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Sitaram Rajput: छतरपुर के ‘दशरथ मांझी’ ने दिखाया जज्बा, सरकार से नहीं मिली मदद तो अकेले खोद डाला कुआं, लोग कर रहे हौसले को सलाम

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Sitaram Rajput: ‘मांझी द माउंटेन मैन’ फिल्म तो हमने देखी ही होगी जिसमें दशरथ मांझी बने नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने पत्नी के पहाड़ से फिसलकर गिर जाने की वजह से पूरा का पूरा पहाड़ खोद डाला था और रास्ता बना दिया था । बिहार के दशरथ मांझी की जज्बे से भरी ये कहानी हर किसी ने किसी न किसी रूप में देखी सुनी होगी । अटूट मेहनत और जीवटता से भरी दशरथ मांझी की स्टोरी से आज भी हम सब मोटिवेट होते हैं ।

वहीं अब कुछ ऐसा ही कारनामा छतरपुर के रहने वाले 70 वर्षीय बुजुर्ग सीताराम राजपूत ने कर दिखाया है । बुजुर्ग सीताराम ने बिना किसी मदद के अकेले कुआं खोद कर एक बार फिर से दर्शा दिया है कि मनुष्य के साहस से बढ़कर इस दुनिया में कुछ भी नहीं है ।

न गांव वालों ने की मदद न सरकार ने, अकेले खोद डाला कुआं

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बुंदेलखंड में पानी का हाल किसी से छिपा नहीं है । सिंचाई के लिए पानी का तो छोड़िए पीने के पानी के लिए भी लोगों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है और काफी दूर दूर से पानी लाना पड़ता है, गर्मियों में ये समस्या और बढ़ जाती है । छतरपुर के हदुआ गांव में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है । वहीं के रहने वाले 70 साल के सीताराम राजपूत को भी अन्य लोगों की तरह आए दिन इस स्थिति से दो चार होना पड़ता था । अविवाहित सीताराम ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए परिवार और गांव वालों के हित में अकेले कुआं खोदने में लग गए ।

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2 साल में कुआं खोदकर निकाल दिया पानी

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सूखा प्रभावित छतरपुर के हदुआ गांव के रहने वाले सीताराम राजपूत 2015 में कुआं खोदना शुरू किया। उनके इस मैराथन कार्य में न तो गांव के किसी व्यक्ति न न ही सरकार ने कोई सहयोग किया लिहाजा बुजुर्ग सीताराम अकेले ही कुआं खोदते रहे । वह दिनभर अकेले ही कुआं खोदते और मिट्टी बाहर निकाल कर लाते। करीब 2 साल बाद 2017 में सीताराम ने 33 फीट का कुआं खोद डाला । यही नहीं कुएं से उन्हे पानी मिलना भी शुरू हो गया पर उनकी इस मेहनत को कोई इनाम मिलने की बजाय एक और आफत आ गिरी जब अगली बरसात में उनके द्वारा खोदे गए कुएं की मिट्टी धसकने लगी।

बरसात ने फेरा मेहनत पर पानी पर हिम्मत अब भी बाकी है…

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एक 70 वर्षीय बुजुर्ग जिसे स्वयं दूसरे की मदद की जरूरत पड़े वह अकेले दम रात दिन मेहनत करके कई फीट गहरा कुआं खोद डालता है। उससे भी बड़ी हैरानी की बात कि अगली बरसात में कुआं ढह जाने से उस वृद्ध की मेहनत पर पानी भले फिर गया हो पर सीताराम का हौसला देखिए कि उनमें अब भी कुआं खोदने का वैसा ही जुनून बाकी है । इतना ही नहीं सीताराम ने अब फिर से कुआं खोदना शुरू कर दिया है। वह न तो किसी सरकार और सरकारी योजनाओं के भरोसे हैं न ही किसी और के।

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सरकार चलाती है योजनाएं… पर सिर्फ कागजों पर

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वैसे तो हर क्षेत्र में मदद के लिए सरकार की तरफ से हजारों योजनाएं चलाई जा रही हैं पर देश का दुर्भाग्य ही है कि कागजों पर चलने वाली ये योजनाएं जरूरतमंद व्यक्ति तक पहुंच ही नहीं पातीं और जब तक पहुंचती हैं तब तक देर हो चुकी होती है । अब सीताराम के मामले में ही देख लीजिए जहां सरकार की तरफ से कुआं खोदने के लिए कपिल धारा योजना चलाई जाती है और इसके तहत 1.8 लाख की सरकारी मदद दी जाती है ।

सरकार और सिस्टम की नाकामी ही कहा जायेगा कि ये बड़े बड़े नामों वाली योजनाएं सीताराम जैसे जरूरतमंद तक पहुंचती नहीं हैं । न तो सरकारी अमला समय रहते सीताराम तक पहुंच पाता है । यदि ऐसा न होता तो भला 70 वर्षीय बुजुर्ग को इस उम्र में कुआं खोदने की क्या जरूरत पड़ती।

जिम्मेदारों ने क्या कहा

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिले के अधिकारी का कहना है कि उन्हें सीताराम के मामले में कोई जानकारी नहीं है । वह कहते हैं कि सरकार की तरफ से जिले में कपिल धारा योजना चलाई जा रही है और उसके लिए आवेदन करना होता है । अधिकारी आगे कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि सीताराम ने कुआं खोदने के लिए इस योजना के अंतर्गत आवेदन किया था या नहीं। हालांकि वो ये बात छुपा जाते हैं कि सीताराम जैसे व्यक्तियों तक योजनाओं की समुचित जानकारी पहुंचाना भी सरकारी अमले का ही काम है ।

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