IAS Success Story: कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो रास्ते के पत्थर भी सीढ़ी बन जाते हैं । मजबूत इच्छाशक्ति और मेहनत के बूते कितने ही लोगों ने मुश्किल हालातों को हराकर सफलता प्राप्त की है । इन्ही कुछ लोगों में राजस्थान की रहने वाली उम्मुल खेर भी हैं जिन्होंने गंभीर बीमारी और विकट परिस्थितियों के बीच भी अपने लिए न सिर्फ राह बनाई बल्कि आज एक कामयाब आईएएस हैं । उम्मुल खेर ने दिव्यांगता से लड़ते हुए अपने पहले ही प्रयास सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की और आईएएस बन गईं । आइए जानते हैं पाली मारवाड़ की रहने वाली उम्मुल खेर की कहानी–
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मूल रूप से राजस्थान के पाली मारवाड़ की रहने वाली उम्मुल एक बेहद ही गरीब परिवार से आती हैं । बचपन में ही रोजी रोटी की तलाश में उनका परिवार दिल्ली आ गया था । यहां निजामुद्दीन इलाके में उम्मूल का परिवार झुग्गी झोपड़ियों में रहने लगा । यहां आकर उम्मुल के पिता कपड़ों का ठेला लगाकर गली गली कपड़े बेचकर किसी तरह से परिवार का पेट पालने लगे । अभावों और तंगहाली के बीच उम्मुल ने अपनी पढ़ाई जारी रखी ।
उम्मुल जानती थीं कि गरीबी से निकलने और स्थिति सुधारने के लिए पढ़ाई ही उनके लिए एकमात्र रास्ता है । हालांकि दिल्ली आकर भी उम्मुल और उनके परिवार की मुसीबतें कम नहीं हुई और साल 2001 में दिल्ली सरकार ने निजामुद्दीन इलाके की झुग्गी झोपड़ियों को हटाने का काम शुरू किया तो एक बार फिर से उनके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा । यहां से बेघर होकर उम्मुल त्रिलोकपुरी में आकर रहने लगीं और खुद की पढ़ाई के साथ कोचिंग भी देने लगीं ।
जब उम्मुल सातवीं क्लास में थीं तब उनका परिवार झुग्गी बस्ती उजड़ने से बेघर हो गया । उम्मुल ने परिवार की स्थिति संभालने और खुद की पढ़ाई का खर्च कोचिंग देकर निकालने लगीं । वह झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चों को ट्यूशन देकर अपनी पढ़ाई करती रहीं । जहां 10 वीं में उम्मूल ने 91 तो बारहवीं उन्होंने 89% अंकों के साथ उत्तीर्ण किया । इस बीच वह त्रिलोकपुरी में अकेले रहकर स्लम एरिया के बच्चों को ट्यूशन भी देती रहीं ।
ग्रेजुएशन के लिए उम्मुल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध गार्गी कालेज को चुना तो आने जाने की उन्हे समस्या हुई। हालांकि उन्होंने तब भी हार नहीं मानी और डीटीसी की बसों में धक्के खाकर भी वह कालेज जाती रहीं ।
गरीबी में बीते बचपन को छोड़ उम्मुल ने पढ़ाई से ही करियर बनाने का सपना लिए जेएनयू आ गईं । जेएनयू की प्रवेश परीक्षा पास कर उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में मास्टर्स किया । इतना ही नहीं इसके बाद उन्होंने नेट जेआरएफ की परीक्षा भी पास की जिससे उन्हें 25000 रुपए की छात्रवृत्ति मिलने लगी । इस छात्रवृत्ति से उम्मुल को काफी हेल्प मिली ।
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उम्मुल जन्म से ही गंभीर बीमारी से पीड़ित रहीं। बता दें कि उम्मुल को जन्म से बोन फ्रेजिल डिसऑर्डर की समस्या थी । इस बीमारी से उम्मुल की हड्डियां कमजोर हो गईं थीं । हड्डियों से जुड़ी इस गंभीर बीमारी से पीड़ित होते हुए भी उम्मुल ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। इस बीच उन्हे कई बार सर्जरी से भी गुजरना पड़ा । इस बीमारी के चलते उन्हे 8 बार सर्जरी जबकि 16 बार फ्रैक्चर हुए ।
IAS Success Story- उम्मुल खेर की कहानी जितनी संघर्षपूर्ण है उतनी ही प्रेरणादायक भी । भले ही उम्मुल निरंतर आगे बढ़ती जा रहीं थीं पर मुश्किलें भी उनका इम्तिहान लेने से बाज नहीं आ रहीं थी । साल 2012 में उनका एक्सीडेंट हो गया जिसके बाद उन्हें करीब एक साल तक बिस्तर पर ही रहना पड़ा । हालांकि तब भी उन्होंने हार नहीं मानी और सिविल सेवा की तैयारी करनी शुरू कर दी।
साल 2017 की सिविल सेवा परीक्षा में उम्मूल 420 वीं रैंक लाईं और अपने पहले ही प्रयास में उन्होंने देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक यूपीएससी क्रैक कर आईएएस बन गईं । उम्मुल खेर ने अपने सपनों और लगन के बूते समाज में एक नया मानदंड स्थापित किया जो न जाने कितने ही लोगों के लिए प्रेरणादाई है ।