बक्सवाहा जंगल बचाओ : जंगलों को काटकर हीरा निकालना उसी प्रकार है जैसे आईफोन खरीदने के लिए किडनी बेचना ।
इस पोस्ट में
मध्यप्रदेश के बक्सवाहा जंगल में एक डायमंड माइन के लिए ढाई लाख से भी अधिक पेड़ काटे जाने का खतरा है । सरकार ने डायमंड माइनिंग की इजाजत दे दी हैं। इस जंगल में ना सिर्फ पेड़ काटे जाएंगे बल्कि हजारों जानवर, प्लांट ,स्पीशीज से खतरा होगा। टाइगर कंजर्वेशन पर इससे बड़ा खतरा होगा। इस प्रोजेक्ट द्वारा 7000 आदिवासियों के मौलिक अधिकार छीने जाने लगे हैं। बक्सवाहा जंगल बचाओ इस क्षेत्र में पानी की बहुत कमी है और इस प्रोजेक्ट में पानी अधिक लगेगा इससे स्थानीय लोगों को पानी की विकट परेशानी भी झेलने पढ़ सकती है। बक्सवाहा जंगल बचाओ सरकार का दावा है कि इसमें कोई चिंता की बात नहीं इस प्रोजेक्ट में जितने पेड़ काटे जाएंगे उतने ही पेड़ों का बाद में वृक्षारोपण कर दिया जाएगा। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में एक बक्सवाहा क्षेत्र है जहां की जनसंख्या 10216 है। बक्सवाहा बहुत ही पुराना जंगल है।
एक बात सबको अपने अंतर्मन में समझनी चाहिए कि जंगल प्राकृतिक संपदा है जिस पर देश के नागरिकों का अधिकार है क्योंकि जंगल का होना ना होना सबसे अधिक आम जनता को प्रभावित करता है। ( बक्सवाहा जंगल बचाओ ) लेकिन इसका निर्णय सरकार क्यों करेगी कि देश की प्राकृतिक संपदा को बेचना चाहिए या नहीं। देश के जंगलों पर नागरिकों का अधिकार है तो निर्णय भी उन्हें ही लेना चाहिए।
सरकार का तर्क है कि इस प्रोजेक्ट से स्थानीय लोगों को और देश के अन्य लोगों को रोजगार प्राप्त होगा लेकिन कोई भी देश का समझदार नागरिक यह नहीं चाहेगा कि बहुमूल्य जंगलों को काट कर उन्हें हीरा की खान में मजदूरी का काम मिल जाए। जिस मजदूरी से उनका केवल गुजर बसर ही हो पाता है।
क्लिक करे :- घुटने भर कीचड़ में घुस कर ये काम करती हैं तो हम खाते हैं Bharat Ek Nayi Soch
सरकार ने जंगलों को काटने के पक्ष में अपना तर्क दिया है कि जंगल काटे जा रहे हैं लेकिन कहीं और वृक्षारोपण करके एक जंगल फिर बाद में बनाया जाएगा तो सवाल यह उठता है कि सरकार 50 वर्षों 100 वर्षों पुराने पेड़ों को काटकर नए पौधे का रोपड़ करेगी यह तो वह बात हो गई थी नया घर बना नहीं और पुराने घर को तोड़कर अपने सिर की छत्रछाया भी गवादी। एक छोटे से पौधे और 50 – 100 साल पुराने पेड़ों के बीच में तुलना करना गलत है।
आदिवासियों को जंगलों से प्राचीन काल से ही लगाव रहा है और यह प्रकृति के साथ लगाव आज भी चला आ रहा है उनकी बिना अनुमति और बिना बात माने जंगलों को काट देना उसी प्रकार है कि किसी के बसेरे में जबरन घुसकर विनाश कर देना।
जंगलों को काट कर वहां पर माइनिंग करना भीषण जल संकट को न्योता देना है। ( बक्सवाहा जंगल बचाओ ) बक्सवाहा में आम जनता के पीने के पानी की सप्लाई पर बहुत बुरा असर पड़ेगा और भविष्य में जल विवाद जैसी स्थिति भी बन सकती है।
यदि जंगल काट कर डायमंड को निकाला भी जाए और उससे बहुत फायदा भी हो तो यह फायदा केवल और केवल एक परसेंट पूंजी पतियों को ही होने वाला है क्योंकि गरीब और आम आदमी हीरों में कोई दिलचस्पी नहीं होती वह केवल अपनी घर परिवार का गुजर बसर ही चाहता है ना कि जंगलों को काट कर हीरा। ( बक्सवाहा जंगल बचाओ ) हीरा फिर वाइल्डलाइफ नदियां और प्राकृतिक संपदा से अधिक कीमती नहीं हो सकता है केवल इसे लोगों के दिमाग में कीमती होने का भ्रम डाला गया है।
जब Rio Tinto नाम की एंग्लो ऑस्ट्रेलियन कंपनी डिस्कवर करती है कि इस जंगल एरिया के नीचे एक बहुत बड़ा डायमंड का डिपाजिट है। इस डायमंड के डिपॉजिट को नाम दिया गया – बंदर प्रोजेक्ट क्योंकि इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में बंदर पाए जाते हैं। ( बक्सवाहा जंगल बचाओ ) अक्टूबर 2010 से आया है कंपनी गवर्नमेंट ऑफ मध्य प्रदेश के साथ स्टेट सपोर्ट एग्रीमेंट साइन करती है इसमें यह निश्चित किया जाता है कि सरकार को 10 परसेंट माइनिंग रायल्टी मिलेगी । बक्सवाहा जंगल बचाओ इस कंपनी द्वारा जो भी डायमंड भेजे जाएंगे और रिकवर किए जाएंगे इस साइड्स से जो 90 परसेंट लाभ होगा वह कंपनी लेगी।
एस्टीमेट किया गया 2.7 करोड़ कैरेट डायमंड्स एरिया में पाए जाएंगे। इसका तात्पर्य एक बड़ी धनराशि मिलेगी लेकिन इससे आम जनता को कोई लाभ नहीं होगा यह धनराशि 10 परसेंट स्टेट गवर्नमेंट और 90 परसेंट लाभ कंपनी को मिलेगा जैसा कि एग्रीमेंट में निश्चित किया गया था। उस समय कुल क्षेत्र 971 हेक्टेयर था इन्हें 954 हेक्टेयर की क्लीयरेंस दी गई थी। ( बक्सवाहा जंगल बचाओ ) उस वक्त यह अनुमान लगाया गया था कि 500000 से भी अधिक पेड़ काटे जा सकते हैं ।इसके साथ ही पन्ना टाइगर रिजर्व था। पन्ना टाइगर रिजर्व की लाइफ लाइन है केन नदी है जिसमें घड़ियाल पाए जाते हैं यहां घड़ियाल सेंचुरी भी में मौजूद थी। इसके अलावा बक्सवाहा जंगल के अंदर अपना खुद का एक नेचर रिजर्व है जहां बहुत अच्छी वाइल्डलाइफ और नेचर पाया जाता है।
वर्ष 2011 कांग्रेस सरकार सेंटर में थी तभी इस प्रोजेक्ट के लिए बक्सवाहा के जंगल काटे जाने थे लेकिन हमें धन्यवाद करना चाहिए शहला मसूद को जो पर्यावरण कार्यकर्ता थी, ने पार्लियामेंट की सिलेक्ट कमेटी को एक लिखित शिकायत पत्र दिया और होम मिनिस्टर को भी पत्र लिखा। इस जंगल को ना काटने के पक्ष में निरंतर प्रोटेस्ट होते चले आ रहे हैं प्रसिद्ध कंजर्वेशनिस्ट वाल्मीकि थापर और एनजीओ “पहल” इस मूवमेंट को आगे जारी रखते हैं
मार्च 2016 में एक फॉरेस्ट कमिटी डिक्लियर करती है कि यह क्षेत्र In violate Category के अंतर्गत आता है क्योंकि यह Rich forest area और 11 टाइगर कॉरिडोर है । ( बक्सवाहा जंगल बचाओ ) पन्ना टाइगर रिजर्व और एक वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के बीच है।
National Tiger Congervation authority भी एक इसी प्रकार की रिपोर्ट निकालती है। यह 2016 का वर्ष था जब मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार थी । ( बक्सवाहा जंगल बचाओ ) इस कमेटी की रिपोर्ट के बाद सरकार अंततः इस माइनिंग की अनुमति को रिजेक्ट कर देती है। कंपनी जवाब में डिस्प्रेड अटेम्प्ट करती है कि कम से कम कुछ क्षेत्र ही माइनिंग करने के लिए दे दो तो कंपनी एक नया प्रपोजल सम्मिट करती हैं जिसमें 76.43 हेक्टेयर की बात कही गई है।
लेकिन फॉरेस्ट एडवाइजरी कमिटी कहती है कि यहां पर भी माइनिंग करने के लिए जो हाई क्वालिटी फॉरेस्ट हैं। इस पर बहुत बड़ा खतरा पहुंचेगा।
अगस्त 2016 को कंपनी फाइनल गिब -अप कर देती है कि मुझे यह प्रोजेक्ट को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। शिवराज सिंह ने बहुत कोशिश की थी । कंपनी को क्लीयरेंस दिलाने की लेकिन एक कमेटी ने इसे बंद करवा दिया ।
7 फरवरी 2017 को इस कंपनी का बोरिया बिस्तर उठ गया। इस प्रकार हमारे जंगल पेड़ नदी और वाइल्डलाइफ को बचा लिया जाता है।
इसके बाद 2018 में मध्य प्रदेश में कांग्रेसी सरकार बनती है और कमलनाथ बनते हैं नए चीफ मिनिस्टर और यह डिसाइड करते हैं कि इस प्रोजेक्ट को अब रिवाइफ किया जाएगा। कमलनाथ ऑक्शन (Auction) करवाते हैं इस प्रोजेक्ट की टोटल कैपिटल कॉस्ट एस्टीमेट की गई है 25 100 करोड़ रुपए और अपॉर्चुनिटी है 55000 करोड़ रुपए कमाने की। ( बक्सवाहा जंगल बचाओ ) ढेरों कंपनियां यहां विडिंग करते हैं आदित्य बिरला ग्रुप, अदानी ग्रुप, वेदांता ग्रुप, एसेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड, नेशनल मिनिरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन।
आदित्य बिरला ग्रुप इस को जीत जाता है और 50 साल की लीज पर 374 हेक्टेयर जंगल की जमीन इन्हें देनी पड़ती है जिसमें यह डायमंड माइनिंग कर सकते हैं। इस नई डील में लाभ 58% आदित्य बिरला को और 41. 55% स्टेट गवर्नमेंट को लाभ मिलेगा। ( बक्सवाहा जंगल बचाओ ) लेकिन इससे आम जनता को कोई लाभ नहीं है और कभी भी भरपाई ना करने वाला नुकसान ही है क्योंकि पेड़ पौधे हीरे से भी कहीं ज्यादा बहुमूल्य है लेकिन इस बात को सरकार को समझना चाहिए की इस तरह पेड़ों की कटाई से जीव धारियों के जीवन पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से असर पड़ेगा इसलिए जंगलों की कटाई को तुरंत रोक देना चाहिए क्योंकि एक अच्छे जीवन के लिए हीरा नहीं ऑक्सीजन की जरूरत है।