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सभी राज्य अपने क्षेत्रों में धार्मिक या भाषाई समूह को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दे सकते हैं, वे अगर चाहें तो अपने स्वयं के संस्थान स्थापित कर चला सकते हैं यदि उन्हें एक क्षेत्रीय अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में घोषित किया जाता है। रिपोर्ट की माने तो महाराष्ट्र ने 2016 में यहूदियों को एक अल्पसंख्यक समुदाय घोषित किया था।
दिल्ली सुप्रीम में मुददा उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि जिन राज्यों में हिंदुओं या अन्य समुदायों की संख्या कम है, उन्हें उन क्षेत्रों में अल्पसंख्यक घोषित किया जा सकता हैं, ताकि वे अपनी समुदाए की संस्थाएं स्थापित कर सकें और उनका रख-रखाव कर प्रशासन करने में सक्षम हो सके।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का हवाला देते हुए कहा की सभी राज्य अपने धार्मिक या भाषाई समूहों के आधार पर अपने क्षेत्रों में अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में मान्यता दे सकते हैं, जैसा कि महाराष्ट्र सरकार ने 2016 में यहूदियों के मामले में किया था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार संस्थानों अपने स्वयं के नियमों और शर्तों के साथ अल्पसंख्यक संस्थानो को प्रमाणित करें।
सुप्रीम कोर्ट में अल्पसंख्यक मामले में सरकार द्वारा दायर एक हलफनामे में भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने एक याचिका में दावा किया है कि यहूदी, बहावाद और हिंदू धर्म के अनुयायी, जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर में रहते हैं, तथा इसके साथ ही नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश , पंजाब समेत मणिपुर में भी अल्पसंख्यकों के पास प्रशासन नहीं है, जिसके कारण उनकी अपनी अल्पसंख्यक संस्थाएं भी नहीं हैं।
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए, मोदी सरकार ने कहा कि “अल्पसंख्यक समुदाए वाले सभी राज्यों में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन की व्यवस्था कर सकते हैं तथा राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करने के लिए उस राज्य के सरकारों द्वारा विचार किया जायेगा।
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केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की स्थापना अल्पसंख्यकों के विकास के लिए साथ ही उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए की गई है ताकि देश एवं प्रदेश के प्रत्येक नागरिक को राष्ट्र निर्माण में समान रूप से भाग लेने का अवसर मिल सके। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह भी कहा कि अकेले राज्यों को अल्पसंख्यकों के विषय पर कानून बनाने की शक्ति नहीं प्रदान की जा सकती क्योंकि यह संविधान के खिलाफ होगा और सर्वोच्च अदालत के कई फैसलों के खिलाफ होगा।
केंद्र ने कहा, “राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 को संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत बनाया गया है। यदि इस विषय पर कानून बनाने की शक्ति अकेले राज्य के पास होगी , तो संसद को अपनी शक्ति से वंचित किया जाना चाहिए। जो हमारे संविदान व्यवस्था के खिलाफ होगा।