दल बदल विरोधी (Anti -Defection Low ) कानून क्या है ?दल बदल विरोधी कानून की क्या आवश्यकता पड़ी ?
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दल बदल विरोधी (Anti -Defection Low ) दल बदल विरोधी (Anti -Defection Low ) जैसा कि शब्द से पता चलता है कि किसी एक दल से दूसरे दल में चले जाना है ही दलबदल या फिर दल बदलना कहते हैं। सन 1985 की ईस्वी से पहले ऐसा होता था कि जब कोई राजनीतिक पार्टी चुनाव जीत जाती थी तो उस पार्टी के जीते हुए सदस्य को विपक्षी पार्टी पैसे देकर अपनी पार्टी में मिला लेती थी या फिर हारी हुई पार्टी के सदस्य जीती हुई राजनीतिक पार्टी में शामिल हो जाते थे। इस प्रकार का दल बदल का खेल राजनीतिक पार्टियों में चलता रहता था। लेकिन इस पर अंकुश लगाना भी जरूरी था क्योंकि इससे जो लोकतंत्र की खूबसूरती है जिसमें जनता अपने वोट के द्वारा योग्य पार्टी या व्यक्ति को चुनती है लेकिन जनता से वोट लेने के बाद जीता हुआ मंत्री शपथ ग्रहण के बाद विपक्षी पार्टी द्वारा दी गई लालच के लिए ही सही लेकिन दल बदल देता है। जिससे लोकतंत्र की सूरत धूमिल होती थी इसलिए कानून को बनाया गया।
दल बदल विरोधी (Anti -Defection Low ) राजनीतिक दलों के सदस्यों का दल बदलना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि हमारा भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है लेकिन दलबदल से लोकतंत्र को धक्का लगता है क्योंकि जब जनता अपने किसी मंत्री या पार्टी को वोट देकर जिताती है लेकिन जीता हुआ मंत्री या राजनीतिक पार्टी का सदस्य शपथ ग्रहण के पश्चात दूसरी पार्टी में मिल जाता है यानी दल बदल देता है तो जनता की वोट का अपमान होता है जिस पार्टी को जनता चाहती ही नहीं और उसी की सरकार बन जाती है यह लोकतंत्र की खूबसूरती पर एक धब्बा है। और जो सरकार जीती है वह गिरने की कगार पर आ जाती हैं।
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दल बदल विरोधी (Anti -Defection Low ) लोकतांत्रिक प्रक्रिया के इस भटकाव के लिए 52 वें संशोधन के अंतर्गत दल बदलू को पार्टी से निकालने के लिए एक कानून लागू किया गया जिसे दल बदल विरोधी कानून कहते हैं। संविधान के दल बदल विरोधी कानून के संशोधित अनुच्छेद 101, 102, 190 और 191 का संबंध संसद तथा राज्य विधानसभाओं में दल परिवर्तन के आधार पर सीटों से छुट्टी और अयोग्यता के कुछ प्रावधानों के बारे में है।
दल बदल विरोधी (Anti -Defection Low ) 1985 में संविधान की दसवीं अनुसूची बनाई गई जिसके अनुसार यदि सदन के सदस्यों में से कोई किसी विधायक के खिलाफ पार्टी को भंग करने की याचिका दायर करता है तो पीठासीन अधिकारी उस विधायक को अयोग्य घोषित कर सकता है।
यदि कोई विधायक अपनी स्वेच्छा से पार्टी छोड़ना चाहे या
दल बदल विरोधी (Anti -Defection Low ) विधायक अपने राजनीतिक दल द्वारा दिए गए आदेश के विपरीत दूसरी पार्टी को वोट दें और
दल बदल विरोधी (Anti -Defection Low ) अगर ये नामनिर्देशित सदस्य अपने शपथ ग्रहण के 6 महीने बाद किसी अन्य पार्टी में शामिल हो जाएं या फिर कोई निर्दलीय सदस्य चुनाव जीतने के बाद किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल हो जाएं तो उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
यदि दल बदलने के 15 दिन के अंतराल में शिकायत दर्ज ना हो तो सदस्य को क्षमा का पात्र माना जाता है। और यदि एक बार सदस्य अयोग्य घोषित हो जाए तो उसके बाद भी किसी भी मंत्री पद पर काम नहीं कर सकते ।इसी के साथ ही कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकते इस समय काल सेक्शन 8 Representation Of People ‘s Act के अनुसार 6 साल का होता है।
* अयोग्यता का निर्धारण सदन का स्पीकर करता है और स्पीकर भी किसी ना किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा हुआ होता है इसलिए स्पीकर की निष्पक्षता पर सवाल उठता है।
दल बदल विरोधी (Anti -Defection Low ) * दल बदल विरोधी कानून में यह प्रावधान किया गया है कि कोई एक दो सदस्य दल बदलेंगे तो उन्हें दल बदलना कहा जाएगा लेकिन पार्टी के एक तिहाई सदस्य दूसरे पार्टी में जाते हैं तो उन्हें दलबदल नहीं कहा जाएगा उसे विलय कहा जाएगा। तो एक और तो यह कानून दलबदल का विरोध करता है और फिर दूसरी ओर थोक दलबदल को मान्यता दे देता है।
दल बदल विरोधी (Anti -Defection Low ) दल बदल विरोधी कानून से प्रत्येक राजनीतिक दल के सदस्यों को अपनी पार्टी के प्रति वफादार और निष्ठा पनपी है। इससे जनता द्वारा दिए गए वोट से जीते हुए उम्मीदवारों पर भी थोड़ा विश्वास जमा है कि अब यह है जिस उम्मीदवार और जिस पार्टी को वोट दिया गया है उसी पार्टी में रहेगा दलबदल का हुई सवाल नहीं उठता है।
हालांकि दल बदल विरोधी कानून को आए हुए चालू हो गए हैं लेकिन ऐसा कोई चुनाव नहीं जाता जिसमें नेता मंत्रियों ने दल बदल ना किया हो।