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इस अजनबी शहर में पत्थर किसने मारा दोस्तों कोई अपना जरूर है फराज यहां पर
Ahmed Faraz: उर्दू के जाने-माने शायर ने पेशावर के विश्वविद्यालय से उर्दू और फारसी में शिक्षा हासिल की उसके बाद वह उसी यूनिवर्सिटी में अध्यापन का कार्य करने लगे।
Ahmed Faraz बचपन से ही पायलट बन कर हवाई जहाज उड़ाना चाहते थे लेकिन उनकी मां ने उनको इस कार्य को करने से मना कर दिया।
Ahmed Faraz को उर्दू के नामी-गिरामी शायरों में गिना जाता है उनका वास्तविक नाम सैयद Ahmed शाह था। 14 जनवरी 1931 को पाकिस्तान के नौशेरा शहर में वे पैदा हुए थे। Faraz कई वर्ष तक पाकिस्तान से दूर यूके और कनाडा में रहे । उन्होंने रेडियो पाकिस्तान में कुछ दिन तक नौकरी भी की 1976 में वह पाकिस्तान अकैडमी आफ लेटर्स के डायरेक्टर जनरल और चेयरमैन भी रहे।
पाकिस्तान सरकार ने उन्हें हिलाले इम्तियाज पुरस्कार से सम्मानित किया लेकिन फराज ने 2006 में यह पुरस्कार सरकार को इसलिए वापस कर दी क्योंकि वह सरकार के कुछ फैसलों से खुश नहीं थे। 25 अगस्त 2008 को किडनी संबंधित बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई और भी खुदा को प्यारे हो गए।
Faraz के शेर आज भी जिंदा है
ज़िंदगी से बस यही गिला है मुझे
तू बहुत दिन के बाद मिला है मुझे
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तू प्यारसे कोई चाल तो चल
हार जाने का जज्बा है मुझे
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इस से पहले कि हम बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त आ जुदा हो जाएँ
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आँख से दूर न हो दिल से भी उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है ये गुज़र जाएगा
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दुश्मनी ही सही दिल दुखाने के लिए ही आ
आज फिर से मुझे छोड़ के दूर जाने के लिए आ
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अब के हम जुदा हुए तो शायद कभी सपनो में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में हैं मिलें
अगर तेरी अना ही का है सवाल तो फिर
चलो मैं अपना हाथ बढ़ाता हूँ तेरी दोस्ती के लिए
उस को जुदा हुए भी एक ज़माना हुआ
अब क्या कहें ये क़िस्सा तो बहुत पुराना हुआ
दिल भी पागल है जो ऐसे शख़्स से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना भी बना के न रखे
चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई और अपनी रुसवाई का
न जाने क्यूं आया है तुम्हारा ख़याल शायद ,ऐसे ही
Faraz के शेर में खामोश दिल की।आहट है। आंसुओं के धागे में पिरोई हुई दर्द भरी मुस्कुराहट की फूलों की एक माला भी है। इनकी शायरी में बेवफाई का दर्द तो झलकता ही है लेकिन Faraz बेवफाई को भी वफा की अदा मानते हैं और इस अदा में वे बेवफाई के दर्द को भूलते हुए नजर आते हैं।
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Faraz के जिंदगी की अगर हम बात करें तो वास्तविक जिंदगी में भी वह काफी खुद्दार नजर आते हैं जो कि इस बात से पता चलता है कि पाकिस्तान सरकार ने उन्हें एक सम्मान से नवाजा था लेकिन Faraz , सरकार के किसी फैसले से नाखुश थे तो उन्होंने अपना पाया हुआ सम्मान सरकार को वापस दे दिया।