की बेड़ियां भी पहनाई. एक समय पर यह कम्पनी एग्रीकल्चर से लेकर माइनिंग और रेलवे तक सारे काम करती थी. अब भारत को गुलाम बनाने वाली इस ईस्ट इंडिया कम्पनी के मालिक भारतीय मूल के बिजनेसमैन संजीव मेहता (Sanjiv Mehta) हैं. मेहता ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को खरीदने के बाद इसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी बना दिया. अभी यह कम्पनी चाय, कॉफी, चॉकलेट आदि की ऑनलाइन बिक्री भी करती है.
यह जानकारी इस वजह से प्रासंगिक हो जाती है कि भारतीय मूल के ही ऋषि सुनक (Rishi Sunak) ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के सबसे प्रबल दावेदार भी हैं और फिलहाल रेस में सबसे आगे भी चल रहे हैं.
East India Company की स्थापना वर्ष 1600 में 31 दिसंबर को हुई थी. इस कम्पनी को बनाने के पीछे एकमात्र उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्यवाद और औनपिवेशीकरण को बढ़ावा भी देना था. ब्रिटेन के उस दौर के बारे में एक कहावत भी बहुत ही ज्यादा प्रचलित है कि ब्रिटिश राज में सूरज कभी अस्त नहीं होता. सूरज के परिक्रमा पथ की परिधि से भी ब्रिटिश साम्राज्य को बड़ा बना देने में सबसे जरूरी और अहम योगदान इसी ईस्ट इंडिया कम्पनी का था,
यह कम्पनी मूलत: व्यापार करने के लिए बनाई गई थी, लेकिन इसे कई विशेषाधिकार भी प्राप्त थे, जैसे युद्ध करने का अधिकार. कम्पनी को ब्रिटिश राज ने यह अधिकार अपने व्यापारिक हितों की रक्षा करने के लिए ही दिया था. इस वजह से ईस्ट इंडिया कम्पनी के पास ताकतवर सेना भी हुआ करती थी.
1600 के दशक के समय में साम्राज्यवाद और व्यापार की होड़ में स्पेन और पुर्तगाल का बहुत ही जलवा था. ब्रिटेन और फ्रांस इसमें थोड़ी देर से उतरे थे लेकिन तेजी से दबदबा भी बढ़ा रहे थे. पुर्तगाल के नाविक वास्कोडिगामा के भारत आने के बाद से ही यूरोप में बड़ा बदलाव आया. वास्कोडिगामा अपने साथ जहाजों में भरकर भारतीय मसाले भी ले गया था. यूरोप के लिए भारतीय मसाले बहुत ही अनोखी चीज थी. इन मसालों से वास्कोडिगामा ने बहुत संपत्ति भी अर्जित की. इसके बाद से ही पूरे यूरोप में भारतीय मसालों की महक भी फैल गई.
भारत की संपन्नता के चर्चों ने भी यूरोपीय साम्राज्यवादी देशों को यहां दबदबा बनाने के लिए प्रोत्साहित किया. ब्रिटेन की ओर से यह काम ईस्ट इंडिया कम्पनी ने किया.
इस कम्पनी को पहली सफलता हाथ लगी थी पुर्तगाल का एक जहाज लूटने से, जो भारत से काफी मात्रा में मसाले भरकर ले जा रहा था. ईस्ट इंडिया कम्पनी को उस लूट में लगभग 900 टन मसाले मिले. इसे बेचकर कम्पनी ने जबरदस्त मुनाफा भी कमाया. यह उस समय की पहली चार्टेड ज्वाइंट स्टॉक कंपनियों में से एक थी मतलब अभी के शेयर मार्केट में लिस्टेड कंपनियों की तरह कोई भी इन्वेस्टर उसका हिस्सेदार बन सकता था.
लूट की कमाई का हिस्सा कम्पनी के इन्वेस्टर्स को भी मिला. इतिहास की किताबों में बताया जाता है कि लूट से किए गए पहले व्यापार में ईस्ट इंडिया कम्पनी को करीब 300 प्रतिशत का जबरदस्त मुनाफा हुआ था.
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भारत में सर थॉमस रो ने मुगल बादशाह से ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए व्यापार का अधिकार हासिल किया. कम्पनी ने कलकत्ता (अभी कोलकाता) से भारत में बिजनेस की शुरुआत की और बाद में चेन्नई-मुंबई भी उसके प्रमुख व्यापारिक केंद्र बन गए.
भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी को सबसे पहले फ्रांसीसी कम्पनी डेस इंडेस का मुकाबला करना पड़ा. 1764 ईस्वी की बक्सर की लड़ाई कम्पनी के लिए निर्णायक साबित हुई. इसके बाद ही कम्पनी ने धीरे-धीरे पूरे भारत पर अधिकार भी स्थापित कर लिया. 1857 ईस्वी के विद्रोह के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत का शासन कम्पनी के हाथों से छीनकर अपने हाथों ले लिया. बहरहाल अब यह दुनिया की सबसे अमीर कंपनियों की गिनतियों में कहीं भी नहीं ठहरती. भारतीय मूल के ही संजीव मेहता ने साल 2010 में 15 मिलियन डॉलर यानी 120 करोड़ रुपये में ही खरीद लिया.
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